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जीवन की सांझ के अंधेरे आसार

अंग्रेजों के समय में सरकारी नौकरी में रिटायरमेंट की उम्र 55 साल थी। उस समय ऐसा माना जाता था कि लोगों की औसत उम्र 60 साल है। तब सरकार को पेंशन मुश्किल से पांच वर्ष तक देनी पड़ती थी। जीवन स्तर में सुधार...

जीवन की सांझ के अंधेरे आसार
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 06 Oct 2016 09:34 PM
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अंग्रेजों के समय में सरकारी नौकरी में रिटायरमेंट की उम्र 55 साल थी। उस समय ऐसा माना जाता था कि लोगों की औसत उम्र 60 साल है। तब सरकार को पेंशन मुश्किल से पांच वर्ष तक देनी पड़ती थी। जीवन स्तर में सुधार से आम नागरिक की औसत उम्र अब 70 वर्ष हो गई है। इसलिए किसी राज्य में रिटायरमेंट की उम्र 60 वर्ष है, तो कहीं-कहीं 58 वर्ष है। इंग्लैंड, अमेरिका और जापान में लोगों की औसत उम्र कभी 60 वर्ष थी और अब 80 वर्ष हो गई है। 

वहां अधिकतर लोग 60 वर्ष की उम्र में रिटायर कर जाते हैं और सरकारी तथा प्राइवेट कंपिनयों के लिए इतने लंबे समय तक पेंशन दे पाना संभव नहीं होता है। अनुमान है कि दुनिया में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की आबादी 60 करोड़ से ऊपर जा चुकी है, जो वर्ष 2050 में बढ़कर 1.6 अरब हो जाएगी। जापान में तो एक-तिहाई जनसंख्या 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की है। जीवन की संध्या वेला में पहुंच चुके ऐसे लोगों की आबादी हर जगह बढ़ती जा रही है, जो उत्पादन चक्र में कोई महत्वपूर्ण भूमिका अब नहीं निभा सकते।

यह उम्र का ऐसा पड़ाव है, जिसमें व्यक्ति धन का उपार्जन नहीं करता, पर स्वास्थ्य और देखभाल के लिहाज से उसकी जरूरतें काफी बढ़ जाती हैं। चिकित्सा व्यवस्था के निजीकरण के इस दौर में यह बहुत बड़ी समस्या है। पश्चिम के देशों में स्वास्थ्य बीमा जैसी चीजों से बुजुर्गों को कुछ मदद मिल जाती है, लेकिन भारत जैसे देशों में तो इस सुविधा का भी बहुत ज्यादा विस्तार नहीं हुआ है। 50 साल की उम्र से ज्यादा के व्यक्ति का स्वास्थ्य बीमा करने को तो बहुत सी          बीमा कंपनियां तैयार ही नहीं होती हैं। भारत जैसे बड़ी आबादी व कम विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में, जहां आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा या तो किसानी करता है, या दस्तकारी जैसे किसी छोटे-मोटे काम में लगा होता है, वहां बुजुर्गों के पास पेंशन जैसा कोई सहारा भी नहीं है। देश में कुछ राज्य सरकारों ने वृद्धावस्था पेंशन जैसी कुछ योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन उनके तहत मिलने वाली पेंशन इतनी कम है, उससे किसी का गुजारा भी नहीं हो सकता।

यह समस्या इसलिए भी परेशान करने वाली है कि हमारे यहां अचानक ही संयुक्त परिवार की वह व्यवस्था खत्म हो गई है, जो घर के बुजुर्गों को सहारा भी देती थी और सम्मान भी। दो-तीन पीढ़ी पहले जिन लोगों ने परंपरागत समाज व्यवस्था से आगे बढ़कर शहरों, खासकर महानगरों में एकल परिवारों का नया चलन शुरू किया था, अब वे जब रिटायर हो रहे हैं, तो इस बदलाव के कड़वे अनुभव उनके स्वागत के लिए तैयार खडे़ हैं। और अब तो संयुक्त परिवार कस्बों, यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी खत्म हो रहे हैं। एक तरफ, जहां पूरी दुनिया में सरकारें बुजुर्ग होती आबादी के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान तलाश रही हैं, तो वहीं भारत में इस समस्या पर अभी विचार भी नहीं हो रहा। 
     (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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