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गाड़ी बुला रही है अजूबे दिखा रही है

टॉय ट्रेन के मजे लो अगर जंगल की खूबसूरती को करीब से देखना चाहते हो, तो कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर तुम्हें बहुत दिलचस्प लगेगा। यह टॉय ट्रेन यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहरों में भी शुमार है। देश...

गाड़ी बुला रही है अजूबे दिखा रही है
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 17 Oct 2015 12:51 AM
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टॉय ट्रेन के मजे लो
अगर जंगल की खूबसूरती को करीब से देखना चाहते हो, तो कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर तुम्हें बहुत दिलचस्प लगेगा। यह टॉय ट्रेन यूनेस्को की विश्व प्रसिद्ध धरोहरों में भी शुमार है। देश के पहाड़ी इलाकों के चार नैरो गेज के रेल रूटों में से एक कालका-शिमला रेल रूट पर चलने वाली यह ट्रेन अंग्रेजों के समय में बनी। इसका 96 कि.मी. लंबा ट्रैक सबसे बड़ी खड़ी ढालों के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। यह 102 सुरंगों से गुजरती है। यह 22 कि.मी. प्रति घंटे की धीमी-धीमी रफ्तार से चलती है, बिल्कुल जैसे खिलौने वाली ट्रेन।
पहले के समय में राजा किस ठाठ-बाट से रहते थे, इसके बारे में जानने के लिए तुम सफर कर सकते हो पैलेस ऑन व्हील्स में। 14 सैलून, 2 रेस्टोरेंट कम किचन और ऐसी ही अन्य सुविधाओं से लैस इस लग्जरी ट्रेन में पहले सिर्फ राजपूत राजा सफर किया करते थे। उस समय की ट्रेन की सजावट और कारीगरी को आज भी वैसे ही संजोकर रखा गया है। दिल्ली से अपने सफर की शुरुआत कर यह ट्रेन जयपुर पहुंचती है, जहां यात्री माओटा झील के किनारे स्थित आमेर का किला घूमने जाते हैं। इसके बाद राजा सवाई जय सिंह द्वारा बनवाए गए जंतर-मंतर की सैर करने जाते हैं। इसके बाद ट्रेन सवाई माधोपुर पहुंचती है, जहां रणथंभौर नेशनल पार्क स्थित है, जहां बाघों और अन्य जानवरों को तुम करीब से देख सकते हो। इसके बाद अगला सफर होता है चित्तौड़गढ़ के किले की तरफ। यह किला इतिहास में अहम स्थान रखता है। इसके बाद ट्रेन पहुंचती है उदयपुर। यहां झील के किनारे लेक पैलेस होटल स्थित है, जिसे महाराजा जगत सिंह द्वितीय ने बनवाया था।  
इसके बाद ट्रेन पहुंचती है जैसलमेर। यहां से थार का मरुस्थल शुरू होता है। यहां के सुनहरे किले की सैर कर तुम रेत के टीलों पर ऊंट की सवारी का मजा ले सकते हो। इसके बाद ट्रेन रुख करती है जोधपुर का, जहां जसवंत सिंह स्मारक और मेहरानगढ़ किला देख सकते हैं। उम्मेद भवन पैलेस की सैर के बाद आखिरी स्टॉप होता है ताज महल।

ट्रेन है या बिल्लियों का घर 
यह ट्रेन किसी बिल्ली के लिविंग रूम जैसी लगती है। जापान की इस ट्रेन में बिल्लियों की प्यारी सी तस्वीरें जगह-जगह बनी हुई हैं। ट्रेन के अंदर-बाहर, ऊपर-नीचे, शेल्फ में, खिड़कियों पर बनी बिल्लियों की प्यारी तस्वीरें कैमरे में कैद करने में बच्चों को बड़ा मजा आता है। 2007 में जापान के किनोकावा शहर में एक कैलिको बिल्ली तामा को लोकल ट्रेन स्टेशन का स्टेशन मास्टर बना दिया गया था। तभी से यह जगह पूरी दुनिया में मशहूर हो गई।

हरी-भरी सुरंग से गुजरो
हरे-भरे जंगल और बर्फबारी के नजारों से सजी ड्रॉइंग तुमने खूब बनाई होगी। ट्रेन से चलते हुए अगर ऐसे ही प्यारे-प्यारे नजारे दिखें, तो सफर का मजा ही बढ़ जाता है। यूक्रेन के क्लेवन में ऐसी ही एक ट्रेन चलती है। ट्रेन से बाहर देखते हुए मन खुशी से झूमने लगता है। यही वजह है कि इस जगह को टनल ऑफ लव का नाम दिया गया है। इस ट्रेन में बच्चों और बड़ों के साथ बहुत से फोटोग्राफर भी सफर करते हुए नजर आ जाते हैं। इस ट्रेन के जरिए फैक्टरी के लिए लकड़ी सप्लाई की जाती है और दिन में यह सिर्फ तीन बार चलती है।

मेकलॉन्ग मार्केट रेलवे
थाइलैंड का मेकलॉन्ग फूड मार्केट रेलवे ट्रैक पर चलने के कारण बहुत लोकप्रिय है। यहां लोग मजे से शॉपिंग करते हैं। जैसे ही ट्रेन आने का वक्त होता है, तो लोग पटरी से अपने फल, सब्जियां, अंडे वगैरह दूर कर लेते हैं और ट्रेन के जाते ही फिर से अपने काम में लग जाते हैं।

हवाई जहाज गुजरे, ट्रेन करे इंतजार
न्यूजीलैंड की नेपियर से गिजबॉर्न तक की रेलवे लाइन अनूठी है। यह हवाई पट्टी के रास्ते से गुजरती है, इसीलिए हवाई पट्टी के रास्ते पर आने से पहले ट्रेन को एयर ट्रैफिक कंट्रोल से इजाजत लेनी पड़ती है। हवाई पट्टी पर यहां अकसर ही 1939 के भाप इंजन चलते हुए दिख जाते हैं।

बादलों से करे बातें
बादलों की बनती-बिगड़ती तस्वीरों में तुमने अकसर आकृतियां खोजी होंगी। अगर बादल बिल्कुल करीब आ जाएं, तो नजारा कैसा होगा। कुछ वैसा ही, जैसा कि अर्जेन्टीना की एक खास ट्रेन 'ट्रेन ए लास न्यूब्स' (बादलों की ओर जाती ट्रेन) से सफर करते हुए नजर आता है। दरअसल यह ट्रेन इतने ऊंचे पुल से गुजरती है कि बादल बेहद करीब नजर आते हैं। यह ट्रेन समुद्र तल से 4,220 मीटर की ऊंचाई पर चलती है। इस तरह ये दुनिया के तीसरे सबसे ऊंचाई तक पहुंचने वाले रेल नेटवर्क का हिस्सा है।

दुनिया की सबसे लंबी ट्रेन
एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने के लिए ट्रेन का सफर सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि इनमें सफर करने पर लंबी दूरी तय करनी हो, तो भी सफर मजे से कट जाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए दुनिया का सबसे लंबा रेलवे नेटवर्क ट्रांस साइबेरियन रेलवे तैयार किया गया। सन 1981 तक यह रेलवे नेटवर्क बनकर तैयार हो गया था। यह रेलवे मंगोलिया, चीन, उत्तर कोरिया जैसे देशों तक जाती है। 1916 से ही इस नेटवर्क ने रूस की राजधानी मॉस्को को व्लादीवोस्तक शहर से जोड़ दिया था और अभी भी इसे बढ़ाने का काम चल रहा है।

डेथ ट्रेन
बर्मा रेलवे का नाम डेथ रेलवे क्यों पड़ा, इसकी एक खास वजह है। दरअसल ऊंची पहाडि़यों पर इस ट्रैक को बनाते समय होने वाले हादसों में 90,000 मजदूरों और 16,000 कैदियों की मौत हो गई थी। 415 किलोमीटर लंबा यह ट्रैक बैंकॉक, थाईलैंड और रंगून से होकर गुजरता है। इस ट्रैक के जिस हिस्से पर अभी भी ट्रेन चलाई जा रही है, उस पर कंचनबूरी इलाके  का सफर करने में खूब मजा आता है, हालांकि रास्ते में बहुत सी ऊंची चोटियों  पर ट्रेन लकड़ी के बहुत पुराने पुलों से होकर गुजरती है। यह बहुत रोमांचक लगता है।

ट्रेन की मजेदार बातें
दुनिया की पहली यात्री ट्रेन मेनचेस्टर से लिवरपूल के बीच सन् 1830 में चली थी, जबकि पहली भारतीय ट्रेन सन् 1853 में बॉम्बे से ठाणे के बीच चली थी।
स्वीडन में लोहे की बहुत सी खदानें हैं। जो ट्रेनें लोहा एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं, वे अपनी बिजली खुद बनाती हैं। इन ट्रेनों को चलाने में जितनी बिजली लगती है, उससे पांच गुना अधिक बिजली ये ट्रेनें पैदा करती हैं।
शुरुआती ट्रेनें रस्सियों, घोड़ों और गुरुत्वाकर्षण से चलती थीं।
19वीं सदी में भाप के इंजन चलने शुरू हुए। इसके बाद 20वीं सदी में डीजल और बिजली से चलने वाले इंजनों ने उनकी जगह ली।
जापान में ट्रेनें समय से आने के लिए मशहूर हैं। ट्रेन के पांच मिनट देरी से आने पर यात्रियों से माफी मांगी जाती है और अगर ट्रेन एक घंटे के लिए लेट हो जाए, तो न्यूज बन जाती है।
सन् 1907 में मैक्सिको के एक जांबाज ब्रेकमैन जीजस गार्सिया ने अपने दम पर नाकोजारी और सोनोरा शहरों को बचाया था। दरअसल जीजस की ट्रेन में डायनामाइट भरा हुआ था और उसमें खराबी आ गई थी। वह जलती हुई ट्रेन को 6 किलोमीटर दूर शहर से बाहर लेकर गए, जहां ट्रेन में ब्लास्ट हो गया और वे स्वयं भी मारे गए।
पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी हार गया था, जिसके कारण उसे अपने म्यूजियम में रखी रेलवे कारें फ्रांस के हवाले करनी पड़ी थीं। दूसरे विश्वयुद्ध में जब फ्रांस की हार हुई तो हिटलर ने अपमान का बदला लेने के लिए उनका म्यूजियम ढहा दिया और फिर से रेलवे कारें वहीं ले आए, जहां वे पहले रखी गई थीं।

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