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तो ये है 175 जहाजों और 8000 लोगों को लील गए बरमूडा ट्राइएंगल का राज़

बरमूडा ट्राइएंगल का राज़ पता लगाने का दावा.. वैज्ञानिकों ने कई सौ सालों से एक अबूझ पहेली बन गए 'बरमूडा ट्राइएंगल' के आस-पास होने वाली दुर्घटनाओं की पहेली सुलझाने का दावा किया है।

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 22 Oct 2016 12:52 PM

बरमूडा ट्राइएंगल का राज़ पता लगाने का दावा..

वैज्ञानिकों ने कई सौ सालों से एक अबूझ पहेली बन गए 'बरमूडा ट्राइएंगल' के आस-पास होने वाली दुर्घटनाओं की पहेली सुलझाने का दावा किया है।  साइंस चैनल 'What on Earth?' पर प्रसारित की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अजीब तरह के बादलों की मौजूदगी के चलते ही हवाई जहाज और पानी के जहाजों के गायब होने की घटनाएं बरमूडा ट्राइएंगल के आस पास देखने को मिलती है। बीते 100 साल में ही इस जगह करीब 20 ज्यादा छोटे-बड़े पानी के जहाज गायब हुए हैं जिन पर सवार 1000 से ज्यादा लोग भी कभी वापस नहीं आए। आंकड़ों के मुताबिक यहां अब तक 8000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

 

कैसे हैं ये दैत्य बादल 
वैज्ञानिकों ने इन बादलों को Hexagonal clouds नाम दिया है। ये हवा में एक बम विस्फोट की मौजूदगी के जितनी शक्ति रखते हैं और इनके साथ 170 मील प्रति घंटा की रफ़्तार वाली हवाएं होती हैं। ये बादल और हवाएं ही मिलकर पानी और हवा में मौजूद जहाजों से टकराते हैं और फिर वो कभी नहीं मिलते। 500,000 स्क्वायर किलोमीटर में फैला ये इलाका पिछले कई सौ सालों से बदनाम रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बेहद तेज रफ़्तार से बहती हवाएं ही ऐसे बादलों को जन्म देती हैं। ये बादल देखने में भी बेहद अजीब रहते हैं और एक बादल का दायरा कम से कम 45 फ़ीट तक होता है। इनके भीतर एक बेहद शक्तिशाली बन से भी ज्यादा ऊर्जा होती है। मीट्रियोलोजिस्ट  Randy Cerveny के मुताबिक ये बादल ही बम विस्फोट जैसी स्थिति पैदा करते हैं जिससे इनके आसा-पास की सभी चीज़ें बर्बाद हो जाती हैं। 

Randy Cerveny कहते हैं कि ये हवाएं इन बड़े बड़े बादलों का निर्माण करती हैं और सिर्फ ये एक विस्फोट की तरह समुद्र के पानी से टकराते हैं और सुनामी से भी ऊंची लहरे पैदा करते हैं जो आपस में टकराकर और ज्यादा ऊर्जा पैदा करती हैं। इस दौरान ये अपने आस-पास मौजूद सब कुछ बर्बाद कर देते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये बादल बरमूडा आइलैंड के दक्षिणी छोर पर पैदा होते हैं और फिर करीब 20 से 55 मील का सफ़र तय करते हैं। कोलराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और मीट्रियोलोजिस्ट Dr Steve Miller ने भी इस दावे का समर्थन किया है। उन्होंने भी दावा किया है कि ये बादल अपने आप ही पैदा होते हैं और उन्हें ट्रैक कर पाना भी बेहद मुश्किल है। 

अगली स्लाइड में जानिए क्या है बरमूडा ट्राइएंगल की कहानी...

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तो ये है 175 जहाजों और 8000 लोगों को लील गए बरमूडा ट्राइएंगल का राज़

क्या है बरमूडा ट्राइएंगल

दुनिया की कुछ अनसुलझी पहेलियों में से एक है बरमुडा ट्राइएंगल। यहां जाना आत्महत्या की तरह माना जाता है। धरती में मौजूद सबसे खतरनाक स्थानों में से एक बरमूडा ट्राइएंगल को शैतानों का टापू भी कहा जाता है। यहां पर हुई आश्चर्यजनक घटनाएं जैसे समुद्री जहाजों का गायब होना पिछले समय से ही जिज्ञासा का विषय बनी हुर्ह है। पूर्वी-पश्चिम अटलांटिक महासागर में बरमूडा त्रिकोण है। यह भुतहा त्रिकोण बरमूडा, मयामी, फ्लोरिडा और सेन जुआनस से मिलकर बनता है। शायद यह बात काल्पनिक लगे लेकिन सच यही है कि जैसे ही कोई समुद्री जहाज, नाव या फिर हवाई जहाज ही, इस त्रिकोण की सीमा के समीप पहुंचता है वह अपना संतुलन खो बैठता है और अचानक उसका नामोनिशान ही इस दुनिया से मिट जाता है।

इस ट्राइएंगल की सबसे खतरनाक बात यह है कि अब तक यह ट्राइएंगल 8,000 से अधिक लोगों का काल बन चुका है और उनके जिंदा होने की कोई भी जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है। बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को जानने वाले बहुत से लोग इस स्थान को भूतहा समझते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समुद्र में शैतानी ताकत हैं जो अपने शिकार को हाथ से नही जाने देती। कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर दूसरे ग्रह से आये एलियन का वास होता है जो इंसानों को यहां आने नही देते और उन्हें गायब कर देते हैं।

वहीं दूसरी ओर तर्कों के आधार पर बरमूडा ट्राइएंगल का हल खोजने वाले लोग इन सब घटनाओं के लिए अलग ही लॉजिक देते हैं। बरमुडा ट्राइएंगल के रहस्य को खोजने में जुटे वैज्ञानिकों का मानना है कि इस स्थान के भीतर मिथेन गैस का अकूत भंडार है जहां विस्फोट होता रहता है। इसकी वजह से पानी का घनत्व कम हो जाता है और समुद्री जहाज पानी के भीतर समा जाते हैं।

ये गैस आसमान में उडऩे वाले जहाज को भी अपनी चपेट में ले लेती है। बहुत से वैज्ञानिक यह बात भी मानते हैं कि बरमुडा ट्राइएंगल के भीतर शायद इलेक्ट्रिक कोहरा छा जाता है, जिसके आरपार दिखाई नहीं देता। परिणामस्वरूप जहाज वहीं फंसकर रह जाते हैं और अपनी दिशा भटक जाते हैं। शीत युद्ध के दौरान इस बात की अफवाह काफी फैली थी कि अमेरिका ने पूरी दुनिया को कब्जे में करने के लिए यहां गुप्त सैन्य अड्डा बना रखा है। हालांकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है।

एक और क्लिक पर जानिए कैसे बरमूडा ट्राइएंगल आया सुर्ख़ियों में...

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कैसे आया था सुर्ख़ियों में 

16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स। सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था। इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पांच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का जिक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने का घटनाक्रम काफी गंभीरता से लिया गया था। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहाँ हैं। पानी हरा है और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है।

जलसेना के अधिकारियों के हवाले से लिखा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए। यह पहला लेख था, जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परालौकिक शक्ति का हाथ बताया गया था। इसी बात को विंसेंट गाडिस, जान वालेस स्पेंसर, चार्ल्स बर्लिट्ज़, रिचर्ड विनर, और अन्य ने अपने लेखों के माध्यम से आगे बढ़ाया।  इस मामले में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय के शोध लाइब्रेरियन और ‘द बरमूडा ट्राइएंगल मिस्ट्री :  साल्व्ड’ के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया तथा उनका नतीजा बाकी लेखकों के अलग था। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया। कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस बात को बाकी लेखकों ने नजरअंदाज कर दिया था। 

ऑस्ट्रेलिया में किए गए शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मीथेन हाईड्राइड की बहुलता है। इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं।  इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग (यूएसजीएस) ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था। यह बात और है कि यूएसजीएस की वेबसाइट पर यह रहस्योद्‍घाटन किया गया है कि बीते 15000 सालों में समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले हैं। इसके अलावा अत्यधिक चुंबकीय क्षेत्र होने के कारण जहाजों में लगे उपकरण यहां काम करना बंद कर देते हैं। इससे जहाज रास्ता भटक जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।   

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