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इसे असली टेस्ट क्रिकेट नहीं कहा जा सकता

नागपुर टेस्ट मैच में जीत के साथ ही भारत ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज पर कब्जा जमा लिया। इस मैच में मेहमान टीम के खराब प्रदर्शन के कई  पुराने रिकॉर्ड भी ध्वस्त हो गए। करीब डेढ़ दशक बाद...

इसे असली टेस्ट क्रिकेट नहीं कहा जा सकता
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 27 Nov 2015 09:48 PM
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नागपुर टेस्ट मैच में जीत के साथ ही भारत ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज पर कब्जा जमा लिया। इस मैच में मेहमान टीम के खराब प्रदर्शन के कई  पुराने रिकॉर्ड भी ध्वस्त हो गए। करीब डेढ़ दशक बाद दक्षिण अफ्रीका भारत में सबसे कम स्कोर पर आउट होने वाली टीम बन गई। बड़े-बड़े नामी बल्लेबाज दहाई के आंकड़े तक पहुंचने के लिए तरसते रहे। अब अगले कुछ दिनों तक  इस बात पर जमकर बहस होगी कि सिर्फ तीन दिन में टेस्ट मैच खत्म होने का कसूरवार कौन है? लेकिन इन सारी बहस और चर्चाओं में क्रिकेट के उन चाहने वालों की कोई भागेदारी नहीं होगी, जो टेस्ट  क्रिकेट को ही असली क्रिकेट मानते हैं और जो टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाज की काबिलियत और गेंदबाज का धैर्य देखना चाहते हैं। इससे पहले मोहाली में सीरीज का पहला टेस्ट मैच भी तीन दिन में ही खत्म हो गया था।

दक्षिण अफ्रीका के भारत दौरे की शुरुआत में टी-20 और वनडे सीरीज में भारत की हार के बाद पिच को लेकर काफी बवाल हुआ था। टीम इंडिया के डायरेक्टर रवि शास्त्री और वानखेड़े स्टेडियम के क्यूरेटर सुधीर नायक के बीच झगड़े की यादें अभी ताजा ही हैं। ऐसे माहौल में इन दोनों टेस्ट मैच के नतीजे इस बहस को और खींचने का ही काम करेेंगे। राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज खिलाड़ी ने कहा ही है कि इस तरह की पिचें आने वाले खिलाडि़यों की तरक्की की राह में रोड़ा हैं। पिच पर बहुत ज्यादा घास नहीं होनी चाहिए, पर पिच ऐसी भी नहीं होनी चाहिए कि तीन दिन में मैच खत्म हो जाए। दुनिया के कई दिग्गज खिलाड़ी इस बात की पैरवी कर रहे हैं कि टेस्ट मैच में विकेटों को बनाने का काम आईसीसी को अपने हाथों में ले लेना चाहिए।

वैसे टेस्ट क्रिकेट का इतिहास बताता है कि मेजबान टीमें मनमाफिक पिचें तैयार कराती रही हैं। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड वगैरह में तेज और हरी विकेट मिलती हैं, तो दक्षिण अफ्रीका की उछाल भरी पिचें विदेशी टीमों का स्वागत करती हैं। कुछ ऐसी ही मनमाफिक पिचों की परंपरा एशियाई मुल्कों की रही है। पाकिस्तान में तो खैर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट हुए बरसों बीत गए, लेकिन श्रीलंका और भारत में स्पिन ट्रैक ही बनते रहे हैं।
इसीलिए टेस्ट क्रिकेट को इम्तिहान के नजरिये से देखा जाता था, जब बल्लेबाज को अलग-अलग विकेट के हिसाब से खुद को ढालना पड़ता है, रन बनाने के लिए जूझना पड़ता है। लेकिन मनमाफिक पिच बनाने की परंपरा जब बेकाबू हो जाए, तो वह क्रिकेट फैंस को दुखी करती है। इस जीत का एक पहलू यह भी है कि आने वाले समय में कुछ ऐसी ही हालत भारतीय सूरमाओं की विदेशी पिचों पर होगी, जब गेंद छाती तक आएगी और स्विंग सीम का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाएगा। लिहाजा दक्षिण अफ्रीका पर भारत की इस जीत का मजा उठाते वक्त यह ध्यान रखना होगा कि न तो यह असली जीत है, न असली टेस्ट क्रिकेट।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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