बंदरों से परेशान शहर के लिए समाधान
पिछले महीने वन व पर्यावरण मंत्रालय ने एक विवादास्पद फैसला किया और देश में पाए जाने वाले बंदरों की प्रजाति (रेसस मकाऊ) को फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों की श्रेणी में डाल दिया। इसके साथ ही...
पिछले महीने वन व पर्यावरण मंत्रालय ने एक विवादास्पद फैसला किया और देश में पाए जाने वाले बंदरों की प्रजाति (रेसस मकाऊ) को फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों की श्रेणी में डाल दिया। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के शिमला इलाके में बड़े पैमाने पर बंदरों के सफाए का रास्ता भी साफ हो गया।
इस प्रदेश में बंदरों की समस्या खासी विकट है, खासकर शिमला की जाखू पहाड़ी के आस-पास। यह भी सच है कि ये बंदर फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे किसानों की उपज ही चौपट हो जाती है। पर यह सवाल तो है ही कि क्या उस जानवर का बड़े पैमाने पर सफाया कर देना समस्या का समाधान है, जिसे दुनिया भर में परेशानियों का कारण माना जाता है? ऐसे काफी सबूत हैं कि किसी जानवर का सफाया अस्थायी समाधान है और इसका नतीजा हमेशा सवालों में रहा है।
इस नैतिक सवाल को अगर हम दरकिनार भी कर दें कि क्या इंसान को किसी जानवर का बड़े पैमाने पर सफाया करना चाहिए, तब भी यह सवाल रहेगा ही कि क्या इससे हमारी मूल समस्या खत्म हो जाएगी? ऑस्ट्रेलिया में वन्य जीवों के लिए खतरा बन गई जंगली बिल्ली के बड़े पैमाने पर सफाए की नीति अपनाई गई, तो वहां इसका उल्टा असर दिखाई दिया था। जिस इलाके में सफाया किया गया, वहां जब अभियान का असर देखा गया, तो पता चला कि बिल्लियों की संख्या पहले के मुकाबले और बढ़ गई। बिल्लियों ने अपने लिए बिछाए गए जाल से निकलना भी सीख लिया था।
यह भारत में भी हो चुका है। हिमाचल के वन विभाग ने बंदरों को पकड़कर दूरदराज के इलाकों में छोड़ना शुरू किया, तो उनकी जगह लेने के लिए आसपास के इलाकों से बंदर आ गए। इससे समस्या खत्म होने की बजाय बढ़ ही गई, क्योंकि शहरों से पकड़कर जो बंदर दूरदराज के इलाकों में छोड़े गए थे, उन्होंने फसलों को तबाह करना शुरू कर दिया। तो हल क्या है? शिमला के जाखू मंदिर क्षेत्र में देखा गया है कि वहां बंदरों को दर्शनार्थियों से आसानी से खाने का सामान मिल जाता है। इससे उनकी संख्या बढ़ रही है। एक तरीका यह हो सकता है कि जानवरों को वहां कुछ भी खिलाने को बिल्कुल बर्दाश्त न किया जाए। हालांकि इसे रोकना बहुत बड़ी चुनौती है।
हिमाचल प्रदेश और दूसरे प्रदेशों को ऐसी समस्या का बहुस्तरीय समाधान निकालना चाहिए। एक तो इसके लिए जंगल वगैरह में फलदार वृक्ष लगाए जाने चाहिए, साथ ही लोगों द्वारा बंदरों को कुछ भी खिलाने के खिलाफ लगातार सघन अभियान चलाना चाहिए। किसी एक तरह के जानवर को पकड़ने, भगाने, खदेड़ने से समस्या खत्म नहीं होगी। यह तरीका महंगा भी है और बहुत आसान भी नहीं है। किसी जानवर के सफाए के पीछे सोच यह रहती है कि वह मुसीबत बन चुका है, लेकिन ईकोसिस्टम में उसकी संख्या बढ़ने-घटने का तर्क पर्यावरण से जुड़ा होता है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)