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कछु संकटलीला बरनन करि

हिंदी साहित्य में संकट का मल्टीप्लेक्स खुल गया है। सेल का सीजन है। छूट का रीजन है। एक संकट लें, तो दूसरा फ्री मिलता है। दो लेते हैं, तो पांच की व्यवस्था है। होम डिलीवरी फ्री है। आप संकट का...

कछु संकटलीला बरनन करि
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 04 Jun 2016 09:39 PM
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हिंदी साहित्य में संकट का मल्टीप्लेक्स खुल गया है। सेल का सीजन है। छूट का रीजन है। एक संकट लें, तो दूसरा फ्री मिलता है। दो लेते हैं, तो पांच की व्यवस्था है। होम डिलीवरी फ्री है। आप संकट का ‘व्हाट्सएप’ डाउनलोड करें और ताजे से ताजे संकट का मजा लें। यह संकट का फैशन है। संकट का सेशन है। संकट का लेसन है। संकट का टेंशन है। संकट सजेशन है। संकट पजेशन है। संकट सलेक्शन है। संकट कलेक्शन है। संकट रिजेक्शन है। संकट कनेक्शन है। यह न लिख पाने का संकट है। यह न बिक पाने का संकट है। यह न टिक पाने का संकट है। साहित्य में कुछ न बन पाने का संकट है। यह सब कुछ बन जाने का संकट है। यह साहित्य में छा जाने का संकट है। न छा पाने का संकट है।

यह इनाम लपकने का संकट है। उसे न लपक पाने का संकट है। यही ‘विचार’ का संकट है। यही ‘धारा’ का संकट है। यही ‘वर्ग-संघर्ष’ का संकट है। यही घिस्से का संकट है। यही हिस्से का संकट है। यही किस्से का संकट है। यह छप जाने का संकट है। यह न छप पाने का संकट है। यह बिक जाने का संकट है। यह न बिक पाने का संकट है। यही दिखने का संकट है। यही लिखने का संकट है। यही रॉयल्टी का संकट है। यही लॉयल्टी का संकट है। यही तो कवि का संकट है। यही कहानीकार का संकट है। यही आलोचक का संकट है। यही समीक्षक का संकट है।

यही साहित्य की साधना है। यही साहित्य की आराधना है। यही साहित्य की मुक्ति है। यही असली युक्ति है। यह संकट लवली है। यह संकट ‘बंटी और बबली’ है। यही संकट की ढपली है। वह कभी प्रकट होता है, तो कभी अप्रकट होता है। कभी निकट होता है, तो कभी विकट होता है, और कभी साहित्यिक उड़ान का ‘टिकट’ होता है। संकट वही होता है, जो कटाने से कटता है, जो पटाने से पटता है, जो सटाने से सटता है। साहित्यकार संकट को कटाना, पटाना, सटाना, सब जानता है, इसीलिए उसे कटाता, पटाता, सटाता रहता है। मुझे भी एक सुबह मेरे गुरु वल्लभाचार्य जी मिल गए और आदेश दे गए कि- 
‘पचौरी है कै ऐसो रिरियात काहे कू है 
कछु संकटलीला बरनन करि।’
सो संकटलीला बरनन कर रहा हूं:
‘यह वो संकट है, जिसे देखा दिल्ली में मैंने।
यह वो संकट है, जिसे लिखा था दिल्ली में मैंने। 
यह वो संकट है, जो ‘विचार’ की ‘धारा’ पीता है। 
यह वो संकट है, जो इक इनाम को मरता-जीता है। 
यह संकट वह संकट है, जिसने अकादेमी दिलवाया मुझको। 
यह संकट वह संकट है, जो ज्ञानपीठ तक ले जाएगा मुझको।
मैं वो हूं, जो संकट का राग सुनाता हूं।
मैं वो हूं, जो संकट की फाग मनाता हूं।
मैं वो हूं, जो संकट को तेल लगाता हूं। 
मैं वो हूं, जो संकट से मेल कराता हूं।
मैं वो संकट हूं, जो कि पास को फेल कराता हूं।
मैं वो संकट हूं, जो कि फेल को टॉप कराता हूं। 
लेकिन पार्टी से पूछ आइए आप।
संकट खरीदना नहीं कभी है पाप।
इस सेल के आगे सभी फेल। तू बन संकट की सुपर सेल।’

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