ज्यादा कारगर होगा बेनामी संपत्ति पर हमला
अगर प्रधानमंत्री की बात पर विश्वास करें, तो अगला वर्ष बेनामी संपत्तियों के खिलाफ प्रहार का वर्ष हो सकता है। बेनामी संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई करना काले धन को खत्म करने की सबसे बड़ी शर्त है। यही वह...
अगर प्रधानमंत्री की बात पर विश्वास करें, तो अगला वर्ष बेनामी संपत्तियों के खिलाफ प्रहार का वर्ष हो सकता है। बेनामी संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई करना काले धन को खत्म करने की सबसे बड़ी शर्त है। यही वह ठिकाना है, जहां काली कमाई खपाई जाती है, या दूसरे शब्दों में कहें, तो उसका निवेश होता है। अंत में चीजें कैसे आकार लेंगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता, पर नोटों की वापसी से जितनी परेशानियां आम जनता को हुईं, उस तरह की परेशानी शायद बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई में नहीं होगी। बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई के निशाने पर वे बड़े लोग आएंगे, जिन्होंने गलत तरीके से धन कमाकर किसी दूसरे के नाम पर संपत्ति खरीद रखी है।
बेनामी संपत्ति का मतलब ऐसी संपत्ति से है, जिसका मालिक कागजों पर कोई और है, जबकि उसके लिए भुगतान किसी और ने किया है। काली कमाई करने वाले लोग बेटा-बेटी, पति-पत्नी या किसी अन्य विश्वासपात्र के नाम पर ऐसी संपत्ति खरीदते हैं, लेकिन इसकी घोषणा वे आयकर रिटर्न में नहीं करते। यानी अज्ञात आय से दूसरे के नाम पर खरीदी गई संपत्ति या किया गया कोई निवेश बेनामी संपत्ति में गिना जाता है। इसमें कई प्रकार की चालाकियां बरती जाती हैं। जैसे, दूसरे के नाम पर रजिस्ट्री करवाकर उस संपत्ति की वसीयत बनवा ली जाती है। इसमें वही व्यक्ति वारिस बन जाता है, जिसने खरीदा है। कई बार वसीयत के साथ बेनामी मालिक से एक ‘पावर ऑफ अटर्नी’ करवाई जाती है। इस तरह वह उस संपत्ति को बेचने का हक दूसरे को दे देता है। कई बेनामी मालिकों से संपत्ति की सेल-डीड भी बनवा ली जाती है। इस तरह, काला धन रखने वाले बिना अपना नाम उजागर किए अपने पैसे से संपत्ति खरीदते हैं, उस पर कब्जा रखते हैं और गलत तरीके से अपना अधिकार भी बनाए रखते हैं।
अगर किसी ने आय के ज्ञात स्रोत से किसी के नाम कोई संपत्ति ली है, या निवेश किया है, तो वह बेनामी संपत्ति के अंदर नहीं आ सकता। एक अध्ययन के अनुसार, भारत के ज्यादातर शहरों में पांच से 10 प्रतिशत संपत्ति बेनामी है। यह सिर्फ एक अनुमान है। ऐसी संपत्ति इस आकलन से कहीं ज्यादा भी हो सकती है। शहरों में ही नहीं, गांवों में भी ऐसी संपत्ति बड़ी तादाद में खरीदी जा रही है, जिनका इस्तेमाल कृषि के नाम पर काले धन को सफेद करने के लिए भी होता रहा है।
संसद ने इस साल अगस्त में बेनामी संपत्ति लेन-देन रोकथाम कानून बनाया है। यह कानून 1988 के कानून से काफी सख्त है। इसके तहत आयकर विभाग को इन संपत्तियों को जब्त करने और उसे रखने वालों से 25 प्रतिशत तक जुर्माना वसूलने का अधिकार है। इस कानून में आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान नहीं है, लेकिन अपराध साबित हो जाने के बाद अदालत उसे सात साल तक की सजा सुना सकती है। जान-बूझकर गलत सूचना देने वाले को पांच साल की सजा हो सकती है और संपत्ति के बाजार मूल्य का 10 प्रतिशत जुर्माना भी उसे देना होगा। आयकर विभाग को ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ के जरिये खरीदी-बेची जा रही सभी संपत्तियों पर नजर रखने को कहा गया है। फिलहाल 200 टीमों का गठन किया गया है, जो देश भर में बेनामी संपत्तियों की जांच करेंगी। इनमें खासतौर पर वाणिज्यिक प्लॉट्स, हाई-वे के किनारे की जमीनें और औद्योगिक जमीनें शामिल हैं।
इन सबके बावजूद यह काम इतना आसान भी नहीं है। बेनामी संपत्ति रखने वालों में मुख्यत: करोबारी, राजनेता, नौकरशाह और प्रवासी भारतीय हैं। इनकी पहुंच और इनके प्रभाव का विस्तार बहुत दूर तक होता है। ऐसी चीजों को कानूनी दांव-पेच में फंसाना भी वे अच्छी तरह जानते हैं। फिर जिन विभागों को कार्रवाई करनी है, उनके अंदर भी काला धन और बेनामी संपत्ति रखने वाले निश्चित तौर पर होंगे। वे स्वयं को बचाने की कोशिश करेंगे या कार्रवाई करेंगे? फिर, हमारे यहां भूमि का रिकॉर्ड भी अनेक जगहों पर अस्पष्ट है। यह भी एक बाधा है। हो यह भी सकता है कि कुछ ऐसे लोग इस चक्कर में फंस जाएं, जिनका कसूर सिर्फ इतना हो कि वे विश्वासपात्र थे, इसलिए उनके नाम पर संपत्ति की खरीद की गई। इन सभी जटिलताओं को समझकर अगर आगे बढ़ा जाए, तो काले धन पर एक बड़ा और कड़ा प्रहार किया जा सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)