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चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का प्रवाह रोका

चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी का प्रवाह रोक दिया है। इससे भारत में चिंता पैदा हो सकती है, क्योंकि इससे भारत और बांग्लादेश के इलाकों में ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह प्रभावित...

चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का प्रवाह रोका
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 01 Oct 2016 08:13 PM
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चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी का प्रवाह रोक दिया है। इससे भारत में चिंता पैदा हो सकती है, क्योंकि इससे भारत और बांग्लादेश के इलाकों में ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह प्रभावित हो सकता है। चीन ने शियाबुकू का प्रवाह ऐसे समय रोका है, जब भारत उरी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ सिंधु जलसंधि से संबंधित वार्ता निलंबित करने का कथित फैसला कर चुका है।

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, चीन ने यारलुंग जांगबो (ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) की सहायक शियाबुकू नदी का प्रवाह शुक्रवार को रोक दिया। यह कदम लाल्हो परियोजना के तहत उठाया गया, जो चीन की सबसे महंगी पनबिजली परियोजना है। इस परियोजना के तहत तिब्बत के शिगाजे इलाके में शियाबुकू नदी पर बांध बनाया जा रहा है। एजेंसी ने परियोजना के प्रशासनिक ब्यूरो के प्रमुख झांग युन्बो के हवाले से कहा, इसमें 4़95 अरब युआन (49.25 अरब रुपये या 74 करोड़ डॉलर) का निवेश किया गया है। 

शिगाजे को शिगात्से भी कहते हैं। यह स्थान सिक्किम से लगा हुआ है। ब्रह्मपुत्र नदी शिगाजे से होकर अरुणाचल प्रदेश में पहुंचती है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि शियाबुकू का प्रवाह रोकने का भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र के जल-प्रवाह पर क्या असर होगा। लेकिन यह चिंता का सबब बन सकता है। 

दबाव बनाने की रणनीति!
क्षेत्र के वर्तमान कूटनीतिक हालात के मद्देनजर चीन का यह कदम भारत पर दबाव बनाने की रणनीति हो सकता है। उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ बरसों पुरानी सिंधु जलसंधि की समीक्षा की घोषणा की। संधि के तहत आने वाली नदियों के अधिकतम जल का उपयोग करने की बात कही गई। इसका मकसद स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना था। भारत की इस पहल पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने सतर्क प्रतिक्रिया दी थी। शुआंग ने बीते मंगलवार कहा कि चीन, भारत और पाकिस्तान दोनों का मित्रवत पड़ोसी है। उसे उम्मीद है कि भारत-पाक अपने विवादों को उचित ढंग से सुलझाएंगे। हालांकि उसी समय जानकारों ने अंदेशा जताया कि सिंधु जलसंधि पर भारत की पहल के बाद पाकिस्तान का प्रमुख सहयोगी चीन ब्रह्मपुत्र का प्रवाह रोक सकता है। सिंधु जलसंधि में शामिल कुछ नदियों का उद्गम भी चीन में ही है। 

लाल्हो पनबिजली परियोजना 
-2014 के जून में निर्माण कार्य शुरू, 2019 में पूरा होने की उम्मीद
-49.25 अरब रुपये निवेश कर चुका है चीन इस परियोजना में 
-29.5 करोड़ घनमीटर पानी एकत्र किया जा सकेगा इस बांध के जलाशय में 

चिंता का सबब
-बीते साल चीन ने 1़5 अरब डॉलर (99.83 करोड़ रुपये) के खर्चे से बना जाम पनबिजली स्टेशन चालू किया
-ब्रह्मपुत्र पर बना जाम पनबिजली स्टेशन तिब्बत में सबसे बड़ा पनबिजली स्टेशन है 
-तिब्बत में ब्रह्मपुत्र की मुख्यधारा पर तीन और पनबिजली परियोजनाओं के कार्यान्वयन की मंजूरी दे चुका है चीन
-चीन की 12वीं पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा से मिले हैं इस मंजूरी के संकेत

चीन का दावा 
-भारत ने चीन में ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जा रहे बांधों को लेकर अपनी चिंताओं से बीजिंग को लगातार अवगत कराया है
-चीन कहता रहा है कि उसके बांध नदी परियोजनाओं के प्रवाह पर बने हैं, जिन्हें जल रोकने के लिए नहीं बनाया गया है

भारत-चीन में कोई जलसंधि नहीं 
-भारत और चीन के बीच सीमा पार नदियों से जुड़े मुद्दों के लिए एक विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र है
-अक्तूबर 2013 में दोनों ने ऐसी नदियों पर सहयोग बढ़ाने को समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए 
-इसके तहत बीजिंग की ओर से भारत को जल प्रवाह से जुड़े आंकड़े मुहैया कराए जाते हैं 

एक नदी के कई नाम
-ब्रह्मपुत्र नदी चीन, भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है
-इसका उद्गम तिब्बत स्थित चेमायुंगदुंग ग्लेशियर है, यह बंगाल की खाड़ी जाकर समुद्र में मिलती है
-इसे चीन में शांगपो, तिब्बत में यारलुंग जांगबो और अरुणाचल प्रदेश में शियांग या दिहांग भी कहते हैं
-कुल लंबाई लगभग 2900 किलोमीटर है, भारत में इसकी लंबाई लगभग 916 किलोमीटर है

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