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नागरिक आपदा के समय फौजी की याद

वहां उनकी ज्यादा तैनाती नहीं, जरूरत भी नहीं, लेकिन बिहार में सेटल होने वाले मेरे फौजी साथियों का कहना है कि इधर उनकी लोकप्रियता में अचानक जबर्दस्त उफान आ गया है। पटना में रहने वाले एक दोस्त ने कल फोन...

नागरिक आपदा के समय फौजी की याद
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 14 Apr 2016 09:33 PM
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वहां उनकी ज्यादा तैनाती नहीं, जरूरत भी नहीं, लेकिन बिहार में सेटल होने वाले मेरे फौजी साथियों का कहना है कि इधर उनकी लोकप्रियता में अचानक जबर्दस्त उफान आ गया है। पटना में रहने वाले एक दोस्त ने कल फोन पर बताया कि काफी रूखे स्वभाव के उनके एक पड़ोसी अचानक दयालु हो गए हैं। कुछ महीने पहले, जब फौजियों की वन रैंक, वन पेंशन की मांग सुर्खियों में थी, तब उन्होंने भन्नाकर मेरे दोस्त से कहा था, 'सरकार इतना देती है, पर पता नहीं, फौजियों को क्या चाहिए? ये ओरोप (वन रैंक वन पेंशन) जाने क्या बला है कि वे संतुष्ट ही नहीं होते।'

दो दिन पहले अचानक वह उनके घर आ टपके। माफी मांगने के अंदाज में बोले, 'मैंने आप लोगों की समस्याओं पर गौर किया, तो लगा कि फौजियों की शिकायतें कितनी सही हैं। कम आयु में रिटायर होकर बेरोजगारों की भीड़ के बीच फिर से नौकरी ढूंढ़ना आसान थोड़े ही है। पेंशन भी इतनी नहीं होती कि उसके सहारे दिन कट जाएं। देखिए न, रेलवे वालों को आजीवन फ्री पास मिलता है। आप लोगों को तो रिटायर होने पर फ्री प्लेटफॉर्म टिकट तो क्या, फौजी ट्रक में फ्री लिफ्ट तक नहीं मिलती। ले-देकर बस एक ही सुविधा है- मिलिटरी कैंटीन की।'

उनकी बुलंद आवाज एकदम मद्धिम हो गई। फुसफुसाते हुए बोले, 'मुझे लगता है कि सस्ती दर के बावजूद फौजी लोग अपनी थोड़ी-सी पेंशन के चलते कैंटीन की बढि़या रम और व्हिस्की भी नहीं ले पाते होंगे। भाई साहब, मेरे मन में फौजियों के लिए बेहद प्यार है। ऐसा करिए, अपने कोटे की बोतलें मुझे दे दिया करिए। मेरे मन में आपकी इतनी इज्जत है कि आपकी जरूरत भर दो-एक बोतलें मैं आपको फ्री में दे दिया करूंगा।'

चेहरे पर आए भाव को पढ़ते हुए उन्होंने खिसियाकर आगे जोड़ा, 'अच्छा, छोडि़ए, इसे आप यूं देखिए कि हम सिविलियन पर जब भी कोई आपदा आई, आप फौजियों ने जान की बाजी लगाकर हमारी रक्षा की है। अब हम लोगों पर इस राज्य में जो भारी आपदा आन पड़ी है, उसमें सहायता करना भी तो आपका फर्ज बनता है न?'
अरुणेंद्र नाथ वर्मा

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