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मां की जिद ने किया 'सृजन'

बेटी नि:शक्त पैदा हुई। 10 सालों तक इलाज करवाया। रांची के कई स्कूलों में दाखिले के लिए मनुहार की। सबने मना कर दिया। अंत में अपने ही घर में नि:शक्त बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया। यह एक मां की जिद थी।...

मां की जिद ने किया 'सृजन'
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 30 Mar 2015 11:56 PM
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बेटी नि:शक्त पैदा हुई। 10 सालों तक इलाज करवाया। रांची के कई स्कूलों में दाखिले के लिए मनुहार की। सबने मना कर दिया। अंत में अपने ही घर में नि:शक्त बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया। यह एक मां की जिद थी। अपनी जिद से गुंजन गुप्ता ने किशोरगंज मोहल्ले में सर्वे करवाया। पता चला कि यहां तो 100 से अधिक ऐसे बच्चे हैं। अभिभावकों से बात की। चार बच्चों से साल 2011 में स्कूल शुरू किया। आज 65 बच्चों का भविष्य संवार रही हैं। इसमें कई तो ओलंपिक में गोल्ड मेडलिस्ट भी हैं। पहाड़ी मंदिर के बगल में इस स्कूल का नाम ‘सृजन हेल्प’ है।

पैराओलंपिक और नेशनल गेम तक मुकाम
ज्योति टोप्पो 20 साल की है। उसने साल 2014 में पैराओलंपिक की 100 मीटर रेस में गोल्ड मेडल हासिल किया। वहीं रीमा कुमारी को पेंटिंग में राष्ट्रपति पुरस्कार और दो बार राज्यपाल से पुरस्कार मिल चुका है। सुमन कुमारी ने नेशनल गेम में सिल्वर मेडल हासिल किया है। गुंजन की बेटी जूही कुमारी 20 साल की है। वह भी ओलंपिक में हिस्सा लेती है।

मां बन कर संभालती हैं
गुंजन बताती हैं कि बच्चों को पढ़ाने के लिए आठ शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं। इन्हें पढ़ाना बहुत मुश्किल होता है। कब क्या कर बैठें, कुछ नहीं कहा जा सकता। कोई दिन में दस बार प्रणाम करता है, कोई जहां बैठा रहता है, वहीं मल-मूत्र कर देता है। सभी को मां की तरह संभालना पड़ता है। गुंजन के मुताबिक यदि यह स्कूल नहीं आएंगे तो हिंसक हो जाएंगे, क्योंकि खाली दिमाग खतरनाक होता है। यहां 90 प्रतिशत बच्चों के माता-पिता मजदूर, ठेला-खोमचा या फिर दुकान चलाने वाले हैं।

नहीं लेती हैं सरकारी मदद

गुंजन कहती हैं कि यहां तीन तरह के बच्चे हैं- मूक-बधिर, मंद बुद्धि और शारीरिक रूप से विकलांग। शिक्षकों को वेतन देने के साथ इन पर प्रति माह 50 हजार रुपए खर्च होते हैं। सभी को हर दिन पौष्टिक भोजन दिया जाता है। किताब और ड्रेस भी मुफ्त में दिए जाते हैं। कुछ लोग इसे अपना काम समझते हैं, वह लगातार मदद कर रहे हैं। पति की किराने की दुकान है, वह भी मदद करते हैं।

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