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विकसित देश अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं कर रहे : भारत

भारत ने हर देश की राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं को अहम परिवर्तन लाने वाली करार देते हुए इस बात पर गहरी चिंता जताई कि जलवायु परिवर्तन वार्ताकारों ने वार्ता संबंधी जो नया मसौदा जारी किया है, उनमें इन...

विकसित देश अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं कर रहे : भारत
एजेंसीThu, 10 Dec 2015 10:16 AM
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भारत ने हर देश की राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं को अहम परिवर्तन लाने वाली करार देते हुए इस बात पर गहरी चिंता जताई कि जलवायु परिवर्तन वार्ताकारों ने वार्ता संबंधी जो नया मसौदा जारी किया है, उनमें इन योजनाओं को शामिल नहीं किया गया है। भारत ने कहा कि विकसित देशों ने अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं कीं।

भारत ने वित्त संबंधी मुद्दे को निराशाजनक बताया और कहा कि विकसित देश अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने में असफल रहे हैं और साथ ही वे अपनी जिम्मेदारी को विकसित देशों पर हस्तांतरित करना चाहते हैं।

भारत ने कहा कि विकसित देशों द्वारा वित्तीय मदद बढ़ाने का कोई संकेत नहीं दिया गया है और न कि इस संबंध में कोई रोडमैप पेश किया गया।

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा, 'मुझे इस बात पर जोर देना होगा कि अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) एक बड़ी नवीन खोज है और यह महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाली साबित हुई है। इसने 186 से अधिक देशों की भागीदारी को समर्थ बनाया है। इसके बावजूद आईएनडीसी का मसौदे में जिक्र नहीं किया गया।'

जावड़ेकर ने कहा, 'वित्त की बात करें, तो यह बेहद निराशाजनक है कि एक ओर तो विकसित देश अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं कर रहे और दूसरी ओर, वे अपनी जिम्मेदारी विकासशील देशों पर हस्तांतरित करने की कोशिश कर रहे है। वित्तीय मदद बढ़ाने का कोई संकेत नहीं दिया गया है और न ही कोई स्पष्ट रोडमैप बनाया गया है।'

पेरिस आउटकम का पहला मसौदा दो दिवसीय उच्च मंत्री स्तरीय गहन विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इसे फ्रांस के विदेश मंत्री लॉरेंत फैबियस ने जारी किया।      

नया मसौदा पिछले 43 पृष्ठीय संस्करण के मुकाबले काफी छोटा, महज 29 पृष्ठों का है जिसे वार्ता में शामिल सभी देशों को वितरित किया गया।

भारत ने मजबूती से अपनी बात रखी कि ऐतिहासिक जिम्मेदारियों को कम करके या प्रदूषकों और पीड़ितों को समान स्तर पर लाकर पेरिस में कोई स्थायी समझौता तैयार नहीं किया जा सकता।

भारत ने प्रेजीडेंसी के नेतृत्व एवं प्रयासों की भी सराहना की और इस बात पर जोर दिया कि वह जी-77 की ओर से दिए गए बयान से खुद को जोड़ता है।

जावड़ेकर ने ताजा मसौदे को केवल निर्णायक कदम का शुरूआती बिंदु बताते हुए कहा कि वार्ता के इस चरण में कई अलग-अलग रूख हैं और किसी एक आम सहमति पर पहुंचने के लिए बहुत काम करने की आवश्यकता है।

भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि जो समझौता तैयार किया जा रहा है, उसमें जलवायु महत्वाकांक्षाओं और भिन्न दायित्वों के सिद्धांत के बीच संतुलन होना चाहिए क्योंकि दोनों समान रूप से महत्पूर्ण हैं और एक के बिना दूसरे को प्राप्त करना संभव नहीं है।

जावड़ेकर ने कहा, समझौते में पहले इस बात की फिर से पुष्टि किए जाने की आवश्यकता है कि यह संधि (यूएनएफसीसीसी) के तहत है और सिद्धांतों के अनुरूप है। इसका लक्ष्य संधि के क्रियान्वयन को इसके सभी स्तम्भों तक विस्तारित करना है।

उन्होंने कहा, यह अहम है। संधि के सिद्धांतों को अनावश्यक बातें जोड़े बिना सही तरीके से रखा जाना होगा।

भारत ने यह भी कहा कि समझौते को इसके सभी तत्वों के बीच भिन्नता को सार्थक तरीके से लागू करना चाहिए जो कि मौजूदा मसौदे में स्पष्ट नहीं है।

भारत ने यह भी कहा कि वह एक मजबूत पारदर्शी तंत्र के समर्थन में है लेकिन इसे केवल न्यूनीकरण के भी नहीं बल्कि सभी पहलुओं विशेषकर वित्त के मामले में भी लागू किया जाना चाहिए।

जावड़ेकर ने कहा, पारदर्शी तंत्र में सभी देश एक भिन्न तरीके से शामिल होने चाहिए। उस मौजूदा तंत्र का क्रियान्वयन विकासशील देशों के अनुभव और क्षमता निर्माण के लिए एक अहम तत्व है जिसे अभी लागू नहीं किया गया है। इसलिए परिवर्तन आने से पहले बदलाव का दौर आवश्यक है।

भारत ने मजबूती से कहा कि मसौदे में एकपक्षीय कदम, स्थायी जीवनशैली और जलवायु न्याय समेत उसकी कई चिंताओं का जिक्र नहीं किया गया।

जावड़ेकर ने कहा, हम मसौदे को गौर से देखेंगे और किसी समझौते पर पहुंचने के लिए हमारे साक्षीदारों के साथ मिलकर काम करेंगे।

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