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जल्दी और जल्दबाजी 

बहुत दिनों बाद दोस्त से मुलाकात हुई थी। यूं ही ऑफिस के बाहर घूम रहे थे। उनकी निगाह बार-बार घड़ी पर चली जाती थी। दोस्त ने उखड़कर कहा, ‘तू हमेशा जल्दबाजी में ही रहता है।’ हम सबके पास काम का...

जल्दी और जल्दबाजी 
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 28 Oct 2016 11:16 PM
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बहुत दिनों बाद दोस्त से मुलाकात हुई थी। यूं ही ऑफिस के बाहर घूम रहे थे। उनकी निगाह बार-बार घड़ी पर चली जाती थी। दोस्त ने उखड़कर कहा, ‘तू हमेशा जल्दबाजी में ही रहता है।’ हम सबके पास काम का दबाव हो सकता है। होना भी चाहिए। लेकिन जॉन रॉबर्ट वुडन का मानना है, ‘जल्दी तो ठीक है, लेकिन जल्दबाजी नहीं।’ वह महान बास्केट बॉल कोच थे। लॉस एंजेलिस की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से जुड़े रहे। उनकी बेहद चर्चित किताब है पिरामिड ऑफ सक्सेस प्लेबुक: अप्लाइंग द पिरामिड ऑफ सक्सेस टु योर लाइफ।

हम काम को जल्दी करना चाहते हैं। यह अच्छी बात है। लेकिन हमें अपने काम को बेहतर ढंग से भी करना होता है। हम काम अच्छा करें और वह जल्दी भी हो जाए। उससे बेहतर और क्या हो सकता है? कुल मिलाकर, काम अच्छा होना चाहिए। हम कोई काम करते हैं, तो उसकी समय-सीमा भी तय करते ही हैं। बिना उसे तय किए काम करने का कोई मतलब नहीं रह जाता। हम अपना काम उस समय-सीमा में कर लें। और काम बेहतर हो, यही हमारी कामयाबी होती है।

कभी-कभी हम काम करते हुए हड़बड़ी में नजर आते हैं। यह हड़बड़ी ही जल्दबाजी होती है। हम जब जल्दी काम करते हैं, तो हम तेज नजर आ सकते हैं। लेकिन जल्दबाजी में काम करते हुए हम भागते नजर आते हैं। और उस भागने में परेशानी छलक-छलक पड़ती है। हम तेजी से काम करें। यहां तक तो ठीक है। लेकिन भागते-दौड़ते परेशान नजर आएं। यह ठीक नहीं है। हम कुछ भी करें। हमारा अपने ऊपर पूरा नियंत्रण होना चाहिए। उस पूरे नियंत्रण के साथ जल्दी करने का कोई मतलब है। अगर वह नियंत्रण से बाहर है, तो जल्दबाजी है। हम जल्दी करें। अपने काम में तेजी लाएं। कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जल्दबाजी हमें दुर्घटना की तरफ ले जाती है। 

 

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