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कैसी जिंदगी

जिंदगी कैसी हो, इसके जवाब कई हैं। एक अच्छा जवाब यह है कि ‘अपने होने में दूसरों का होना’ और ‘दूसरों के होने में अपना होना’ अनिवार्य हो। ईधी साहब की तरह। जीवन भर वह...

कैसी जिंदगी
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 26 Jul 2016 09:32 PM
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जिंदगी कैसी हो, इसके जवाब कई हैं। एक अच्छा जवाब यह है कि ‘अपने होने में दूसरों का होना’ और ‘दूसरों के होने में अपना होना’ अनिवार्य हो। ईधी साहब की तरह। जीवन भर वह हादसों-फसादों के शिकार लोगों को राहत देते रहे। जुनून ऐसा कि खब्ती तक समझे गए। फसादों में मारे गए लोगों की फटी-उधड़ी चप्पलें अपने पैरों में डालीं।

आखिर जब मरे, तो उन्हीं पैरों के पास हुक्मरानों की जमात कतार में खड़ी थी। 19 तोपों की सलामी भी मिली। ऐसे और भी हैं। हो सकता है कि उनका जीवन अज्ञात हो। दूसरों के लिए जीने वाले लोग अकेले होकर भी स्वयंसेवकों की फौज की तरह होते हैं। वे एकला चलो रे की धुन पर चलते हैं, पर सबके लिए चलते हैं।

जिन संस्कृतियों में ऐसे लोग जितने ज्यादा होते हैं, उस संस्कृति की जड़ें उतनी ही गहरी होती हैं। हम भारतीय इस मामले में काफी आगे हैं। यहां-अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्, उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्  की भावना आधार रही है। हम मानते आए हैं कि- यह अपना है, वह पराया, ऐसी बातें छोटी बुद्धि वाले मनुष्य किया करते हैं। जो उदार प्रकृति के लोग हैं, वे धरती पर रहने वाले सभी लोगों को अपना परिवार मानते हुए परिजनों-सा व्यवहार करते हैं।

यहां अमेरिकी दार्शनिक-कवि हेनरी डेविड थोरो की विख्यात कृति वॉल्डन  पढ़नी चाहिए। वॉल्डन जंगल के बीच मौजूद एक सरोवर है, जिसके किनारे थोरो झोंपड़ी बनाकर किसी ऋषि की तरह रहे। पूरे दो साल वहां मेहनत-मजदूरी की। आखिर यही पाया कि जीना वही है, जो सहज है, सरल है, प्रकृतिस्थ है। थोरो ने जंगल में जो पाया, उसी पर वॉल्डन लिखी, ताकि दूसरे उनके हासिल किए से कुछ हासिल कर सकें। एक बात और, आधुनिक शोधों ने भी साफ कर दिया है कि मन, वचन और काया से जो दूसरों की मदद करते हैं, वे ज्यादा स्वस्थ होते हैं। उनमें तनाव कम होता है। वे ज्यादा जीते हैं, और उनका जीना ईश्वर को भी पसंद है।
प्रवीण कुमार

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