जर्मनी में चमत्कार: दिखे दो सूरज, एक असली और दूसरा नकली
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विश्व में ऊर्जा की समस्या को खत्म करने के लिए वैज्ञानिक काफी समय से कृत्रिम सूरज बनाने की कोशिश में थे। दो साल के कठोर प्रयास के बाद जर्मनी ने आखिरकार कृत्रिम सूरज बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। आज सूरज को सबके सामने लाया गया।
इन दिनों रीन्युअल एनर्जी पर काफी जोर दिया जा रहा है। जर्मनी काफी समय से ही इसपर काम कर रहा था। इसलिए जर्मन स्पेस सेंटर ने एक कृत्रिम सूरज बनाया है। जैसे चीन ने कृत्रिम बारिश बनानकर महारथ हासिल की थी, ठीक उसी तरह जर्मनी कई सालों से इसपर शोध कर रहा था।
कार्बन मुक्त बिजली बनाने के लिए परीक्षण की शुरुआत बहुत साल पहले ही हो गई थी। जर्मनी के परीक्षण सेंटर में हीलियम का इस्तेमाल करके पहला प्लाज्मा बनाया जा चुका है। परीक्षण कारखाने में शोधकर्ता सूरज की प्रक्रियाओं की तरह होने वाले नाभिकीय संलयन पर लंबे समय से शोध कर रहे थे ताकि उसका इस्तेमाल धरती पर ऊर्जा पैदा करने के लिए किया जा सके और आखिरकार इतने साल बाद 2017 के मार्च में इसको सफलता मिल गई है।
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वेंडेलश्टाइन 7एक्स टेस्ट संयंत्र दुनिया के सबसे बड़े संलयन (फ्यूज़न) टेस्ट संयंत्रों में से एक है। 2017 से वेंडेलश्टाइन संस्थान प्लाज्मा बनाने के लिए डॉयटेरियम का इस्तेमाल शुरू कर चुकी है। इस हाइड्रोजन आइसोटोप के इस्तेमाल से बिजली बनाने की प्रक्रिया के दौरान बहुत कम रेडियोएक्टिविटी उत्पन्न होती है।
जर्मनी के ग्राइफ्सवाल्ड शहर के रिएक्टर वेंडेलश्टाइन में 10 करोड़ डिग्री के तापमान पर परमाणु विस्फोट किया गया, जो पहले संभव नहीं था। इसके लिए पहले प्लाज्मा का निर्माण किया गया। कंट्रोल सेंटर की निगरानी में 10 मिलीग्राम हीलियम एक वैक्यूम चेंबर के चुंबकीय क्षेत्र में भेजी गई। उसे 10 लाख डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया गया।
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कैसे बनता है प्लाज्मा
इस परमाणु शोध संयंत्र में कार्बन मुक्त बिजली बनाने के लिए परीक्षण की शुरुआत हुई। वैक्यूम चैंबर में माइक्रोवेव हीटर से अत्यंत विरल हीलियम को गर्म किया जाता है। इसके जरिये गैस का आयनीकरण हो जाता है और वह प्लाज्मा का रूप ले लेती है।
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