'पीएम मोदी के प्रस्ताव को ठुकराना पाक को पड़ सकता है महंगा'
भारत के रणनीतिक संयम की नीति को पाकिस्तान हल्के में न ले। अगर वह इस गलती पर टिका रहता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग के प्रस्ताव को ठुकरा देता है तो अलग-थलग पड़ जाएगा। अमेरिकी मीडिया ने...
भारत के रणनीतिक संयम की नीति को पाकिस्तान हल्के में न ले। अगर वह इस गलती पर टिका रहता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग के प्रस्ताव को ठुकरा देता है तो अलग-थलग पड़ जाएगा। अमेरिकी मीडिया ने पाकिस्तान को यह सलाह दी है।
'वाल स्ट्रीट जर्नल' में मंगलवार को छपे एक लेख में कहा गया, मोदी अभी संयम बरत रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान लगातार इसे हल्के में लेने की गलती न करे। मोदी के सहयोग-प्रस्ताव को ठुकराना पाकिस्तान को पहले से भी अधिक अलग-थलग राष्ट्र बनाने की दिशा में एक कदम होगा। अगर (पाकिस्तानी) सेना सीमा पार हथियार और आतंकी भेजना जारी रखती है तो भारत के प्रधानमंत्री के पास कार्रवाई करने के लिए मजबूत आधार होगा।
अखबार के अनुसार, आतंकवाद के मुद्दे पर नैतिकतापूर्ण व्यवहार करने के लिए भारत का सम्मानजनक दर्जा है, लेकिन पूर्ववर्ती कांग्रेस और भाजपा सरकारों में स्पष्ट रूप से इसे दिखाने का साहस नहीं था। इसके कारण रणनीतिक संयम की नीति बनी। इसका अर्थ यह हुआ कि पाकिस्तान को पर्दे के पीछे की उसकी आतंकी गतिविधियों के लिए कभी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, भले ही ये आतंकी हमले कितने भी जघन्य क्यों न हों।
अखबार ने सैन्य कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लेने के लिए मोदी की तारीफ की। आलेख में कहा गया, मोदी ने सैन्य कार्रवाई की जगह संकल्प लिया कि यदि पाक सेना आतंकी समूहों का समर्थन करना बंद नहीं करती है तो वह पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए कदम उठाएंगे। वह 1960 की सिंधु जल-संधि को रद्द करने पर विचार कर रहे हैं। वह व्यापार में सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा भी पाकिस्तान से वापस ले सकते हैं।
स्टिम्सन सेंटर के दक्षिण एशिया कार्यक्रम के उपनिदेशक समीर लालवानी ने ‘फॉरेन अफेयर्स’ में प्रकाशित एक लेख में कहा, उरी हमले के मद्देनजर भारतीय नीति निर्माताओं की स्वाभाविक नाराजगी एवं निराशा बड़ी सैन्य कार्रवाई के लिए गति बना रही है। बड़ी सैन्य प्रतिक्रिया बदले की भावना को संतुष्ट कर सकती है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह भारत के राजनीतिक हितों, विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा के संदर्भ में कारगर होगी या नहीं।
कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के जॉर्ज पेरकोविच ने कहा, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर स्थित लक्ष्यों पर, छोटे स्तर पर जैसे को तैसा की कार्रवाई करना भारत के लिए सबसे कारगर तरीका नहीं होगा। सबसे कारगर तरीका यह है कि भारत पाकिस्तान को दंडित करने के लिए पर्याप्त राजनीतिक और आर्थिक दबाव बनाने को लेकर शेष दुनिया को राजी करे।