मजबूत नकेल समाजवाद
हम जिस मदरसे से आते हैं, वह कांग्रेस ‘विरोध’ का चाक-चौबंद संस्थान रहा और कांग्रेस के प्रति उसका नजरिया मजबूत नकेल बनने का रहा। वह समाजवाद का एक नजरिया था, एक आंदोलन था और कदम-कदम पर...
हम जिस मदरसे से आते हैं, वह कांग्रेस ‘विरोध’ का चाक-चौबंद संस्थान रहा और कांग्रेस के प्रति उसका नजरिया मजबूत नकेल बनने का रहा। वह समाजवाद का एक नजरिया था, एक आंदोलन था और कदम-कदम पर कांग्रेस को घेरने और उससे सवाल पूछने का कार्यक्रम चलाता था। उस आंदोलन का बस एक मकसद रहा कि कांग्रेस अपने ही उसूल से फिसलने न पाए। बस। अब इसे इतिहास से खंगालकर देखिए। महात्मा गांधी से बड़ा कोई नेता नहीं है, न ही कोई भविष्यद्रष्टा। आजादी के तुरंत बाद कांग्रेस में फिसलन शुरू हो गई। इस फिसलन को पंडित नेहरू ने देखा और खुल्लम-खुल्ला वह सचेत करते रहे। डॉ. लोहिया और जेपी को लिखे पंडित नेहरू के खतों को देखिए। पता चलता है कि कांग्रेस की उस फिसलन पर नेहरू कितने चिंतित रहे।... नेहरू संगठन में कमजोर रहे, लेकिन चूंकि उनकी शख्सियत और बापू का समर्थन ऐसा रहा कि देश की बागडोर उनके हाथ आई। आजादी के बाद समाजवादी जब कांग्रेस से अलग हुए, तब भी नेहरू और समाजवादियों के बीच निजी रिश्ते कायम रहे। इतना ही नहीं कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के बीच के तनाव बिंदुओं को गौर से देखिए, दोनों के बीच सिद्धांत पर कहीं विरोध नहीं है, ‘करनी’ पर है। इसलिए हम बार-बार कहते हैं कि समाजवादी आंदोलन कांग्रेस का विनाश नहीं, उसका परिमार्जन करता रहा है। जिन समाजवादी कार्यक्रमों को नेहरू नहीं लागू कर पाए, उसे नेकीराम नगर कांग्रेस में इंदिरा गांधी ने करके दिखा दिया।
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