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बुरा जो देखन मैं चला

सत्संग में स्वामी जी दोहा सुना रहे थे- 'बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय, जो मन खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।' यह सुनते हुए ही मन और दिमाग बुराई के लिए सोचने लगा। वास्तव में बुराई क्या है?...

बुरा जो देखन मैं चला
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 20 Jan 2016 09:42 PM
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सत्संग में स्वामी जी दोहा सुना रहे थे- 'बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय, जो मन खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।' यह सुनते हुए ही मन और दिमाग बुराई के लिए सोचने लगा। वास्तव में बुराई क्या है? समझना थोड़ा कठिन है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि हमें जिसमें बुराई दिखती है, दूसरों को वह बुराई नहीं लगती। कई बार जिसे हम अच्छा समझते हैं, लोगों को उसमें बुराई ही बुराई दिखती है। एक और रास्ता यह है कि जिस कार्य को करने से हृदय इनकार करे, वह बुरा है और उस राह पर नहीं चलना चाहिए। कालिदास की व्याख्या है कि, 'बुराई नौका में छिद्र के समान है। वह छोटी हो या बड़ी, एक दिन नौका को डुबो देती है।'

मानव बुराई की तरफ लालच भाव से देखता है और फिर बुराई की तरफ जल्दी आकृष्ट हो जाता है और इसके संपर्क में आते ही वह बुराई की राह पर चल पड़ता है। एक बुराई आते ही अन्य बुराइयों को आने में भी देर नहीं लगती। आप बुराई की राह पर चलकर बुरा करें और सोचें कि आपको कोई देख नहीं रहा, आपकी बुराई सदैव के लिए छिपी रहेगी, तो गलत सोचते हैं आप। हर बुरे कार्य के लिए प्रकृति दंडित अवश्य करती है।

स्वामी रामतीर्थ कहते हैं कि, 'बुराई के बीज चाहे गुप्त स्थान में बोओ, चाहे किले की तरह किसी सुरक्षित किसी स्थान पर प्रकृति के अत्यंत कठोर, निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य कानून के अनुसार तुम्हें ब्याज-सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा।'
प्रेमचंद मानते हैं कि 'बुराई का उपचार मनुष्य का सद्ज्ञान है। इसके बिना कोई उपाय सफल नहीं हो सकता।' बुराई अगर संकट में फंसा दे, तो रास्ता एक ही होता है, बुद्धि और विवेक से हालात का सामना किया जाए। बुराई का सामना विवेक और धैर्य की युक्ति के साथ करते हुए आचरण की समीक्षा करते रहना चाहिए।
राधा नाचीज

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