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प्यार और लॉजिक

यह कहानी 30 साल पुरानी है, लेकिन मुझे अब भी याद है। बचपन में मुझे दूध से सख्त चिढ़ थी। आज भी है। फिर भी बचपन में मैं दूध पी लेती थी। लेकिन ऐसा नहीं कि मां ने कह दिया और मैंने अच्छे बच्चे की तरह उनकी...

प्यार और लॉजिक
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 29 Nov 2015 09:38 PM
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यह कहानी 30 साल पुरानी है, लेकिन मुझे अब भी याद है। बचपन में मुझे दूध से सख्त चिढ़ थी। आज भी है। फिर भी बचपन में मैं दूध पी लेती थी। लेकिन ऐसा नहीं कि मां ने कह दिया और मैंने अच्छे बच्चे की तरह उनकी बात मान ली।

दूध पीने के लिए रोज बाकायदा एक नाटक होता था। एक ही तरीके से, लेकिन होता रोज था। वह नाटक कुछ यूं था- मम्मी सिर पकड़कर दुखी होने का ड्रामा करतीं। वह कहतीं कि उस मुई बिल्ली से आजिज आ चुकी हैं, जो रोज आकर दूध से भरा गिलास खाली कर जाती है। वह हर जतन कर चुकी हैं कि बिल्ली की नजर दूध पर न पड़े, लेकिन बिल्ली ठहरी बला की शैतान! मां एक गिलास दूध मेज पर रखकर पल्लू से अपनी आंखें बंद कर लेतीं और लगतीं हाय-तौबा करने। आज फिर बिल्ली आकर सारा दूध गट कर जाएगी।

वह बिल्ली कोई बिल्ली नहीं, बल्कि मैं थी। मां रोज आजिज आ चुकी औरत बनतीं और मैं रोज बिल्ली। वह जितना दुख का नाटक करतीं, मुझे दूध चट करने में उतना ही मजा आता।... मुझे याद नहीं कि वह नाटक कब और कैसे खत्म हुआ? लेकिन एक दिन वह खत्म हो गया। अब मेरे पास दूध पीने, न पीने के लिए तर्क हैं। औरतों को कैल्शियम की ज्यादा जरूरत होती है। उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस होने के चांस ज्यादा हैं। दूध पीना चाहिए। ठीक है बस। लॉजिकल बात है। लेकिन जीवन कितना लॉजिक से चलता है? बिल्ली बनना दूध पीने का लॉजिक था या प्यार का? क्या बड़े होने के बाद प्यार में सब कुछ लॉजिकल हो जाता है?
मनीषा पांडेय की फेसबुक वॉल से

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