फोटो गैलरी

Hindi Newsहोली की मस्ती में ऐसे बचें केमिकल रंगों से!

होली की मस्ती में ऐसे बचें केमिकल रंगों से!

नए साल के आने की खुशी में मनाए जाने वाले रंगों के त्योहार में लोग गिले-शिकवे भूल अबीर-गुलाल और रंगों से रंग जाते हैं। वैसे मुनाफा कमाने की आड़ में अब होली के मौकों पर सजने वाले बाजारों में कृत्रिम व...

होली की मस्ती में ऐसे बचें केमिकल रंगों से!
एजेंसीThu, 24 Mar 2016 01:32 PM
ऐप पर पढ़ें

नए साल के आने की खुशी में मनाए जाने वाले रंगों के त्योहार में लोग गिले-शिकवे भूल अबीर-गुलाल और रंगों से रंग जाते हैं। वैसे मुनाफा कमाने की आड़ में अब होली के मौकों पर सजने वाले बाजारों में कृत्रिम व रासायनिक रंग और गुलाल का वर्चस्व हो गया है।

होली के दौरान, अक्सर लोग उत्साह में सब भूल जाते हैं और बाद में उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में लोग कृत्रिम रंग के प्रयोग से त्वचा और बालों संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं।

होली पर्व से एक महीने पहले ही फगुआ के गीत गूंजने लगते हैं और अबीर और गुलाल उड़ाए जाते रहे हैं। ऐसे तो बिहार के सभी इलाकों में रंगों और गुलालों से सजे बाजार हैं, लेकिन इसमें अधिकांश कृत्रिम रंग होते हैं जो शरीर के लिए नुकसानदेह माने जाते हैं।

पटना के जाने-माने चर्म रोग के चिकित्सक डॉ. रवि विक्रम सिंह ने बताया कि इन तमाम रंगों में ऐसे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो कपड़ों के रंगने के काम आते हैं। इन रंगों का दुष्प्रभाव आंख, कान, त्वचा सहित शरीर के कई जगहों पर पड़ता है। उनका कहना कि होली के मौके पर बाजार में उपलब्ध अधिकांश रंग कृत्रिम होते हैं।

बुजुर्गों के मुताबिक, पूर्व में जहां एक खास तरह के पेड़ के छाल को पीस कर पाउडर बनाकर गुलाल बनाया जाता था, वहीं टेसू और पलाश के फूलों से शुद्ध रंग बनाया जाता था, लेकिन अब ये बातें केवल सुनने और कहानियों की तरह हो गई हैं।

बिहार में नील की खेती सबसे अधिक होती थी और उससे नीला रंग तैयार होता था। इस कारण होली के मौके पर भी इन नीले रंगों का खूब इस्तेमाल किया जाता था।

बताया जाता है कि टेसू मई-जून महीने में फूलता था, जिसे सुखा कर रख दिया जाता था। होली के दिनों में उन्हीं फूलों को पानी में उबाल कर रंग बनाया जाता था।

जानकारों का कहना है कि आज के समय में जो गुलाल बाजार में उपलब्ध हैं, उसमें एसिड, स्कारलेट और कई तरह के खतरनाक रासायनिक पदार्थ मिलाए जाते हैं।

पटना में रंग के कारोबारी अविनाश कुमार कहना है कि कृत्रिम रंगों का प्रचलन कोई नया नहीं हैं। पहले बिहार में ऐसे रंग कम होते थे। होली के दिनों में अधिकांश रंग कपड़ा रंगने वाला होता है। बाजार में हर्बल गुलाल भी आ गए हैं, लेकिन महंगा होने के कारण लोग इसे कम खरीदते हैं।

पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सक डॉ. सतीश कुमार ने बताया कि कई बार चेहरे पर रंग लगने से चिनचिनाहट होने लगती है और इन रंगों को धोने के बाद गाल की त्वचा पर लाल-लाल छाले निकल जाते हैं और इनमें खुजली होने लगती है। इन रंगों से आंखों को भी काफी नुकसान होने का डर बना रहता है।  

उन्होंने बताया कि होली खेलने के पूर्व चेहरे, हाथों और शरीर के खुले हिस्सों पर मॉश्च्युराइजर क्रीम या सनस्क्रीन लोशन अच्छे से लगाना चाहिए। क्रीम 10 मिनट तक त्वचा पर रगड़ें और कुछ देर सूखने दें। इससे आप होली के रंगों के कुप्रभाव से बच सकेंगे।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें