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गंगा के मायके में बर्फ नहीं है इस बार

जनवरी का महीना गुजर गया, लेकिन गंगा के उद्गम में अब तक बर्फ नहीं पड़ी। वैसे 20 फरवरी के बाद तो यहां गरमी लौटने का एहसास होने लगता है। वह भी तब, जब चारों ओर की पहाडि़यां बर्फ से लकदक रहती थीं।...

गंगा के मायके में बर्फ नहीं है इस बार
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 05 Feb 2016 09:25 PM
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जनवरी का महीना गुजर गया, लेकिन गंगा के उद्गम में अब तक बर्फ नहीं पड़ी। वैसे 20 फरवरी के बाद तो यहां गरमी लौटने का एहसास होने लगता है। वह भी तब, जब चारों ओर की पहाडि़यां बर्फ से लकदक रहती थीं। उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच बर्फ कहीं ऊंची चोटियों पर चली गई है। इस समय तक हर्षिल, भैंरोघाटी, गंगनानी, भटवाड़ी आदि क्षेत्र बर्फ से लबालब भरे रहते थे। इस बार यहां सूखे के हालात बन गए हैं। मौसम ने ऐसी करवट ले ली है कि बर्फ के शौकीन पर्यटक भी मायूस होकर लौट रहे हैं। गंगोत्री के पहाड़ों में स्थित स्पंजी बुग्याल भी पानी न होने से सूखने लग गया है। आशंका है कि आने वाले दिनों में पानी की सबसे अधिक कमी होगी। वैसे भी, इसके संकेत भागीरथी की जलराशि आधी होने से मिल रहे हैं। इस पवित्र नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने वाले गाद-गदेरों में जैसे, सोनगाड़, पिलंगगाड़, जाड़ गंगा, अस्सी गंगा आदि के जल ग्रहण क्षेत्रों में पानी की मात्रा आधी से भी कम हो गई है। पेड़-पौधे भी बारिश और बर्फ न मिलने से सूख रहे हैं। गेहूं की फसल लगभग चौपट हो गई है। हर्षिल के सेबों में फूल नहीं आ रहे।

उत्तराखंड के 968 ग्लेशियरों में से पवित्र भागीरथी में योगदान देने वाले 238 ग्लेशियर हैं, जिनमें आधे से अधिक अभी बिना बर्फ के हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर के 5,262, हिमाचल के 2,735, सिक्किम के 449 और अरुणाचल के 162 ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा लगातार घट रही है। पूरे भारतीय हिमालय क्षेत्र में 49,102 वर्ग किलोमीटर में ग्लेशियर फैले हुए हैं। लेकिन इनसे निकलने वाली तीन बड़ी नदियां- सिंधु, गंगा, बह्मपुत्र और इनकी हजारों सहायक नदियों में जल की कमी से प्रदूषण बढ़ रहा है। गंगा के मामले में यह पहले भी कई बार हो चुका है, लेकिन इस बार ठंड का मौसम ही गरमी में बदल गया है। चौड़ी पत्ती के जंगल कई वर्षों से हिमालय क्षेत्र में सिकुड़ रहे हैं। इनमें बांस, बुरांश, मौरू, थुनेर की प्रजातियां तो बहुत कम बची हैं। इनके वृक्षारोपण और संरक्षण के उपायों पर किसी का भी ध्यान नहीं है।

जहां पहले से ही ग्लेशियरों के पिघलने की दर 18-20 मीटर प्रतिवर्ष है, वहीं बर्फ न पड़ने के कारण यहां से निकलने वाली हिमपोषित नदियों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो सकता है। वैश्विक तापमान के बढ़ने का प्रभाव इन स्थानों पर अवश्य पड़ रहा होगा, लेकिन यहां के पर्यावरण को संतुलित रखने वाले कारकों को कई तरह से नष्ट भी किया गया है।

उच्च हिमालयी क्षेत्र में जल समेटने का काम वर्षा के अलावा चौड़ी पत्ती के जंगल, बुग्याल, झील, तालाब आदि करते हैं। अब इनकी सेहत ही बिगड़ने लगी है। इस संकट को लेकर अगर हम सचेत नहीं हुए, तो हिमालय के  ऊपरी क्षेत्र में ही जलवायु शरणार्थी (क्लाइमेट रिफ्यूजी) पैदा हो सकते हैं। अब भी वक्त है, जब इसको रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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