ऐसे तो नहीं होगा जल का टिकाऊ प्रबंधन
अभी मार्च का महीना खत्म भी नहीं हुआ है, और गरमी तेज होने लगी है। नतीजतन देश में पानी का संकट गहराता जा रहा है। आज भी देश के बहुतेरे इलाके पानी से महरूम हैं। वहां पानी के लिए मारामारी हो रही है, लोग...
अभी मार्च का महीना खत्म भी नहीं हुआ है, और गरमी तेज होने लगी है। नतीजतन देश में पानी का संकट गहराता जा रहा है। आज भी देश के बहुतेरे इलाके पानी से महरूम हैं। वहां पानी के लिए मारामारी हो रही है, लोग हिंसा पर उतारू हैं।
पानी के अभाव में घर-बार, खेती-बाड़ी सब कुछ छोड़कर वे पलायन को मजबूर हैं। महाराष्ट्र के लातूर में सार्वजनिक कुओं पर पानी भरने वालों की अनियंत्रित भीड़ को काबू कर पाने में स्थानीय प्रशासन के नाकाम रहने और पानी पहुंचाने वाले टैंकरों के लूटे जाने की घटनाओं के चलते प्रशासन को धारा 144 लगाना पड़ा।
वहां कई शिक्षण संस्थाओं को प्रशासन ने इसलिए बंद कर देने का आदेश दिया है, ताकि बाहर से वहां आए छात्र अपने-अपने घर लौट जाएं और पानी की आपूर्ति का दबाव कम हो।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र का लातूर एक ऐसा इलाका है, जहां दशकों से सूखा है। सरकारी उदासीनता के चलते वहां पानी का व्यापार करने वालों का साम्राज्य पसरा है। वैसे सच यह भी है कि महाराष्ट्र का बहुत बड़ा भूभाग दशकों से जल-संकट का सामना कर रहा है, जिसकी बड़ी वजह है, गन्ने की व्यावसायिक खेती। इसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है। फिर ड्रिलिंग मशीनों के द्वारा पानी खींचे जाने की वजह से स्थिति और विकराल हो गई है।
दावे कुछ भी किए जाएं, मगर आज पूरा देश पानी की कमी से जूझ रहा है। हमारे यहां औसतन 1,170 मिलीमीटर सालाना बारिश होती है। बारिश और बर्फ के पिघलने से साल भर में करीब 4,000 घन किलोमीटर पानी हमें मिलता है, जिसमें से 80 फीसदी बिना इस्तेमाल के बह जाता है। इस कारण हरेक आदमी को औसतन 1,820 घनमीटर पानी सालाना मिलने का आकलन है। मगर इतना भी सबको नहीं मिल पाता। वर्षा के पानी का बिना इस्तेमाल बेकार में बह जाना और उपलब्ध पानी की बर्बादी इसकी वजह है। भूजल का अंधाधुंध दोहन भी बड़ा कारण है। ओडिशा, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हरियाणा और बुंदेलखंड जैसे इलाके वैसे भी बारिश कम होने के कारण पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
होना यह चाहिए कि ऐसी तमाम जगहों पर पानी का कारोबार करने वाली कंपनियों को या बड़े-बड़े बहुमंजिले अपार्टमेंट्स, रिसॉर्ट आदि बनाने की इजाजत न दी जाए। जरूरत जागरूकता बढ़ाने की भी है। क्या ऐसी कोशिशें नहीं होनी चाहिए कि विकास-कार्य के दौरान पर्यावरण को कम क्षति पहुंचे? टिकाऊ जल प्रबंधन वक्त की मांग है। पानी के उचित और समान वितरण के लिए प्रशासनिक और सामुदायिक व्यवस्था बनानी होगी। लोगों को पता होना चाहिए कि ताजे पानी की उपलब्धता बहुत सीमित है। हालांकि यह बात ठीक तरह से उन्हें उसी सूरत में समझ में आएगी, जब पानी का वास्तविक आर्थिक महत्व और इसका सही मूल्य उन्हें पता चलेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)