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थाइरॉएड तो नहीं है ये!

गले में स्थित तितली के आकार का थाइरॉएड यूं तो महिलाओं को ज्यादा परेशान करता है, लेकिन पुरुष और बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यदि समय पर इसका उपचार करा लेंगे तो सामान्य जीवन जी सकेंगे। इस बारे में...

थाइरॉएड तो नहीं है ये!
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 17 Apr 2015 04:01 PM
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गले में स्थित तितली के आकार का थाइरॉएड यूं तो महिलाओं को ज्यादा परेशान करता है, लेकिन पुरुष और बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यदि समय पर इसका उपचार करा लेंगे तो सामान्य जीवन जी सकेंगे। इस बारे में बता रही हैं विनीता झा

विवाह के बाद व गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों को थाइरॉएड जांच जरूर करानी चाहिए। इससे गर्भवती स्त्री व गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आएगी।

थाइरॉएड शरीर का एक प्रमुख एंडोक्राइन ग्लैंड है। तितली के आकार का यह ग्लैंड गले में स्थित होता है। इसमें से थाइरॉएड हार्मोन का स्रव होता है, जो हमारे मेटाबॉलिज्म की दर को संतुलित करता है। थाइरॉएड हार्मोन के असंतुलन यानी कम-ज्यादा स्रव होने से रोजमर्रा से जुड़ी अनेक शारीरिक परेशानियां होती हैं, पर पीडित व्यक्ति इसे सामान्य परेशानी मान कर झेलता रहता है। खून की थाइरॉएड जांच कराने पर ही यह स्पष्ट होता है। महिलाओं को अपनी शारीरिक बनावट व हार्मोनल कारणों से थाइरॉएड की बीमारी ज्यादा होती है।

थाइरॉएड दो प्रकार का होता है- पहला हाइपोथाइरॉएड और दूसरा हायपरथाइरॉएड।

हाइपोथाइरॉएड
इस बीमारी में थाइरॉएड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता, जिससे शरीर में आवश्यकता के अनुसार टी 3 व टी 4 हार्मोन नहीं पहुंच पाते। इस बीमारी की स्थिति में वजन में अचानक वृद्धि होने लगती है। रोजाना की गतिविधियों में रुचि कम हो जाती है। ठंड बहुत लगती है। कब्ज होने लगता है। आंखें सूज जाती हैं। मासिक चक्र अनियमित हो जाता है। त्वचा सूखी व बाल बेजान होकर झड़ने लगते हैं। सुस्ती महसूस होती है। पैरों में सूजन व ऐंठन की शिकायत होती है। कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगी तनाव व अवसाद से घिर जाता है और बात-बात में भावुक हो जाता है। जोड़ों में पानी भर जाता है, जिससे दर्द होता है और चलने में दिक्कत होती है। मांसपेशियों में भी पानी भर जाता है, जिससे चलते-फिरते पूरे शरीर में हल्का दर्द होता है। चेहरा सूज जाता है। आवाज रूखी व भारी हो जाती है। यह रोग 30 से 60 वर्ष की महिलाओं को होता है।

हाइपरथाइरॉएड
इसमें थाइरॉएड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है और टी 3, टी 4 हार्मोन अधिक मात्रा में निकल कर रक्त में घुलने लगते हैं। इस बीमारी की स्थिति में वजन अचानक कम हो जाता है। अत्यधिक पसीना आता है। इसके मरीज गर्मी सहन नहीं कर पाते। इनकी भूख में वृद्धि होती है। ये दुबले नजर आते हैं। मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। निराशा हावी हो जाती है। हाथ कांपते हैं और आंखें उनींदी रहती हैं। लगता है जैसे आंखें बाहर आ जाएंगी। धड़कन बढ़ जाती है। नींद नहीं आती। दस्त होते हैं। प्रजनन प्रभावित होता है। मासिक रक्तस्रव ज्यादा एवं अनियमित हो जाता है। गर्भपात के मामले सामने आते हैं। हाइपरथाइरॉएड बीस साल की महिलाओं को ज्यादा होता है।

जांच प्रक्रिया
थाइरॉएड के दोनों प्रकार में पहले रक्त की जांच की जाती है। रक्त में टी 3, टी 4 और टी एस एच लेवल में सक्रिय हार्मोन का स्तर जांचा जाता है। विवाह के उपरांत एवं गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को थाइरॉएड की जांच जरूर करानी चाहिए। इससे गर्भवती स्त्री और गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आएगी। इसमें 90 प्रतिशत रोगियों को उम्र भर दवा खानी पड़ती है, किंतु पहले चरण में उपचार करा लेने से महिलाओं के शेष जीवन की दिनचर्या आसान हो जाती है।

उपचार व बचाव
इसके उपचार के लिए रेडियोएक्टिव आयोडीन का इस्तेमाल किया जाता है। अगर समस्या अधिक गंभीर रूप ले ले तो सर्जरी करवानी पड़ती है। ऐसे मरीजों को तनाव से बचना चाहिए। अगर हाइपोथाइरॉएड है तो आयोडीन की अधिकता वाले भोजन से हमेशा बचना चाहिए। थाइरॉएड की बीमारी पुरुषों व बच्चों को भी होती है। यह वंशानुगत होने वाली बीमारियों में से एक है। अध्ययन के मुताबिक जलीय वनस्पति में पाए जाने वाले क्लोरोफिल, फाइटोबिलीप्रोटीन और जेंथोफिल्स उपापचय को ठीक रखने में काफी हद तक मददगार होते हैं। यही नहीं, इस वनस्पति में मौजूद माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे- नाइट्रेट, फॉस्फेट व सेलीसिलिक एसिड भी उपापचय की प्रक्रिया को दुरुस्त रखते हैं।

शोधकर्ताओं की राय में उपापचय की दर को सही बनाए रखने के लिए गोजी बेरी का जूस भी काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा विटामिन ए व सी की उचित मात्रा लिया जाना हाइपोथाइरॉएड में कारगर साबित होता है।

थाइरॉएड के लक्षण

तेज धड़कन
फोकस करने में परेशानी
अचानक भूख बढ़ना
पसीना आना
व्यग्रता, डर का अहसास
वजन में तेज गिरावट
थकान का अहसास
ज्यादा ठंड लगना
मांसपेशियों में कमजोरी
नाखून खराब होना
आवाज कर्कश होना
बेवजह वजन में बढ़ोतरी
थाइरॉएड ग्रंथि का बढ़ना
गले की ग्रंथियों में जलन होना

क्या है रोकथाम
हाइपोथाइरॉएड में हार्मोन का बहुत कम स्रव होता है, जिसकी वजह से कमजोरी, सुस्ती, मोटापा, कब्ज, थकावट, भूख न लगना आदि शिकायतें शुरू हो जाती हैं। कुछ बातों का ध्यान रख कर आप इस बीमारी से निजात पा सकते हैं।

खास टिप्स
धूम्रपान, गुटका, तंबाकू, चाय, कॉफी, चॉकलेट आदि चीजों को छोड़ कर ही इस रोग से स्थायी छुटकारा मिल सकता है। धूम्रपान थाइरॉएड को हानि पहुंचा सकता है और यह भी हो सकता है कि इससे थाइरॉएड की स्थिति और भी बिगड़ जाए।

तनाव कम करें। इस रोग में तनाव, कुंठा, क्रोध को अपने सिर पर लादे नहीं, बल्कि इनका सूझबूझ तथा सामान्य बुद्धि से हल निकालें। अपनी जीवनशैली को बदलने का प्रयास करें। इससे थाइरॉएड को रोका भी जा सकता है।

बहुत कम या बहुत ज्यादा आयोडिन होना भी हाइपोथाइरॉएड या ग्लैंड के खतरे को बढ़ा सकता है।

साफ पानी पिएं।

कुछ लोग आसान व कम समय में किए जा सकने वाले व्यायाम कर सकते हैं। शुरुआत में छोटे कदम उठाए जा सकते हैं। अगर आप इस प्रोग्राम को आजमाना चाहते हैं तो 15 मिनट टहलने से शुरुआत कीजिए। साथ ही ऐसे खाने से बचिए, जिनके बिना आपका काम चल सकता है। इन बदलावों को आसानी से अंजाम देने के लिए आप ऐसा दोस्त चुन सकते हैं, जो ये सब करने में आपकी मदद करे। अपनी दिनचर्या में योग को शामिल करें। इस रोग में भस्त्रिका, कपालभाति और अग्निसार प्राणायाम काफी कारगर हैं। इनसे चयापचय गति बढ़ती है। ये सुस्ती, आलस्य तथा थकावट को दूर करने में उपयोगी सिद्ध होते हैं।

सोया का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।

(डॉं अजय कुमार अजमानी, सीनियर कंसल्टेंट एंडोक्रोनोलॉजी, बीएलके सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल से बातचीत पर आधारित)

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