मेरी आत्मा की फेसबुक कथा
मैं जाने-अनजाने भी कभी ‘आत्मा’ के चक्कर में नहीं पड़ता। आत्मा का चक्कर है ही बुरा। हर समय एक भय-सा बना रहता है कि आत्मा हमारे साथ न जाने कब-क्या कर जाए? मुझे जित्ता डर बीवी से नहीं लगता,...
मैं जाने-अनजाने भी कभी ‘आत्मा’ के चक्कर में नहीं पड़ता। आत्मा का चक्कर है ही बुरा। हर समय एक भय-सा बना रहता है कि आत्मा हमारे साथ न जाने कब-क्या कर जाए? मुझे जित्ता डर बीवी से नहीं लगता, उससे कहीं ज्यादा आत्मा से लगता है। आत्मा चाहे मेरी हो या किसी दूसरे की, प्रयास यही रहता है कि उससे दूर रहूं। इसीलिए मैं किसी भी आत्मकथा को नहीं पढ़ता हूं, न ही उस पर लिखता हूं। अगले की आत्मा कब मेरे लिखे का बुरा मान जाए, क्या पता? इसलिए इस पचड़े में न पड़ना ही बेहतर।
लेकिन कुछ दिनों से मैं अजीब-सी मुसीबत में फंस गया हूं। मेरी आत्मा को यह अच्छी तरह मालूम है कि न मैं उससे बात करता हूं, न भाव देता हूं। इधर मेरी आत्मा ने मुझे अपनी ‘गिरफ्त’ में रखने के वास्ते एक नया पासा फेंका। कहती है- मेरे जाने के बाद मेरा फेसबुक एकाउंट वही चलाया करेगी। यानी मरने के बाद मेरा स्टेटस अपडेट वही करेगी। मुझे इस बात की फिक्र नहीं कि मेरे जाने के बाद मेरा फेसबुक एकाउंट रहेगा या डेड कर दिया जाएगा। किंतु फिक्र इस बात की अधिक है कि जब मैं ही नहीं रहूंगा, तो मेरा स्टेटस आएगा कहां से? वैसे, फेसबुक में होता यही है, लोगों का स्टेटस अपडेट रहता है, खुद चाहे वे आउट ऑफ डेट हों। यानी मेरी आत्मा भी वही करेगी, जो बाकी लोग करते हैं।
लेकिन समस्या दूसरी है। मैं सोशल मीडिया पर हर वक्त ‘कूल मूड’ में रहता हूं, क्या मेरी आत्मा रहेगी? सुना है, आत्मा- चाहे किसी की भी हो- बहुत गंभीर और गुस्सैल टाइप होती है। बर्दाश्त करने की क्षमता न के बराबर होती है उसमें। ऐसा हुआ, तो मेरे बेलगाम दोस्तों की तो खैर नहीं। मालूम पड़ेगा कि वे सब श्रद्धांजलि के तौर पर मुझे दोस्तों की अपनी सूची से बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं।
लेकिन मेरी आत्मा अभी से इतनी बेचैन क्यों है? मैं उसकी सारी चालें समझ रहा हूं। वह अभी से तत्पर हो ली है, मुझे रास्ते से हटाने में। मेरे तईं हर रोज कोई न कोई संकट पैदा कर ही देती है। सोच रहा हूं, एक पत्र मार्क जकरबर्ग को लिख ही डालूं। अब वही मेरा अंतिम सहारा है।