रूस तक मालवहन रेल नेटवर्क से जुड़ा भारत, 7 अगस्त को पहला सफर
भारत से रूस तक माल वहन का रास्ता 7 अगस्त से आसान हो जाएगा। चार देशों की एक रेल परियोजना के तहत भारत से ट्रेन कंटेनरों में लदा सामान ट्रेन मार्ग के जरिए रूस तक पहुंचेगा। इसके लिए पहले मुंबई से माल...
भारत से रूस तक माल वहन का रास्ता 7 अगस्त से आसान हो जाएगा। चार देशों की एक रेल परियोजना के तहत भारत से ट्रेन कंटेनरों में लदा सामान ट्रेन मार्ग के जरिए रूस तक पहुंचेगा। इसके लिए पहले मुंबई से माल पोर्ट के जरिए समुद्र मार्ग से ईरान के चाबहार बंदरगाह तक पहुंचेगा। इसके बाद यहां से रेल मार्ग के जरिए सीधे रूस के सेंट पीटर्सबर्ग पहुंच जाएगा। इस तरह कहा जा सकता है कि रेल नेटवर्क के जरिए भारत और रूस का मिलन हो जाएगा।
मुंबई से मास्को तक होगी 7 हजार किलो मीटर की दूरी
यह रेल प्रोजेक्ट भारत से होकर ईरान, अजरबैजान होते हुए रूस तक पहुंच रहा है। भारत से यह बंदरगाह के जरिए जुड़ेगा। यानी ईरान के चाबहार बंदरगाह तक सामान समुद्र मार्ग के जरिए भारत से पहुंचेगा। इसके बाद चाबहार में भारत द्वारा निर्मित रेल ट्रैक से समान ट्रेन पर लादा जाएगा। 'उतरी-दक्षिणी' इस प्रोजेक्ट का रूट 7 हजार किलो मीटर का है। इस रेल से चार देश रूस, अजरबैजान, ईरान और भारत जुड़ेंगे। अंग्रेजी अखबार 'रशिया & इंडिया रिपोर्ट' के मुताबिक, 'रूस रेलवे' के प्रथम अलिक्सान्दर मिशारीन ने कहा, शुरू में हम इस नए रेलमार्ग पर मालगाड़ियां चलाकर देखेंगे। इस रूट पर पहली मालगाड़ी मुंबई से आगामी 7 अगस्त को मास्को के लिए रवाना होगी।
बीच में एक बार सड़क मार्ग पर चलेगा कंटेनर
अजरबैजान रेलवे के अध्यक्ष जावेद गुरबानफ ने कहा कि आने वाले तीन-चार हफ्तों में ऐसी पहली ट्रेन अपनी मंजिल की तरफ रवाना होगी। उन्होंने बताया कि इस नए रेलमार्ग का रास्ता मुंबई से ईरान के बेन्देर-अब्बास बन्दरगाह तक पहुंचेगा। उसके बाद यह रेल ईरान के रेश्त नगर तक जाएगी। ईरान की उत्तरी सीमाओं पर बसे रेश्त नगर और अजरबैजान के सीमावर्ती नगर अस्तारा के बीच रेल लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं हुआ है। इसलिए इस मालगाड़ी पर लदे सारे कण्टेनर सड़क के रास्ते से अस्तारा ले जाए जाएंगे। जहां से इन कण्टेनरों को फिर से रेलगाड़ी पर लादकर उन्हें मास्को रवाना किया जाएगा।
साल के अंत तक बन जाएगा 8 किमी का रेल ट्रैक
रेश्त नगर और अस्तारा के बीच रेल लाइन बिछाने के बारे में अजरबैजान के प्रधानमंत्री का इलिहाम अलियेव का कहना है कि इस साल के आखिर तक 8 किलोमीटर के इस टुकड़े पर रेल लाईन बिछा दी जाएगी। इस काम में ये वक्त इसलिए लगेगा क्योंकि रास्ते में एक पुल बनाना होगा। तब तक ईरान और अजरबैजान दों देशों के रेलमार्ग को आपस में जोड़ने के बारे में एक समझौता कर लिया जाएगा। उसके बाद 'उतरी-दक्षिणी गलियारे' का सक्रियता से इस्तेमाल शुरु कर दिया जाएगा।
कब हुआ था समझौता
12 सितंबर 2000 को रूस के सेण्ट पीटर्सबर्ग नगर में रूस, ईरान और भारत ने अन्तरराष्ट्रीय परिवहन गलियारे 'उतरी-दक्षिणी' का निर्माण करने के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता 21 मई 2002 से लागू हो गया। बाद में 2005 में अजरबैजानन भी इस समझौते में शामिल हो गया और वह भी परियोजना में सहयोग करने लगा।
यूरोप तक माल ढुलाई हो जाएगी सस्ती
'उतरी-दक्षिणी' गलियारी परियोजना के अन्तर्गत रेल लाईन बिछाने का काम पूरा होने के बाद यह गलियारा अन्य वैकल्पिक अन्तरराष्ट्रीय परिवहन मार्गों के मुकाबले बड़ा फायदेमंद होगा। इसकी वजह से फारस की खाड़ी से यूरोप तक मालों की ढुलाई बहुत कम समय में और बहुत कम लागत पर होने लगेगी, जिससे बड़ा आर्थिक लाभ होगा।
इस परियोजना में शामिल सभी देशों के विशेषज्ञों का यह मनना है कि 'उतरी-दक्षिणी' गलियारे के बन जाने से इससे जुडें चारों देशों (रूस, अजरबैजान, ईरान, भारत) को बड़ा फायदा होगा। जब मुंबई से सेण्ट पीटर्सबर्ग और हेलसिंकी तक जाने वाले इस रास्ते पर मालगाड़ियों के साथ-साथ यात्री गाड़ियां भी चलने लगेंगी तो यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला एक लोकप्रिय रास्ता बन जाएगा।