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पेसा कानून लागू न होने से करोड़ों की बंदरबांट

झारखंड लघु खनिजों से परिपूर्ण राज्य है। वर्ष 1996 में पेसा कानून बना। पेसा कानून बनने के बाद जितनी भी सरकारें आईं, किसी भी सरकार ने इसकी व्याख्या नहीं की। देश के नौ राज्य शिड्यूल एरिया में आते हैं।...

पेसा कानून लागू न होने से करोड़ों की बंदरबांट
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 23 Nov 2014 01:05 AM
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झारखंड लघु खनिजों से परिपूर्ण राज्य है। वर्ष 1996 में पेसा कानून बना। पेसा कानून बनने के बाद जितनी भी सरकारें आईं, किसी भी सरकार ने इसकी व्याख्या नहीं की। देश के नौ राज्य शिड्यूल एरिया में आते हैं। इसमें झारखंड भी शामिल है। इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि ग्रामसभा की अनुमति के बिना लघु खनिजों का उठाव नहीं हो सकता। इसमें बालू भी आता है। झारखंड में पंचायतीराज व्यवस्था की जगह ग्रामसभा का गठन होना था, जो गांव के अंदर विकास कार्यों का संचालन करता। ग्राम सभा को ही बालू से रॉयल्टी मिलती। अब तक की सरकारों ने ऐसा नहीं किया। कई बार बालू उठाव को लेकर नियम बदले गए। बालूघाट की नीलामी में करोड़ों की बंदरबांट हुई। ऐसा पेसा कानून लागू नहीं होने के कारण हुआ।

बड़ा षड्यंत्र रचा गया
बालू घाट की नीलामी में एक बड़ा षड्यंत्र रचा गया। इसमें करोड़ों की डील हुई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना हुई है। केंद्र की सरकार ने भी इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया। बालू मामले में राज्य में चल रहे विकास कार्य भी बाधित हो रहे हैं। दोगुनी दर में बालू बेची जा रही है। राज्य की सरकारों ने भी इस पर खूब राजनीति की। इसी का परिणाम है कि सत्ता का अब तक विकेंद्रीकरण नहीं हो पाया।

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