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अकेला चना

कहते हैं कि अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन ज्यादातर मामलों में इस कहावत का जिक्र अपने बचाव में किया जाता है या फिर दूसरों की नाकामी पर। जो भी इस कहावत में यकीन करते हैं, उन्हें कविवर...

अकेला चना
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 04 May 2016 10:02 PM
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कहते हैं कि अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन ज्यादातर मामलों में इस कहावत का जिक्र अपने बचाव में किया जाता है या फिर दूसरों की नाकामी पर। जो भी इस कहावत में यकीन करते हैं, उन्हें कविवर रवींद्रनाथ टैगोर के गीत- एकला चलो रे  के मर्म पर गौर करना चाहिए।

यही जीवन का मर्म है। सुभाषिणी मिस्त्री- यह ज्यादा प्रसिद्ध नाम नहीं है, लेकिन उन्होंने इस मर्म को समझा और अकेले ही अस्पताल बना दिया। वह छोटी सी उम्र में ही पैसों के अभाव के कारण विधवा हो गई थीं। उन्होंने अस्पताल के लिए सब्जी बेच-बेचकर पैसे जमा किए। सवाल है कि उन्होंने ऐसा कैसे किया? महज मेहनत और लगन से या फिर कुछ और। दरअसल, संकल्प शक्ति की वजह से। यह शक्ति कोहिनूर की तरह उनके मन के भीतर हमेशा रोशन रही और उन्होंने अपना सपना पूरा किया।

हम भी सुभाषिणी हो सकते हैं, बशर्ते अपनी ताकत पर भरोसा हो। विल पावर हो। ऐसा विल पावर, जो हेमिंग्वे की महानतम कृति द ओल्ड मैन ऐंड द सी  के मछुआरे सेंटियागो में थी। सेंटियागो अपनी छोटी-सी नौका लिए समुद्र में अकेला जाता है और प्रचंड लहरों, शार्कों का दो दिन और दो रात सामना करते हुए एक बड़ी-सी मछली पकड़ता है।

हममें से ज्यादातर ऐसा नहीं कर पाते। संकल्प न करना, संकल्प पर कायम न रह पाना, हमें सामान्य मानव भी नहीं रहने देता। यूनिवर्सिटी ऑफ हटफोर्टशायर के प्रोफेसर रिचर्ड वाइजमैन इस मसले पर टिप्पणी करते हैं, 'असफलता इसलिए मिलती है कि एक तो हमारे लक्ष्य सार्थक नहीं होते, दूसरे हम उसके प्रति कठोर बन जाते हैं।' वाइजमैन कहते हैं कि हमें संकल्प लेकर खुद को लगातार सजग रखना चाहिए। संकल्प को रोज अपडेट करना चाहिए, क्योंकि मन की चंचलता अक्सर उसे तोड़ देती है। हमें चाहिए कि संकल्प बड़े हों और इसे छोटे-छोटे टुकड़ों मे बांटकर पूरा किया जाए। सुभाषिणी ने ऐसा ही किया।
 नीरज कुमार तिवारी

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