कोई समझता ही नहीं
उस मीटिंग से लौटते हुए वह खो गए थे। अपनी कुरसी पर निढाल से आ पड़े। उन्होंने खुद को बुदबुदाते हुए पाया, 'मुझे लोग समझते ही नहीं हैं।' हमें अक्सर दूसरों से शिकायत रहती है। डॉ. जिम स्टोन मानते...
उस मीटिंग से लौटते हुए वह खो गए थे। अपनी कुरसी पर निढाल से आ पड़े। उन्होंने खुद को बुदबुदाते हुए पाया, 'मुझे लोग समझते ही नहीं हैं।'
हमें अक्सर दूसरों से शिकायत रहती है। डॉ. जिम स्टोन मानते हैं, 'दूसरों से शिकायत करने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि खुद को समझने और लोगों के समझने के बीच खाई कहां है?' वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में दर्शन पढ़ा चुके हैं। उनका बेहद चर्चित ब्लॉग है, क्लियर, ऑर्गेनाइज्ड ऐंड मोटीवेटेड।
हम जो होते हैं। हम जो दिखना चाहते हैं। और हमें लोग जैसा समझते हैं। कभी-कभी इन तीनों के बीच कोई तालमेल नहीं होता। हम अक्सर शिकायत करते पाए जाते हैं कि हमें लोग समझते नहीं। और यह मामूली शिकायत नहीं है। असल में हम जैसे हैं, वैसे ही दिखना चाहते हैं। तब एक बात होती है। हम जैसे हैं, उससे अलग दिखना चाहते हैं, तब कुछ और बात होती है।
हम जो हैं, सो हैं, ऐसे में लोग हमें नहीं समझते, तब शिकायत समझ में आती है। लेकिन जो हम नहीं हैं और लोगों को वही समझने की चाहत रखते हैं, तब चीजें बदल जाती हैं। उस वक्त हमारी शिकायत बहुत ऊपरी तौर पर होती है। आमतौर पर हम जो होते हैं, वैसा दुनिया के सामने दिखना नहीं चाहते। और यहीं से हमारी शिकायतों का दौर-दौरा शुरू हो जाता है। हम अपनी एक छवि बना लेते हैं।
अब हम उस छवि में ही अपने को देखने के आदी हो जाते हैं। हमारे होने और दिखने की यह एक खाई है। उसे हमें पाटने की कोशिश करनी चाहिए। वह तब पटेगी, जब हम अपने लिए तो एक हों। हम अपनी खाई को पाट लें। उसके बाद हमारे और लोगों के बीच कोई खाई बनती है, तब हम शिकायत कर सकते हैं। या उसे ठीक करने की कोशिश।
राजीव कटारा