मतलब यह कि मत चूको चौहान
अजी कहां की सरकारें और कहां का राष्ट्र्रपति शासन। द्रौपदी की निगाह में तो सब तरफ दुशासन ही हैं। राजनीतिक मारकाट के बीच सरकार ऐसी दबी-ढकी बैठी रहती है, जैसे थाने में रामप्यारी। दांतों के बीच चुपचाप...
अजी कहां की सरकारें और कहां का राष्ट्र्रपति शासन। द्रौपदी की निगाह में तो सब तरफ दुशासन ही हैं। राजनीतिक मारकाट के बीच सरकार ऐसी दबी-ढकी बैठी रहती है, जैसे थाने में रामप्यारी। दांतों के बीच चुपचाप बैठी जीभ की तरह डरी-डरी और सांसत में। ऐसे में, टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ जाती है और चौथा खंबा उखड़ने लगता है। सयाने नेता कहतेे हैं कि जब तक बुढि़या सरकार का अंतिम समय न आ जाए, तब तक उसका सुहाग बने रहना चाहिए, क्योंकि मूर्छित विधवा विलाप नहीं कर सकती।
एक नेता ने कहा- चाहे जो करो, पर पार्टी का नहीं, अपना फायदा देखो। आत्मा तो इस दल में या उस दल में कहीं भी आ जा सकती है। खबरों के मुंह तो वैसे भी विज्ञापनों के कारण बंद रहते हैं। कैरी ऑन भैया। सबको पता है कि बिना खुंदक खाए कोई पत्रकार स्टिंग ऑपरेशन नहीं कर सकता।
जिस जूते में तल नहीं, वह ज्यादा दिन चलता नहीं। हाल यह है कि सब दुर्जन सज्जन टिकट लाइन में खड़े हैं। इत्र फुलेल लगाए। किसी का टिकट कट रहा है, तो किसी को बंट रहा है। सांप-सीढ़ी का खेल जारी है। हाईकमान जानता है कि उफनाते दूध में अगर पानी के चार छींटें मार दो, तो वह अपनी औकात में आ जाता है। लंबी लड़की को अगर लड़का नहीं मिलता, तो वह बौने से ब्याह तो कर ही लेती है। अगले साल के चुनाव में सुना है कि गदहों को पंजीरी बांटी जाएगी और चींटियां चीनी को तरस जाएंगी। गूंगों को ज्यादा लालच दो, तो वे बोलने भी लगते हैं। सयाने नेता सोच रहे हैं कि टिकट मिलने या न मिलने के इस दलबदलू मौसम में हमने बचा-खुचा माल न काटा, तो हमारा लाखों का सावन पानी में डूब जाएगा। कहा भी तो है कि- जागो, ग्राहक जागो।
यही दिन हैं कि घर के बूढ़े-बुजुर्ग पूरा का पूरा अखबार चाट जाते हैं, लेकिन उन्हें कोई खबर नहीं मिलती। उनका कहना है कि रूखे-सूखे संपादकीय पढ़ने से तो कहीं अच्छा है कि आंखें ही फूट जाएं।
अब तो भैया बस टिकट लूट लो या फिर पतली गली से फूट लो।
उर्मिल कुमार थपलियाल