सही रास्ता
काम अच्छा हो और उसे करने का तरीका भी अच्छा हो, यह जरूरी नहीं। हम अक्सर सफल होने के चक्कर में शॉर्टकट ही नहीं, ऐसे रास्ते भी अपना लेते हैं, जो सामाजिक-नैतिक पैमाने की कसौटी पर फिट नहीं बैठते। कामयाब...
काम अच्छा हो और उसे करने का तरीका भी अच्छा हो, यह जरूरी नहीं। हम अक्सर सफल होने के चक्कर में शॉर्टकट ही नहीं, ऐसे रास्ते भी अपना लेते हैं, जो सामाजिक-नैतिक पैमाने की कसौटी पर फिट नहीं बैठते। कामयाब होने के चक्कर में हम बहुत कुछ भूल जाते हैं। हाउ मैन मेजर्स सक्सेज के लेखक जे स्मॉक कहते हैं कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए बेहतर जिंदगी, आर्थिक आत्मनिर्भरता, ताकत, लोकप्रियता और प्रतिष्ठा, जो उसके पास नहीं है और दूसरे के पास है, उसे इस बात को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करती है कि दूसरा व्यक्ति सफल है। सफलता एक परदे का काम करती है, जो सफल व्यक्ति की सारी बुराइयों को छिपा देती है।
आज साधन की पवित्रता एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि आनन-फानन में सफलता हासिल करने की सोच भी समाज पर हावी है। यहां पुलेला गोपीचंद आदर्श कहे जा सकते हैं। उन्होंने वर्षों पहले एक शीतल पेय का विज्ञापन करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि मैं बतौर खिलाड़ी जानता हूं कि यह पेय सेहत के लिए हानिकारक है। ऐसे में, इसे दूसरे लोगों को पीने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर सकता। वॉरेन बफेट ने भी इस मसले पर गंभीर बात कही-पैसा, प्रसिद्धि और शक्ति हासिल करने से कई गुना कठिन है, अपनी अच्छाइयों को बनाए रखना। जेब में हजारों डॉलर हों, लेकिन किसी नेत्रहीन को सड़क पार कराते समय हम दो बार सोचें, तो यह सारी संपदा बेकार है। जाहिर है, जब भी कोई काम किया जाए, तो इस दर्शन को याद रखकर किया जाए कि हमारे विचारों में, कार्यों में और व्यवहार में जो कुछ भी अच्छा होता है, वह देर-सबेर हमारी ओर पलटकर जरूर वापस आता है।