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छोटी सी खिड़की

सब रास्ते बंद लग रहे थे उन्हें। खुद को इतना हताश कभी महसूस नहीं किया। मानो सब कुछ ठहर गया हो।  ‘कभी हमारे बंद कमरे में अचानक कोई खिड़की खुलने लगती है। उस उम्मीद के पल को हमें खुशी से...

छोटी सी खिड़की
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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सब रास्ते बंद लग रहे थे उन्हें। खुद को इतना हताश कभी महसूस नहीं किया। मानो सब कुछ ठहर गया हो। 
‘कभी हमारे बंद कमरे में अचानक कोई खिड़की खुलने लगती है। उस उम्मीद के पल को हमें खुशी से स्वीकार लेना चाहिए।’ यह मानना है डॉ. कॉलिन एलार्ड का। वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। कनाडा की यूनिवर्सिटी वाटरलू में एक्सपेरिमेंटल साइकोलॉजी के प्रोफेसर हैं। उनकी एक बेहद चर्चित किताब है, यू आर हेयर: ह्वाई वी कैन फाइंड आवर वे टु द मून, बट गेट लॉस्ट इन द मॉल। अक्सर हमारी जिंदगी में ऐसे पल आते हैं, जब हमें कुछ नहीं सूझता। हमें हर ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है। ऐसे में अगर रोशनी का कोई कतरा दिखलाई पड़ जाता है, तो हमें कैसा महसूस होता है? उस एक कतरा रोशनी को हमें संजो लेना चाहिए। वही हमारे अंधेरे को दूर करने की बुनियाद बनती है।

दरअसल, वह रोशनी एक मौका होती है। वह एक उम्मीद लेकर आती है। यह उम्मीद कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। यह माना कि अंधेरा है। अभी हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है। लेकिन इस अंधेरे को भी छंटना ही है। रोशनी हमें मिलनी ही है। हमें बस थोड़े से धीरज की जरूरत है। अपने को सब्र बंधाने की जरूरत है। हमें पता है कि तमाम अंधेरों के बीच कोई रोशनी अचानक चमकती है। वही हमारी उम्मीद की किरण है। वही छोटी सी खिड़की है, जो हमारे लिए ही खुली है। खिड़की खुलती है, तो ताजा हवा का झोंका आता ही है। वह खुलती है, तो उम्मीदों के कई रास्ते भी खुलते हैं। रास्ते खुलते हैं, तो हम मंजिल की ओर बढ़ ही जाते हैं। देर-सबेर उसे पा भी लेते हैं।

 

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