भविष्य की लय-ताल और कविता का भविष्य
पिछले सप्ताह नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि डेरेक वॉलकोट और रॉक स्टार चक बेरी की मृत्यु के बाद लंदन से प्रकाशित होने वाले अखबार गार्जियन ने प्रश्न उठाया है- अब कविता का क्या होने जा रहा है? अलग-अलग...
पिछले सप्ताह नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि डेरेक वॉलकोट और रॉक स्टार चक बेरी की मृत्यु के बाद लंदन से प्रकाशित होने वाले अखबार गार्जियन ने प्रश्न उठाया है- अब कविता का क्या होने जा रहा है? अलग-अलग तरीके से इन दोनों ने ही एंप्लीफायर के माध्यम से उपजे आधुनिक संगीत के साथ कविता का या यूं कहें कि कविता के साथ संगीत का रिश्ता कायम करने में सहायता की है। कहा जा सकता है कि कम से कम मुद्रण कला के आविष्कार के बाद कविता केवल चुपचाप या फिर एकांत में पढ़ी जाने के लिए लिखी जाती रही है। वह श्रव्य परंपरा से लगातार दूर होती गई। आमतौर पर किसी भी भाषा के बड़े से बड़े कवि की लयात्मक दुर्बोधताएं पाठक के मस्तिष्क में उनके प्रवेश पर निर्भर करती हैं। पर ऐसा हमेशा नहीं होता है। ऐसे भी कवि रहे हैं, जिनकी कविताएं संगीत के साथ अच्छी तरह तालमेल बिठा पाती रही हैं और ऐसे कवि बहुत लोकप्रिय कहे जा सकते हैं। इसके विपरीत दुनिया की विभिन्न भाषाओं में ऐसे कवि भी कम नहीं हैं, जिनके शब्द तो सीधे पाठक के हृदय को छूते हैं, लेकिन संगीत के सुरों के मुताबिक खरा उतरने की दृष्टि से उन्हें असफल ही कहा जाएगा।
लयात्मक कविता का आनंद दरअसल उस ताल को सुनने पर निर्भर करता है, जो बजाया नहीं जाता। इसी प्रकार, संगीत का आनंद भी वास्तव में तभी उठाया जा सकता है, जब उसके स्वरों के बीच के अंतराल को भी सुना जाए। एंप्लीफायर के जरिये हर जगह फैलाया जाने वाला संगीत भी आजकल के शोर-गुल भरे जीवन में हमें तब तक कुछ भी समझने नहीं देता, जब तक कि उसे स्पष्ट रूप से व्यक्त न किया जाए। और जब ऐसा होता है, तो पारंपरिक रूप से कविता पढ़े जाने का कौशल लुप्त हो जाता है। कविता वस्तुत: भाषा और शब्दों का श्रेष्ठतम चमत्कार है। पहले की अधिकांश ‘बुरी’ मानी जानी वाली कविताएं, जो आज असंभव रूप से नहीं पढ़ी जा सकती हैं, कविता के नियमों का उल्लंघन करती हैं और यदि उन्हें पूरी तरह भुला भी दिया जाए, तब भी उनकी कमी महसूस नहीं की जाएगी। लेकिन उन अच्छी कविताओं के विषय में क्या कहा जाए, जिनको भी इसी प्रकार भुला दिया जाएगा?
दुनिया की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों में कविता, संगीत और धर्म प्राचीन काल से अविभेद्य रहे हैं। पश्चिम में लगभग एक सदी से उनमें अलगाव हो गया, लेकिन कम से कम लोकप्रिय संस्कृति में वे अब फिर एकजुट हो रहे हैं। पिछले वर्ष बॉब डिलन को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिए जाने से एक प्रकार से इसकी पुष्टि होती है। बॉब डिलन के गीतों को यदि पहले केवल छपे हुए पन्नों पर देखा जाए, तो उनके प्रभाव को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता। उसकी आवाज और संगीत के साथ उसकी एकबद्धता के बिना उन शब्दों की ऊर्जा समाप्त हो जाती है। चक बेरी के सशक्त, जोरदार व्यंग्यपूर्ण गीत भी कविता की दृष्टि से महान नहीं कहे जा सकते, लेकिन वे हजारों/लाखों लोगों को याद हैं। उनके हृदय में बसे हुए हैं। केवल इस कारण कि उन्हें संगीतबद्ध कर दिया गया है और वह संगीत हमारे जीवन में, हमारी स्मृतियों में बस गया है। इसके विपरीत डेरेक वालकोट की कविताएं हजारों/लाखों नहीं, वरन सौ-पचास लोगों को भी याद हों, तो इसे एक आश्चर्य ही कहा जाएगा।
यह केवल अतीत की अभिव्यंजना नहीं, वरन बहुत बड़ी वास्तविक हानि है। कविता लिखित रूप में परिरक्षित की जाती है, लेकिन वह जीवित श्रव्य रूप में ही रहती है। जिस प्रकार विदेशी भाषाओं का अज्ञान हमें और हमारे बच्चों को विश्व भर के अनुभवों से अलग व अछूता रखता है और गूगल के अनुवाद के जरिये भी उसे हम प्राप्त नहीं कर सकते, उसी प्रकार कविता सुनने की कमी लोगों को मानवता के अनुभवों से दूर रखती है। लेकिन इस मामले में अब भी कुछ आशा बची है। यह महान कविता की परिभाषा ही कही जानी चाहिए कि वह निस्तब्धता में भी अपने आपको उसी प्रकार सुनाई जाने की आवश्यकता निर्मित करती है, जिस प्रकार महान संगीत। आज से सौ वर्ष बाद भी लोग होंगे, जो डेरेक वालकोट की कविताएं पढ़ेंगे और उन कविताओं की आवाज उनके हृदय को स्पष्टता से छूती रहेगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)