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ऋतु रोमांस की

वसंत ऋतु में प्रेम का उत्सव मनाया जाता है, लेकिन प्रेम का जो रूप प्रकट होता है, वह दरअसल रोमांस है। फिल्मों में जो भी दिखाया जाता है, वह रोमांस से अधिक कुछ नहीं है। लेकिन प्रेम और रोमांस में फर्क...

ऋतु रोमांस की
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Feb 2017 11:16 PM
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वसंत ऋतु में प्रेम का उत्सव मनाया जाता है, लेकिन प्रेम का जो रूप प्रकट होता है, वह दरअसल रोमांस है। फिल्मों में जो भी दिखाया जाता है, वह रोमांस से अधिक कुछ नहीं है। लेकिन प्रेम और रोमांस में फर्क करना जरूरी है।

मीराबाई ने कहा है, प्रेम भक्ति को पेड़ ही न्यारो।  प्रेम एक विशाल वृक्ष है, जिसमें अंतत: भक्ति के फल लगते हैं। प्रेम हृदय के लिए एक गहरा पोषण है, इसीलिए लोग उसके लिए तरसते रहते हैं; बस तरसते ही रह जाते हैं, क्योंकि इस बुद्धिजीवी दुनिया में प्रेम के  लिए न कोई स्थान है, और न ही किसी के पास समय है। 

जब लोग प्रेम नहीं कर सकते, तो वह प्रेम मस्तिष्क में चला जाता है और सेरिब्रल बनता है; उसे हम रोमांस कहते हैं। रोमांस दरअसल नैतिकता के कठोर बंधनों के कारण पैदा हुआ है। प्राचीन सामाजिक माहौल में प्रेम करने की स्वतंत्रता नहीं थी। ऐसे में लोग भला क्या करते? प्रेम के गीत गाते, फिल्में बनाते, शृंगारिक काव्य-महाकाव्य लिखते। शारीरिक तल पर जो कुछ नहीं कर पाते, उसे वे शब्दों के जरिये करते। 
अब 21वीं सदी में शरीर का सम्मान होने लगा है। अब प्रेम का वसंत खिल सकता है। लेकिन प्रेम उगता है हृदय में और आधुनिक मनुष्य की बुद्धि उसके हृदय पर हावी हो गई है। यहां पर ओशो का नजरिया विचारणीय है कि यह समाज महत्वाकांक्षा सिखाता है। हम छोटे-छोटे बच्चों में महत्वाकांक्षाओं का जहर भरते हैं। फिर कैसे प्रेम पैदा हो? प्रेम को हम कठिन कर देते हैं। जो सरल होना था, वह कठिन हो जाता है। जो सहज होना था, उससे ही हमारे संबंध टूट जाते हैं। प्रेम के लिए कोई ऋतु नहीं होती, प्रेम के लिए तो बारह मास वसंत है।   

 

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