भावनाएं तो भावनाएं हैं
उस दिन दोस्त चूकने के मूड में नहीं थे। 'अरे तुम बेवकूफ हो। तुम भावनाओं में बह जाते हो। और फिर पछताते हो।' वह सोचते रहे कि क्या वे भावनाएं गलत थीं। 'हमारी भावनाएं महज भावनाएं होती हैं।...
उस दिन दोस्त चूकने के मूड में नहीं थे। 'अरे तुम बेवकूफ हो। तुम भावनाओं में बह जाते हो। और फिर पछताते हो।' वह सोचते रहे कि क्या वे भावनाएं गलत थीं।
'हमारी भावनाएं महज भावनाएं होती हैं। उनमें सही या गलत कुछ नहीं होता।' यह मानना है डॉ. जेफरी नेविद का। वह न्यूयॉर्क की सेंट जॉन्स यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल साइकोलॉजी के प्रोफेसर और डॉक्टोरल प्रोग्राम के डायरेक्टर हैं। उनकी चर्चित किताब है, ह्यूमन सेक्सुअलिटी इन अ वर्ल्ड ऑफ डायवर्सिटी।
यूं भावनाएं तो अपने आप में अच्छी-बुरी नहीं होतीं। वे तो बस होती हैं। उन भावनाओं का अच्छा या बुरा होना हमारे इरादों से जुड़ा होता है। किसी के लिए हमारे मन में जो भावनाएं उठती हैं। उन्हें समझने की जरूरत होती है। भावनाओं के उठने का मतलब है कि हमारे भीतर कुछ चल रहा है। हम अपने भीतर चल रही किसी चीज को दरकिनार कैसे कर सकते हैं? हमारे शरीर में जब दर्द होता है, तो हम उसका एहसास करते हैं न!
उसी तरह हमें अपनी भावनाओं को भी ठीक से देखना चाहिए। हम जिन्हें गलत भावनाएं कहते हैं, उन्हें भी सिरे से खारिज नहीं करना चाहिए। वे हमारा ध्यान चाहती हैं। उन्हें ठीक करना पड़ता है। अगर वे गलत हैं, तो उनके साथ बहुत देर तक हम रह नहीं सकते। जानते हुए भी हम उनके साथ आगे बढ़ते रहते हैं, तो अपना ही नुकसान करते हैं। आखिरकार वह हमें ही रोकती हैं।
भावनाएं कुछ कहती हैं। हमें उन्हें सुनना चाहिए। यदि अच्छा लगता है, तो क्यों नहीं भावनाओं में बहना चाहिए? यह जरूर है कि डूब नहीं जाना चाहिए। कवियों वाला डूबना तो फिर भी ठीक है। पर भावनाओं में बहे और कहीं का कहीं चले गए। हम उनमें बहें, मगर होश नहीं खोना चाहिए। हम बहने का आनंद लें। ऐसी भावनाएं हमें उदात्त बनाती हैं।
राजीव कटारा