फोटो गैलरी

Hindi Newsपेट के ऑपरेशन से दूर हो सकती है पार्किंसन की बीमारी!

पेट के ऑपरेशन से दूर हो सकती है पार्किंसन की बीमारी!

शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में दावा किया है कि पार्किंसन की बीमारी की शुरुआत पेट में होती है। अगर पाचन तंत्र की तंत्रिका का एक हिस्सा निकाल देने से इस बीमारी का जोखिम काफी हद तक कम किया जा सकता...

पेट के ऑपरेशन से दूर हो सकती है पार्किंसन की बीमारी!
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 27 Apr 2017 08:47 PM
ऐप पर पढ़ें

शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में दावा किया है कि पार्किंसन की बीमारी की शुरुआत पेट में होती है। अगर पाचन तंत्र की तंत्रिका का एक हिस्सा निकाल देने से इस बीमारी का जोखिम काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

प्रोटीन की करामात : 
स्वीडन के स्टॉकहोम स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि तंत्रिकाओं के विघटन से जुड़ी यह बीमारी पेट में एक खास प्रोटीन के कारण शुरू होती है। यह प्रोटीन गलत तरीके से मुड़ सकता है और एक से दूसरी कोशिका तक इस गलती को फैला सकता है। इस तरह पार्किंसन की बीमारी वेगस तंत्रिकाओं के जरिये दिमाग तक पहुंचती है। वेगस तंत्रिका एक मिश्रित तंत्रिका होती है जो कंठ नली, फेफड़े, दिल, भोजन नली, अन्न प्रणाली, पेट और आंतों तक आपूर्ति करती है। 

वेगस तंत्रिका की भूमिका : 
शोधकर्ताओं ने कहा, ये तंत्रिकाएं पेट से लेकर मस्तिष्क के आधार तक फैली होती हैं। ये हमारे शरीर में दिल की धड़कन और भोजन के पाचन जैसी अवचेतन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती हैं। अपने अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, जिन मरीजों ने इस तंत्रिका के हिस्से को निकालने के लिए सर्जरी कराई उनमें ऐसा नहीं करवाने वाले लोगों के मुकाबले पार्किंसन के विकसित करने की संभावना 40 फीसदी कम पाई गई। 

सर्जरी से सुधार : 
इस अध्ययन में उन लोगों का परीक्षण किया गया जिन्होंने वेगोटॉमी सर्जरी कराई थी। इस सर्जरी में जरूरत के मुताबिक वेगस तंत्रिका की मुख्य नली या सहायक शाखाएं काटकर हटा दी जाती हैं। डॉक्टर प्राय: पेट में अल्सर से पीड़ित लोगों को यह सर्जरी कराने को कहते हैं। पूर्ण वेगोटॉमी में इस तंत्रिका की पूरी नली निकाल दी जाती है। जबकि आंशिक वेगोटॉमी में तंत्रिका की चुनिंदा शाखाएं ही काटी जाती हैं। 

हजारों मरीजों का अध्ययन :
शोधकर्ताओं ने स्वीडन के सरकारी दस्तावेजों से उन 9,400 लोगों के बारे में जानकारी ली, जिन्होंने बीते चार दशक के अंतराल में वेगोटॉमी कराई थी। इनकी तुलना उन्होंने उन 3.77 लाख लोगों के आंकड़ों से की, जिन्होंने उसी अंतराल में ऐसी कोई सर्जरी नहीं कराई थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि वेगोटॉमी करा चुके लोगों में से सिर्फ 101 लोगों (1.07 फीसदी) में पार्किंसन विकसित हुआ। 
जबकि वेगोटॉमी नहीं कराने वाले लोगों में से 4,829 (1.28 फीसदी) पार्किंसन की चपेट में आए। यह भी पता चला कि जिन लोगों ने पूर्ण वेगोटॉमी कराई थी उनके पार्किंसन की चपेट में आने का खतरा यह सर्जरी नहीं कराने वालों के मुकाबले 40 फीसदी कम था। यह अध्ययन अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी नामक जर्नल में छपा है। 

पेट और पार्किंसन की बीमारी
-बीते साल कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुए अध्ययन से पेट में मौजूद बैक्टीरिया और पार्किंसन की बीमारी के बीच संबंध का पता चला। 
-एक अन्य अध्ययन के अनुसार, पाचन तंत्र से जुड़ी कब्ज जैसी समस्याएं दशकों बाद जाकर पार्किंसन की बीमारी को विकसित कर सकती हैं। 

क्या है पार्किंसन की बीमारी
-यह तंत्रिका के क्षरण से जुड़ी बीमारी है, जो बढ़ती जाती है। 
-थरथराहट, गति में धीमापन, मांसपेशियों में सख्ती, अंगों की अवस्था और संतुलन में गड़बड़ी, स्वाभाविक गतिशीलता में समस्या और बोलने व लिखने में बदलाव इसके सामान्य लक्षण हैं। 
-फिलहाल इसका मुकम्मल उपचार नहीं है। लेकिन विभिन्न उपायों से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। 
-विश्व में 70 लाख से लेकर एक करोड़ तक लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। 
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें