मोदी सरकार और देश की नब्ज
सफलता की तरह सुंदरता भी देखने वाले की निगाहों में होती है। पक्षपात व पूर्वाग्रह हमारे नतीजों को प्रभावित करते हैं। सच है कि राजनीति में एक साल काफी लंबा समय होता है। फिर भी, मोदी सरकार को मिले पांच...
सफलता की तरह सुंदरता भी देखने वाले की निगाहों में होती है। पक्षपात व पूर्वाग्रह हमारे नतीजों को प्रभावित करते हैं। सच है कि राजनीति में एक साल काफी लंबा समय होता है। फिर भी, मोदी सरकार को मिले पांच साल के जनादेश के हिसाब से समय का यह टुकड़ा छोटा हो सकता है। इतने समय में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं और कई चुनौतियां बाकी हैं। इससे इनकार करना कठिन हो सकता है कि पूर्व के नीतिगत पक्षाघात से विश्वास व आशा को जो झटका लगा था, वह अब निर्णायक रूप से पलटा है और अधिकतर मानदंडों की बुनियाद पर अर्थव्यवस्था पिछले साल की तुलना में अधिक बेहतर लग रही है।
वैसे, विरासत में मिले मुद्दे लंबे समय तक पीछा करते हैं। दुर्भाग्य से, हर मामले में पारदर्शी तरीका आसान हल नहीं होता। यह पहले से लागू टैक्स प्रणाली की गंदगियों, अटकी हुई पूंजी, बैंकों के सामने पैदा जोखिम, रक्षा क्षेत्र में लकवाग्रस्त तैयारियों और घोटालों, खासकर प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के मामले में बहुत हद तक सही है। यह सब कुछ हमारी साख को गिराने की खतरनाक स्थिति तक ले गया और हम निवेश के केंद्र से हट गए। इसके बरक्स, अर्थशास्त्र को अच्छे रूप में प्रभावित करने वाले उपाय हमारी रेटिंग सुधारते हैं। ये उपाय हैं: राजस्व को भरोसेमंद मजबूती देना, चालू खाते घाटे का प्रबंधन करना, महंगाई को थामना। तेल और वस्तु मूल्य की सस्ती दरों से उपभोक्ता लाभान्वित हुए हैं, यहां तक कि सब्सिडी को भी तार्किक रूप दिया गया है। नियंत्रित पेट्रोलियम मूल्य वाले शासन को काफी हद तक ध्वस्त किया गया। इन कारणों से रेटिंग एजेंसियों और बहुआयामी संस्थाओं का, जैसे विश्व बैंक और आईएमएफ, आशावाद बढ़ रहा है।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा इस्तेमाल में आई वैकल्पिक कार्य-प्रणाली बताती है कि मौजूदा साल में विकास दर 8-8.5% रहेगी और अगले कुछ वर्षों में दहाई के अंक में पहुंच जाएगी। ढांचागत सुधार, फंसी हुई पूंजी को निकालने के उपाय और सार्वजनिक खर्च को बढ़ाना, विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में, इस लक्ष्य को अधिक वास्तविक बनाते हैं। विकास की रणनीति निर्णायक तौर पर अधिक समावेशी है। वित्तीय समावेश के विशेष उपाय और जन-धन कार्यक्रम, दोनों ने ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी और आधार योजना के साथ मिलकर ग्रामीण भारत के वित्तीय सशक्तीकरण को पुनर्परिभाषित किया है। बीमा योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना ने सामाजिक सुरक्षा तंत्र का स्वीकार्य ढांचा बनाया है। यह विशेष रूप से शोषित तबकों को लाभान्वित करता है। यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की क्षमता भी बढ़ाता है।
स्वच्छ भारत अभियान न सिर्फ मानसिकता बदलेगा, बल्कि पर्यावरण व सेहत भी सुधारेगा। डिजिटल इंडिया के साथ स्किल इंडिया कारोबार व स्पद्र्धी विनिर्माण के माहौल बेहतर बनाएंगे। इसे श्रम कानून में नियामक परिवर्तन, भूमि अधिग्रहण और भरोसेमंद इन्फ्रास्ट्रक्चर से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए। कृषि से अलग आजीविका के नए साधन व कौशल शिक्षा से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। ये सब मिलकर विकास के अहम हिस्से बन जाते हैं। ये आपस में टकराने वाली नीतियों के मिश्रण नहीं हैं, जिनमें दूरदृष्टि का अभाव हो। इसके विपरीत, ये सब अहम बिल्डिंग ब्लॉक हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टाइम पत्रिका को दिए इंटरव्यू में दिखता है कि गरीबी उनके ‘जीवन की पहली प्रेरणा’ है। उनकी विदेश यात्राओं को गिनाना नादानी है। इसकी बजाय, नतीजों पर ध्यान दें- दुनिया में भारतीयों के काम-धंधे बढ़े हैं, विदेश में बसे भारतीयों में नई शक्ति पैदा हुई है और हम निवेश के केंद्र में फिर से आ रहे हैं। अर्थशास्त्र और विदेश नीति को साथ लेकर चला गया, जो फायदेमंद होगा।
दरअसल, कोई भी प्रशासनिक ढांचा विरोधाभासी लग सकता है। हालांकि, विकास, वृद्धि व न्यायपूर्ण वितरण के साथ दुर्लभ संसाधनों का आवंटन, कभी आसान नहीं होता। बदली हुई विकास-संरचना के साथ दहाई अंक में विकास को पाने और ग्रामीण भारत व वंचितों-शोषितों को मुख्यधारा में लाने का व्यापक नजरिया यही है कि हम अपनी रणनीति में सामंजस्य व एकजुटता लाएं।
हमारे सामने क्या अल्पकालिक चुनौतियां हैं?
पहली, राजकोषीय दृढ़ता के रास्ते पर चलते हुए अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने का निश्चय। अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो यह चुनौती सब्सिडी में फिर से सुधार की मांग कर सकती है। दूसरी, फंसी हुई संपत्तियों को मुक्त करने के लिए नए प्रोजेक्टों को लागू करने का हुनर चाहिए। इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में जो पैसे खर्च हुए हैं, उसी हिसाब से इसके परिणाम भी मिलने चाहिए।
तीसरी, कई सारी पहलों से जमीन पर फर्क दिखे, इसके लिए उनको लागू करने की समय-सीमा तय हो। वैसे, रोजगार सृजन और स्किल इंडिया के बीच की सहक्रिया स्पष्ट अंतर लाएगी। अमेरिका की तरह ही, अतृप्त और उभरती हुई आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हर महीने रोजगार से जुड़े आंकड़ों की निगरानी की जानी चाहिए।
चौथी चुनौती है- कई क्षेत्रों में बजट के वादों को पूरा करना, जैसे राष्ट्रीय कृषि बाजार बनाना, सिंचाई की पहुंच को बढ़ाना, फसल उत्पादकता में वृद्धि और साथ ही, इसमें श्रम शक्ति को फिर से बहाल करना। किसानों की आत्महत्या सहानुभूति से अलग एक व्यापक रणनीति अपनाने की मांग करती है। इसी तरह, वित्तीय क्षेत्र में सुधारों को आगे ले जाने के लिए विभिन्न संस्थानों के बीच मिल-जुलकर प्रयास करने की जरूरत है। पांचवीं, नई निजी-सार्वजनिक साझेदारी संधि चाहिए, जो निजी क्षेत्रों के संसाधनों व प्रबंधन से जुड़े खतरों को फिर से संतुलित करे। इसका पुराना मॉडल बदनाम हो चुका है। नए की जरूरत है। छठी, केंद्र-राज्य संबंधों में वित्तीय हस्तांतरण करना और संसाधनों पर राज्यों को ज्यादा हक देना। टीम इंडिया के लिए ये अधिक सार्थक साझेदारी लाएंगे। हालांकि, क्षेत्रीय पार्टियों को सरकार की व्यापक विधायी रणनीतियों में शामिल करने के लिए इनमें निरंतर सुधार, कल्पना और लचीलेपन की जरूरत है।
क्या प्रधानमंत्री कार्यालय अधिक ईर्ष्यालु है? क्या उनके अधिकारियों ने प्रबंधन को और सूक्ष्म करने की मांग की है? जब मैंने संप्रग-एक में प्रधानमंत्री बनने पर मनमोहन सिंह को बधाई दी, तो उन्होंने मुझे कहा, ‘आपने एक बहुत शक्तिशाली पीएमओ में काम किया है। मेरा पीएमओ कम महत्वपूर्ण है।’ कुछ गुस्ताखी के साथ मैंने उन्हें कहा कि आखिर में हर पीएमओ प्रधानमंत्री की कार्य-शैली और उनकी प्राथमिकता का आईना होता है। यह नहीं भूला जा सकता कि इस सरकार का जनादेश और चुनावी अभियान मोदी केंद्रित था। सत्ता केंद्र बंटे हुए नहीं हैं। मोदी जानते हैं कि जहां तक लोगों का मामला है, तो सारी बातें उन पर ही जाकर खत्म होती हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति केनेडी ने एक बार कहा था, ‘यदि जोरदार कांग्रेस सत्र के बाद भी मेरी कार्य-क्षमता को सिर्फ 70 प्रतिशत आंका गया, तो मैं महसूस करता हूं कि मैं अपना दायित्व नहीं निभा पा रहा हूं। आप हर हफ्ते देश की नब्ज टटोलकर बड़े बदलावों को नहीं माप सकते।’
सौभाग्य से और असाधारण रूप से मोदी की कार्य-क्षमता अब भी 70 प्रतिशत से कहीं अधिक है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)