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जलवायु परिवर्तन नहीं गलत नियोजन

पिछले हफ्ते ओला कैब्स ने एक शानदार योजना पेश की। इस लोकप्रिय टैक्सी-सेवा ने बारिश के पानी में डूबी चेन्नई में नाव सेवा की शुरुआत की। यानी आप अपने घर से दफ्तर जाने के लिए इसकी नाव बुला सकते हैं।...

जलवायु परिवर्तन नहीं गलत नियोजन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 29 Nov 2015 09:55 PM
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पिछले हफ्ते ओला कैब्स ने एक शानदार योजना पेश की। इस लोकप्रिय टैक्सी-सेवा ने बारिश के पानी में डूबी चेन्नई में नाव सेवा की शुरुआत की। यानी आप अपने घर से दफ्तर जाने के लिए इसकी नाव बुला सकते हैं।
चेन्नई के कई लोगों ने ऐसा किया भी। दो नाविक पर्याप्त संख्या में छाते और प्लास्टिक शीट के साथ बुलाई जगह पर आते और एक बार में पांच से सात लोगों को नाव में बिठाकर उनकी मंजिल तक ले जाते।
आईटी का एक बड़ा हब होने के नाते चेन्नई ने कई सेवाओं में ऐसी क्षमता हासिल कर ली है कि इसके पेशवरों ने अपने घर के कंप्यूटरों को ऑन किया और वहीं से दफ्तर का काम करना शुरू कर दिया। कई कर्मचारी तो अपने दफ्तरों में ही रुक गए, क्योंकि उनके प्रबंधन ने उन्हें खाने-पीने और सोने संबंधी जरूरी चीजें मुहैया करा दी थीं।

कुछ लोगों ने पास के होटलों में पनाह ली, तो गरदन तक पानी में फंसे कई परिवारों को बचाकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया। कई नेकनीयत लोगों ने फेसबुक की मदद से मुसीबतजदा नागरिकों को अपने घर आकर रुकने का न्योता दिया। लेकिन जब लोग तमाम अनूठे विचारों व कोशिशों से अपनी जिंदगी को व्यवस्थित करने में जुटे थे, तब सरकार क्या कर रही थी? वह वरुण देव पर आरोप लगा रही थी। राज्य सरकार ने कहा कि शहर और तटीय इलाकों को 'अभूतपूर्व' और 'अचानक' हुई बारिश का सामना करना पड़ा है और इसलिए राजधानी चेन्नई के कुछ निचले इलाके जल-प्लावित हो गए।   

क्या जलवायु परिवर्तन इसका कारण है? खबरों के मुताबिक, नवंबर इस सदी का सबसे अधिक बारिश वाला महीना साबित होगा और लगभग सारे पुराने रिकॉर्ड टूट जाएंगे। यह लेख लिखे जाने तक चेन्नई में इस महीने 1025 मिलीलीटर बारिश हो चुकी थी, जबकि साल 1918 के नवंबर महीने में 1089 मिलीलीटर वर्षा दर्ज की गई थी। चूंकि तमिलनाडु में आधी बरसात पूर्वोत्तर मानसून से होती है, इसलिए यह बारिश अपेक्षित ही है, लेकिन जिस मात्रा में यह हुई, वह अप्रत्याशित रही है। लेकिन मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर एस जनकराजन बिल्कुल अलग राय रखते हैं।

जनकराजन ने शहरी प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन, दोनों का अध्ययन किया है। उनका मानना है कि शहर में बाढ़ की स्थिति 'खराब शहरी नियोजन' की देन थी। उनका कहना है कि शहर के योजनाकारों ने इसके अविवेकपूर्ण विस्तार को बढ़ावा दिया। 'आवासीय भूखंडों व बहुमंजिला इमारतों को इन्फ्रास्ट्रक्चर या जल-विज्ञान संबंधी जानकारी जुटाए बिना ही मंजूरी दी जाती रही है।' नतीजतन पानी के निकलने के तमाम रास्ते बंद हो गए और उन पर इमारतें खड़ी कर दी गईं। ऐसे में, पानी कहां जाएगा? जनकराजन इस दलील को मानने से इनकार करते हैं कि अभूतपूर्व बारिश की वजह से चेन्नई की वह दशा हुई। वह इसके लिए 'लालच' को जिम्मेदार ठहराते हैं।

नगर प्रशासन ने जरूरत से ज्यादा तत्परता दिखाई। इसने तुरंत राहत व बचाव कार्य की घोषणा कर डाली और इसके लिए सेना तक को बुला लिया। चेन्नई के उपनगरों की मध्यवर्गीय कॉलोनियों में घरों की छत पर हेलीकॉप्टर से खाने के पैकेट और पानी की बोतलें गिराई गईं। लेकिन क्या यह सब जरूरी भी था? क्या शहर अपने तईं इस तरह की स्थिति से नहीं निपट सकता था? आखिर कोई सुनामी तो आई नहीं थी और न ही किसी प्रचंड समुद्री तूफान ने शहर को तहस-नहस कर डाला था। यह हर साल बरसने वाली बारिश ही थी, जो इस बार उम्मीद से ज्यादा बरस गई थी।

इस भारी बारिश के कारण राज्य में, खासकर राजधानी चेन्नई के सबसे प्रभावित इलाकों और इसके पड़ोसी जिलों कुडलोर व पुडुचेरी में मरने वालों की संख्या करीब 175 पर पहुंच गई। राज्य सरकार ने इस बारिश के कारण 8,000 करोड़ से अधिक के नुकसान का आकलन किया, जिसके बदले केंद्र सरकार ने करीब 900 करोड़ रुपये की फौरी मदद मुहैया कराई है। इस बार की बरसात की कई कहानियां हैं, जिनमें से कुछ दर्दनाक हैं, तो कुछ दिल को छू लेने वाली।   

देश की चौथे सबसे बड़ी नगरी चेन्नई समुद्र से सटे मैदानी भूभाग पर बसी है। इसकी कुदरती भू-आकृति ऐसी नहीं है कि इसकी जल-निकासी सीधे समुद्र में हो जाए। इस शहर के पास लगभग आधा दर्जन नदी-प्रणाली हैं। इनमें से तीन- अडयार, बकिंघम कैनाल और कूवम नदियां पूरे शहर में आड़े-तिरछे गुजरती हैं। समय के साथ कैनाल की गहराई आहिस्ता-आहिस्ता कम होती गई, क्योंकि इसमें गंदे नाले बहाए जाते रहे हैं, और ज्यादातर जगहों पर जल-शोधन की व्यवस्था नहीं है। चूंकि बड़े-गहरे नाले पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, ऐसे में बारिश का पानी छोटी नालियों के पानी से मिलकर आसपास के इलाकों के हालात खराब बना देते हैं।

उपनगरों की स्थिति ज्यादा खराब है। भूमाफिया ने नगर विकास प्राधिकरण के साथ सांठगांठ करके ऐसी जगहों पर भी अपार्टमेंट्स और मॉल खड़े कर दिए हैं, जहां कभी झील और जलाशय थे। इस शहर की दलदली भूमि कभी 250 किलोमीटर में फैली थी, लेकिन आज यह एक छोटे-से दायरे में सिमटकर रह गई है। इसका भी अतिक्रमण हो गया है। सवाल है कि चेन्नई की मैन्युफैक्चरिंग और आईटी हब की छवि का क्या होगा?

ऑटो सेक्टर बारिश के कारण पैदा हुई कुव्यवस्था से सबसे अधिक प्रभावित हुआ, क्योंकि उसके कर्मचारी फैक्टरियों तक पहुंच नहीं सके। हालांकि आईटी कंपनियों ने प्राकृतिक आपदा की स्थिति वाली अपनी तैयारी के कारण खुद को संभाल लिया। इन्फोसिस और कॉग्निजेंट जैसी बड़ी कंपनियों में तो दूसरे केंद्रों पर तैनात अपने अधिकारियों के जरिए अपने काम निपटा लिए, मगर छोटी कंपनियां जरूरी प्रभावित हुईं। 


न्यूयॉर्क टाइम्स ट्रेवल गाइड  के मुताबिक, दुनिया में घूमने लायक 52 जगहों में एक चेन्नई भी है। पुराने दौर में चेन्नई को केरल का प्रवेश-द्वार माना जाता था, क्योंकि केरल पर्यटन के लिहाज से एक आकर्षक जगह रहा है। चेन्नई को अपनी पुरानी छवि पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। बारिश के बाद की त्रासद स्थिति राज्य सरकार के लिए चेतावनी की घंटी होनी चाहिए कि वह समुचित तालमेल के साथ कदम उठाए। ऐसा लगता है कि पिछले वर्षों में सरकार चाहे अन्नाद्रमुक की रही हो या द्रमुक की, उसने शिक्षा व समाज कल्याण के मुद्दों पर तो ध्यान दिया, मगर शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर की पूरी तरह उपेक्षा की। साल 2004 में आई सुनामी से जब चेन्नई अस्त-व्यस्त हुई थी, तब उसके प्रति सहानुभूति की लहर उठी थी और प्रशासन ने जिस कुशलता से उसका सामना किया था, उसकी सराहना की गई थी। लेकिन मौजूदा हालात में प्रशासन को समान रूप से दोषी ठहराया जा रहा है, क्योंकि कुछ लोगों की निगाह में इस बार की असुविधाएं इंसानी करतूतों का नतीजा थीं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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