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क्या कहती है बेलंदूर के पानी में लगी आग

एक बड़े से तालाब में चार-चार फुट ऊंची झाग बनी और बाहर निकलकर सड़क पर छा गई। देखते ही देखते उसमें आग की लपटें उठीं, जो कई मिनटों तक सुलगती रहीं। बदबू, झाग से हैरान-परेशान लोग समझ ही नहीं पाए कि यह अजूबा...

क्या कहती है बेलंदूर के पानी में लगी आग
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 23 May 2015 01:04 AM
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एक बड़े से तालाब में चार-चार फुट ऊंची झाग बनी और बाहर निकलकर सड़क पर छा गई। देखते ही देखते उसमें आग की लपटें उठीं, जो कई मिनटों तक सुलगती रहीं। बदबू, झाग से हैरान-परेशान लोग समझ ही नहीं पाए कि यह अजूबा है, प्राकृतिक त्रासदी है, कोई दैवीय घटना या वैज्ञानिक प्रक्रिया। यह सब हुआ पिछले शनिवार, देश की साइबर राजधानी व अपने बेहतरीन मौसम के लिए मशहूर बेंगलुरु में। देश के सबसे खूबसूरत महानगर कहे जाने वाले  बेंगलुरु की फिजा कुछ  बदली-बदली सी है। अब यहां भीषण गरमी पड़ने लगी है। साथ ही गंभीर जल-संकट भी पैदा हो गया है। यदि थोड़ी-सी बारिश हो जाए, तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का मुख्यालय बेंगलुरु पानी-पानी हो जाता है। पारंपरिक तालाबों से छेड़छाड़ ने इस शहर की यह हालत बना दी है।

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 90 साल पहले बेंगलुरु शहर में 2,789 झीलें हुआ करती थीं। सन साठ आते-आते इनकी संख्या घटकर 230 रह गई। 1985 में शहर में केवल 34 तालाब बचे और अब इनकी संख्या 30 तक सिमट गई है। इससे न सिर्फ शहर का मौसम बदल गया है, बल्कि लोग बूंद-बूंद पानी को तरसने लगे हैं। वहीं ईएमपीआरआई यानी एनवायर्नमेंटल मैनेजमेंट ऐंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने दिसंबर-2012 में जारी अपनी रपट में कहा है कि बेंगलुरु में फिलहाल 81 जल-निधियों का अस्तित्व बचा है, जिनमें से नौ तो बुरी तरह से और 22 काफी हद तक दूषित हो चुकी हैं। 

ऐसी ही बिसरा दी गई एक झील है बेलंदूर, जो शहर के दक्षिण-पूर्व में है और आज भी यहां की सबसे बड़ी झील है। इसका क्षेत्रफल करीब 37 हजार एकड़ है, इसका अतिरिक्त पानी बहकर अन्य झील वर्तुर में जाता है और आगे चलकर यह जल निधि पोन्नियार नदी में मिलती है। इसी बेलंदूर में पिछले दिनों आग लगी थी। कुछ दिनों पहले इससे जुड़ी वर्तुर झील में कई-कई फुट ऊंचे सफेद झाग का ढेर खड़ा हो गया था। दमघोंटू बदबू व उसके पानी से शरीर पर छाले पड़ने का लोगों का अनुभव पहले ही से था। बेलंदूर में आग शायद इसका अगला चरण था। इस आग के वीडियो कई स्थानीय चैनलों ने दिखाए भी।

यह बात तो सामने आ गई है कि बेलंदूर में आग लगने का कारण इलाके के कारखानों, गैराज से बहा, डीजल, पेट्रोल, ग्रीस, डिटरजेंट, जल-मल थे। मीथेन की परत जल के ऊपरी स्तर पर बढ़ जाने से आग लगी। अदालत के आदेश, जनता के विरोध व प्रदूषण रोकने के कई कानूनों के बावजूद इस बेमिसाल झील में हर दिन अपशिष्ट और दूषित पानी भारी मात्रा में पहुंचता है। प्रदूषण बोर्ड के मुताबिक, इसके जल की गुणवत्ता ‘ई’ स्तर की है, यानी एक मृत जल निधि की। बेलंदूर तालाब में लगी आग तो महज एक बानगी है, देश भर की जल निधियों का यही हश्र हो रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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