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इससे तो जीवन का नक्शा बिगड़ सकता है

अगर 'जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन रेगुलेशन बिल, 2016' संसद से पारित हो गया, और इसने कानून की शक्ल ली, तो ऐसी काफी कुछ चीजें आपके हाथों से छिन जाएंगी, जिन्हें आप अभी कोई महत्व नहीं देते। मसलन, इस...

इससे तो जीवन का नक्शा बिगड़ सकता है
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 25 May 2016 09:41 PM
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अगर 'जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन रेगुलेशन बिल, 2016' संसद से पारित हो गया, और इसने कानून की शक्ल ली, तो ऐसी काफी कुछ चीजें आपके हाथों से छिन जाएंगी, जिन्हें आप अभी कोई महत्व नहीं देते। मसलन, इस कानून के वजूद में आने के बाद आप सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें, पोस्ट व वीडियो अपलोड करने (जियोटैग) से वंचित हो जाएंगे, जो किसी भौगोलिक जगह की शिनाख्त कराते हों।

आप अपने स्मार्टफोन एप्स की मदद से खूबसूरत नजारों को टैग करने से भी महरूम हो जाएंगे। यही नहीं, अगर आप बेहद भूखे हों और खाना पकाने की आपकी कतई इच्छा न हो, तो फूड डिलिवरी एप के जरिये होटल को अपने घर का पता देने के भी नाकाबिल हो जाएंगे। इस कानून के बनने के बाद कोई संगठन भूगोल पर आधारित विश्लेषणों के चार्ट नहीं बना पाएगा। विश्वविद्यालय मानचित्र पर आधारित शोध किसी से साझा नहीं कर सकेंगे, कोई मछुआरा समुद्री तूफान से जुड़ी ताजा जानकारी दूसरों को नहीं बता पाएगा।

नागरिक बचाव कार्य के दौरान भी अपने लोकेशन को साझा नहीं कर पाएंगे। यह विधेयक 'भारत की भू-विशेष सूचनाओं के संकलन, प्रसारण, प्रकाशन और वितरण कोे नियंत्रित करने' का प्रस्ताव करता है।

इससे न सिर्फ बड़ी भीड़ को आंकने वाली तकनीकें, जिनका इस्तेमाल कंपनियां करती हैं या गूगल व एपल नक्शे प्रभावित होंगे, बल्कि स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले हर आदमी को किसी जियो-टैग सूचना को संकलित और प्रसारित करने से पहले इसका लाइसेंस लेना होगा।  हम इस कोशिश पर हैरान ही हो सकते हैं कि ऐसे में हजारों आतंकियों को, जो स्मार्ट-उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं, लाइसेंस की जरूरत पड़ जाएगी।

नक्शा बनाने की कला सदियों से नक्शानवीसी के रूप में जानी जाती रही है। नक्शा हमेशा से विशेषज्ञों और विशेष योग्यता या दिलचस्पी रखने वाले सरकारी मुलाजिमों का कार्य-व्यापार रहा है। लेकिन पिछले 10 वर्षों में डिजिटल क्रांति, और खासकर कैमरा वाले फोन व फोटों की साझेदारी करने में सक्षम सोशल नेटवर्किंग मंचों के सामने आने के बाद नक्शा एक उपभोक्ता उत्पाद बन गया है। वास्तव में, हम अनेक निजी-पेशेवर उद्देश्य से नक्शे का इस्तेमाल करते हैं, और हमें किसी शैंपू के इस्तेमाल करने से पहले या कोई ब्रेड खाने से पूर्व तो लाइसेंस नहीं लेना पड़ता। क्या हम ऐसा करते हैं? इस डिजिटल युग मेें हम नक्शों व उपभोक्ताओं द्वारा गढ़े जा रहे वैल्यू एडिशन पर नजर डालें, तो बखूबी स्पष्ट हो जाता है कि सरकार के साथ ही समुदाय के हित का यह कितना बड़ा औजार है?

इस विधेयक को लेकर सरहदों की रक्षा से जुड़ी जो दलीलें दी जा रही हैं, वे विचित्र लगती हैं। पहले ही ऐसे नियम-कानून हैं, जो नक्शों को दिखाने से जुड़े हैं। इसलिए उनका दैनिक इस्तेमाल नहीं बाधित किया जाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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