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मन शांत करने के लिए न हो परेशान, अपनाएं सिर्फ ये तरीके

हम जिसे अहं का नाम देते हैं, वह दरअसल जब पहचान में आ जाता है तो फिर वह उसी रूप में नहीं रह जाता। दरअसल, अगर आपके अंदर अहं सक्रिय है तो आपको इसका पता तक नहीं चलेगा। बस तभी तक इसे अहं कहा जाएगा। जिनमें...

मन शांत करने के लिए न हो परेशान, अपनाएं सिर्फ ये तरीके
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Mar 2017 08:33 AM
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हम जिसे अहं का नाम देते हैं, वह दरअसल जब पहचान में आ जाता है तो फिर वह उसी रूप में नहीं रह जाता। दरअसल, अगर आपके अंदर अहं सक्रिय है तो आपको इसका पता तक नहीं चलेगा। बस तभी तक इसे अहं कहा जाएगा। जिनमें अहं बहुत ज्यादा होता है, वे उसके बारे में रुचि भी नहीं रखते हैं। उन्हें अहं का गुमान तक नहीं होता।

अहं या पुरानी प्रवृत्ति

मजा तब आता है, जब आप इसे पहचान लेते हैं। काबू में भी यह तब ही आता है। उस वक्त के बाद से यह अहं नहीं रहता, बल्कि कोई पुरानी और अब तक सक्रिय आदत या विचारधारा जैसा कुछ रह जाता है। इसे आसानी से यूं समझिए। मान लीजिए कि आपकी बड़े-बड़े नाम लेने की आदत है। ऐसे में आप अपने बगल वाले पर प्रभाव जमाने के लिए यह कह सकते हैं कि मुझे दलाई लामा को फोन करना है, वे मेरे फोन का इंतजार कर रहे होंगे। लेकिन, जब आप यह कह रहे होंगे तो एक तरफ आप यह अनुभव कर रहे होंगे कि यह एक झूठ ही है। 

उस पल में आप अपने अहं को पहचान रहे होते हैं, जो चाहता है कि आप की भी प्रतिष्ठा बने और आप एक शख्सीयत की तरह पहचान पाएं। चूंकि उस पल में आपने अपने अहं को उसके घटित होते समय ही पहचान लिया था, इसलिए यह अहं नहीं रह गया था। 

अब करिश्मा ये होता है कि अगली बार के लिए आप इस पर निगाह रख सकते हैं। और फिर जब दोबारा कोई बड़ा नाम बताने की इच्छा होगी तो आप उसे पहले ही पहचान लेंगे। चूंकि आप इस उत्कंठा को समझ चुके हैं तो एक लंबी सांस लेकर इसके शांत हो जाने का इंतजार करेंगे।

मुक्त हो सकते हैं आप

जिस वक्त में आप इस उत्कंठा को पहचान लेते हैं, मुक्ति का एक तत्व आपमें पहुंच जाता है। फायदा यह होता है कि विचारों का वह पैटर्न तो अभी भी सक्रिय रहता है, लेकिन आप उसके दास नहीं रहते। 

ना दुश्मनी, ना दोस्ती

अहं को दुश्मन भी ना मानिए। जब आप इसे अपना दुश्मन मान बैठेंगे तो इसकी नकारात्मकता दोगुनी हो जाती है। दूसरी गलती यह सोच है कि आप इससे जीत सकते हैं। पर जैसे ही आप इससे लड़ाई लड़ने लगते हैं, आप इसी का हिस्सा हो जाते हैं। 

करुणा से करें काबू 

करुणा आपके अंदर एक लचीलापन जगाती है। खुद को, सच्चई को स्वीकार करने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति। इसीलिए, जब अहं के दर्शन आप वर्तमान में कर रहे हों तो आप खुद से मन ही मन कह सकते हैं, ‘देखो तो, मैं फिर से वही कर रहा हूं। कितनी मजेदार बात है।’ हंसकर मुक्त हो जाना भी एक तरीका है। जब आप अपनी प्रवृत्तियों पर हंसने लगते हैं तो फिर दोबारा उनके उभरने से पहले ही उन्हें पकड़ लेने में सक्षम हो जाते हैं। 

जैसे किसी विषय पर मत देने की तीव्र उत्कंठा आए तो अहं से खुद को अलग कर चुका व्यक्ति सोचेगा, ‘क्या मुङो बात कहनी चाहिए या कि मैं इसे टाल सकता हूं? देखते हैं कि अगर नहीं बोलता हूं तो क्या होता है?’ दबाएं नहीं, अपनी इच्छा से छोड़ने का व्यवहार अपनाएं। खुद को कहें,‘जाने दो यार, मुङो यहां अपना ज्ञान जताने की जरूरत नहीं है।’ इस इच्छा को स्वेच्छा से त्याग दें, फिर देखें कि अंतर्मन में क्या उठता है? 

सबसे पहले लगेगा कि आप छोटे साबित हो गए। लेकिन जैसे-जैसे आप इस सोच को बनाए रखते हैं, आपके मन में गहरे कुछ विश्वास पनपने लगते हैं। अहं आपको धरती के ऊपर चट्टानी पहाड़ जैसा खड़ा देखना चाहता है। वह महसूस करवाना चाहता है कि आप भी कुछ हैं। वह कभी भी पहाड के नीचे घाटी की हरियाली, खुशहाली को वरीयता नहीं देता। मानवता के पुराने ग्रंथों में भी सच्ची शक्ति को ग्रहण करने की बात की जाती है। 

सच्ची शक्ति आकारों में नहीं, बल्कि आकारहीन तथ्यों और तत्वों में होती है, वह हमारे प्रयोजन में होती है, उद्देश्य में होती है, जिसे मैं कभी-कभी हमारे अस्तित्व का सार भी कहता हूं। तो, जब आप अपने अहं से मुक्त होने का तरीका जान जाते हैं, तब आपमें खुद को जताने के लिए कुछ कहने की उत्कंठा पैदा नहीं होती। जरूरत होती है तो कहते हैं, अन्यथा चुप रहते हैं। 

यही सच्ची शांति है, हां, जब तक इस अवस्था को पा नहीं लेते, अपने अंदर सक्रिय अहं के व्यवहारों के प्रति करुणा बरतें। खुद को इसके लिए बुरा ना कहें। बस उसे पहचानकर उसका दास होना बंद कर दें। आप शांति महसूस करेंगे।

जर्मनी मूल के कनाडाई निवासी और लेखक एक्हार्ट टोल आध्यात्मिक प्रभाव रखने वाले प्रभावी वक्ताओं में से एक हैं। ‘दि पावर ऑफ नाउ’ इनकी प्रसिद्ध किताब है। टोल ने ही उपर्युक्त बातों को विस्तृत तरीके से बताई है।

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