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विश्वास की रोशनी

एक बूढ़े अनपढ़ अरब को इबादत करते देख उसके रईस मालिक ने पूछा, ‘तुम लिखना-पढ़ना तो जानते नहीं, खुदा को कैसे जानते हो?’ बूढ़े शख्स ने जवाब दिया, ‘मैं ऊपर वाले मालिक की लिखाई पढ़ लेता...

विश्वास की रोशनी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Jun 2016 10:14 PM
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एक बूढ़े अनपढ़ अरब को इबादत करते देख उसके रईस मालिक ने पूछा, ‘तुम लिखना-पढ़ना तो जानते नहीं, खुदा को कैसे जानते हो?’ बूढ़े शख्स ने जवाब दिया, ‘मैं ऊपर वाले मालिक की लिखाई पढ़ लेता हूं’। ‘कैसे?’ ‘जैसे आप किसी खत को देखकर जान जाते हो कि किसका है या तंबू के बाहर से जाने वाले जानवर को बिना देखे जान लेते हो, वैसे ही।’ मालिक बोला, ‘मगर, मैं तो खत की लिखावट व जानवर के पैरों के निशान से उन्हें पहचानता हूं।’ बूढ़ा व्यक्ति अपने मालिक को बाहर ले गया और बोला, ‘मैं उसे जानता हूं आसमान और रेत पर उसकी लिखाई से, जो किसी इंसान की नहीं हो सकती’। अनपढ़ होते हुए उसने बता दिया कि ऊपर वाले पर भरोसे के लिए अक्षर ज्ञान नहीं, आस्था की जरूरत होती है। आस्था ही हमारे जीवन का पहला आधार है, चाहे वह आस्था किसी के प्रति हो।

दूसरी जरूरत है, खुद पर यकीन होने की। जिसमें वह हो, वह व्यक्ति हार नहीं मानता। गिरता है, तब भी उठने को तैयार रहता है। जब तक इंसान अपने अस्तित्व के लक्ष्य में ठोस विश्वास नहीं रखता, तब तक वह सफल नहीं हो सकता है। विश्वास रखने वाला तनाव रहित, खुशमिजाज व संतुष्ट व्यक्ति होता है, जिसके आसपास वही सकारात्मकता फैली रहती है, जो उसके व्यक्तित्व में होती है। कोई भी खुद तक सीमित रहकर जीवित नहीं रह सकता। संसार की बदलती प्रवृत्ति में हर किसी पर विश्वास न किया जाए, यह ठीक नहीं है। मनुष्य संयुक्त परिवारों से अलग होने और सोशल मीडिया की सुविधा के कारण बहुत लोगों के संपर्क में आता है, पर उसे जांचने-परखने का समय नहीं मिलता। नतीजतन, कई बार वह धोखा खा जाता है। पर इससे यह तात्पर्य कदापि नहीं निकालना चाहिए कि कोई भी भरोसेमंद नहीं है। आखिरकार हमारा जीवन भरोसे और विश्वास पर ही टिका है। इस सच को कुछ कड़वे अनुभवों के कारण नहीं झुठलाया जा सकता।

 

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