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सेना ही सेना हैं, आप चुन तो लें

सुभाषचंद्र बोस का जवाहरलाल नेहरू से झगड़ा था या नहीं था, यह तो इतिहासकार जानें या फिर नया इतिहास गढ़ रहे संगठन। लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा में पिछले दिनों सुभाष सेना ने जवाहर बाग पर कब्जा कर लिया।...

सेना ही सेना हैं, आप चुन तो लें
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 13 Jun 2016 10:06 PM
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सुभाषचंद्र बोस का जवाहरलाल नेहरू से झगड़ा था या नहीं था, यह तो इतिहासकार जानें या फिर नया इतिहास गढ़ रहे संगठन। लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा में पिछले दिनों सुभाष सेना ने जवाहर बाग पर कब्जा कर लिया। कहते हैं कि इस कब्जे की सरकार को तो ज्यादा परवाह नहीं थी, पर कोर्ट के आदेश के चलते पुलिस को उससे जंग लड़नी पड़ी।

 सुभाष सेना पता नहीं यह मानती थी कि नहीं कि नेहरू की वजह से सुभाष को इतिहास में वह स्थान नहीं मिल पाया, जो उन्हें मिलना चाहिए था, इसलिए चलो जवाहर बाग पर कब्जा कर इतिहास की गलती सुधारो। सुभाष सेना का शायद सुभाषचंद्र बोस से कुछ लेना-देना भी नहीं था, उसका तो जय गुरुदेव से लेना-देना था। दिल्ली की भगतसिंह सेना का भी भगत सिंह से क्या लेना-देना है? भगत सिंह और उनके साथियों ने असेंबली में बम फेंककर नाम कमाया था, तो भगतसिंह सेना नेताओं पर स्याही फेंक नाम कमा रही है। कर्नाटक में एक श्रीराम सेना है। पता नहीं, उसका श्रीराम से क्या लेना-देना है, वह तो बस प्रेमी जोड़ों को कूटती है, जहां कहीं भी दिख जाएं- बस में, रेस्तराओं में, कहीं भी। महाराष्ट्र में सुना है कि शिवसेना भी जब तक राज ठाकरे की नव-निर्माण सेना नहीं बनी थी, कुटाई में पीछे नहीं थी, अब दोनों में कंपीटिशन है। गांधी के नाम पर सड़कें, चौराहे, पार्क वगैरह तो खूब हैं, लेकिन सेना नहीं है।

पहले बिहार में जातियों की सेनाएं थीं, अब उनकी खबर नहीं आती। अब वहां जंगल राज भी नहीं है। पर भाजपा वालों को पक्का यकीन है कि जंगल राज लौट रहा है। हो सकता है कि एक दिन जातियों वाली सेनाएं भी लौट आएं। सेना में भर्ती होने के लिए तो आपको दौड़ पूरी करनी पड़ती है, सीना फुलाना पड़ता है। वजन और कद-काठी भी पूरे चाहिए और शिक्षा भी चाहिए। फिर सेना को तो देश के लिए जंग भी लड़नी पड़ती है। इन नई सेनाओं के लिए ऐसी कोई योग्यता नहीं चाहिए। न देश के दुश्मनों से जंग लड़नी पड़ेगी। उन्हें तो बस अपने लोगों को ही दुश्मन मानकर लड़ना है। उनकी कुटाई-ठुकाई से सीना तो अपने आप फूल ही जाएगा।
सहीराम

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