उनकी भी सुनो
सुबह से उखड़ा हुआ था वह। और ज्यादा उखड़ गया। बॉस ने बातचीत के लिए बुलाया था। लेकिन उसकी बात सुनने को तैयार ही नहीं हुए वह। 'बातचीत करते हुए लीडर को टीम के हर शख्स को पूरा मौका देना चाहिए। कम से कम...
सुबह से उखड़ा हुआ था वह। और ज्यादा उखड़ गया। बॉस ने बातचीत के लिए बुलाया था। लेकिन उसकी बात सुनने को तैयार ही नहीं हुए वह। 'बातचीत करते हुए लीडर को टीम के हर शख्स को पूरा मौका देना चाहिए। कम से कम किसी को यह नहीं लगना चाहिए कि उसकी बात सुनी नहीं गई।' यह मानना है डॉ. सूजन क्रॉस ह्विटबोर्न का। वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। एमहर्स्ट की मैसाच्यूसेट्स यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी और ब्रेन साइंस की प्रोफेसर हैं। उनकी बेहद चर्चित किताब है, द सर्च ऑफ फुलफिलमेंट। दरअसल, टीम में हर तरह के लोग होते हैं। कुछ अपनी बात बहुत आराम से कह पाते हैं। कुछ लोग अपनी बात कह ही नहीं पाते। वे काम करते रहते हैं। लेकिन ठीक से बात नहीं रख पाते।
ऐसे लोगों को कुछ ज्यादा वक्त देना पड़ता है। वे धीरे-धीरे खुलते हैं। उनके साथ अच्छा-खासा धीरज रखने की जरूरत होती है। यों लीडर के लिए काम ज्यादा अहम होना चाहिए। अगर उसकी टीम के किसी साथी को कोई दिक्कत आ रही है, तो वह भी उसे ही देखना चाहिए। उसके लिए जरूरी है कि साथी की बात को ठीक से सुना जाए। अपनी बात जरूर कहनी चाहिए। लेकिन उसकी बात पूरी सुनकर। अक्सर लीडर अपनी बात तो कह देते हैं। सुनना उन्हें अच्छा नहीं लगता। धीरे-धीरे खुलने वालों से और भी ज्यादा परेशानी होती है। फिर वे किसी तरह अपनी बात कहने की हिम्मत भी जुटाते हैं, तो लीडर टोक देते हैं। उसके बाद तो रही-सही बात भी वे कर नहीं पाते। लीडर को कभी बीच में टोकाटोकी नहीं करनी चाहिए। उसे तो बात निकलवानी चाहिए। वे अक्सर भाषण के अंदाज में अपनी बात कह जाते हैं। सुनना रह जाता है। उससे दिक्कतें और बढ़ जाती हैं। टीम जब अपने लीडर के पास जाती है, तो कम से कम बातचीत में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए।