अपनी-अपनी द़ृष्टि
सूफी संत बुल्ले शाह से एक आदमी ने प्रभु-प्राप्ति का मार्ग बताने का निवेदन किया। तब संत धान रोपने में व्यस्त थे। आदमी इंतजार करते हुए उकता गया। अंतत: अधीर होकर बोला, बड़ी आशा लेकर आया था। बुल्ले शाह ने...
सूफी संत बुल्ले शाह से एक आदमी ने प्रभु-प्राप्ति का मार्ग बताने का निवेदन किया। तब संत धान रोपने में व्यस्त थे। आदमी इंतजार करते हुए उकता गया। अंतत: अधीर होकर बोला, बड़ी आशा लेकर आया था। बुल्ले शाह ने कहा, अरे! इतनी देर से मैं तुझे मार्ग ही तो बता रहा था। यह सुनकर आदमी ने कहा, आप तो धान की रोपाई में लगे थे। तब संत ने हंसते हुए कहा, ‘इसमें भी तो भगवान को पाने का मार्ग छिपा है। यह जो मन संसार में लगा है, इसको धान के बूटे की तरह यहां से उखाड़कर उधर प्रभु में लगा दो। बस हो गया अपना काम।’
साधना का इससे आसान रास्ता और कुछ नहीं हो सकता। बस यह दृष्टि समझ में आ जानी चाहिए। दिन के बाद रात आती है और रात के बाद दिन। जिसके पास सकारात्मक नजर है, वह यही सोचेगा कि कितनी अद्भुत है प्रकृति की दिनचर्या, जहां इधर भी दिन है और उधर भी दिन है, बीच में थोड़े समय के लिए रात। दोनों ओर उजाला, बीच में थोड़ा सा अंधेरा। यह ऐसी सकारात्मक दृष्टि है, जिससे जीवन में आशाएं जिंदा रहती हैं। वहीं, नकारात्मक दृष्टि यह सोचती है, कैसा है यह प्रकृति का अन्याय। इधर भी रात, उधर भी रात, बीच में थोड़े समय के लिए दिन।
नकारात्मक दृष्टि में दूसरों की सिर्फ आलोचना होती है, जो खुद की कमियां छिपाने में विश्वास रखती है, जबकि सकारात्मक दृष्टि में आत्मालोचना की पर्याप्त संभावना रहती है, जो खुद के लिए रास्ता बनाती है। यहां पर हमें जेफ गोल्डब्लम के कथन को याद रखना चाहिए कि ‘किसी पर पूरी तरह यकीन करना आनंदित करने वाला है।’ विश्वास में ‘नकार’ नहीं, ‘सकार’ होता है।