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एक देश जो पाकिस्तान नहीं बना

करीब 20 साल पहले की बात है। नीरद सी चौधरी (अब दिवंगत) ने मुझे और मेरी बीवी को ऑक्सफोर्ड में अपने घर पर बुलाया। मशहूर लेखक नीरद हमसे मिलकर बहुत खुश थे, मगर मेरी पत्नी की पोशाक देखकर थोड़े नाखुश दिखे।...

एक देश जो पाकिस्तान नहीं बना
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 27 Nov 2015 09:53 PM
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करीब 20 साल पहले की बात है। नीरद सी चौधरी (अब दिवंगत) ने मुझे और मेरी बीवी को ऑक्सफोर्ड में अपने घर पर बुलाया। मशहूर लेखक नीरद हमसे मिलकर बहुत खुश थे, मगर मेरी पत्नी की पोशाक देखकर थोड़े नाखुश दिखे। कुछ तल्खी के साथ बोले- यह (चूड़ीदार कुर्ता) मुसलमानों की पोशाक है न। बंगाल में हम (हिंदू) अपने घर की औरतों को इसे पहनने की कभी अनुमति नहीं देंगे।

मुझे यह वाकया इस महीने की शुरुआत में तब याद हो आया, जब मैं पहली बार बांग्लादेश पहुंचा। वहां मैंने जितनी महिलाओं को देखा या उनसे बात की, उनमें से ज्यादातर साड़ी में थीं; चाहे वे ढाका की लेखिका या शिक्षाविद रही हों या फिर ग्रामीण इलाकों की खेतिहर महिलाएं। हां, स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियां सलवार-कमीज में दिखीं और कुछ महिलाओं ने बुरका भी ओढ़ रखा था।

बांग्लादेश में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, और वहां का संविधान अपने देश को एक इस्लामी गणतंत्र मानता है। लेकिन फिर भी इस देश के लिए धर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण भाषा और संस्कृति हैं। मैंने अपनी कई शामें वहां पर साहित्य के दो प्रतिष्ठित प्रोफेसरों के साथ बिताईं, जिनमें से एक थे फकरुल आलम और दूसरे कैसर हक। आलम ने रवींद्रनाथ टैगोर और जीबानंदा दास की कविताओं का अनुवाद किया है, तो हक ने ग्रामीण बंगाल में नाग देवी की उपासना पर हाल ही में एक किताब लिखी है। ये कोई ऐसे मुस्लिम शिक्षाविद नहीं हैं, जो हिंदू विषयों पर अध्ययन कर रहे हों, बल्कि बतौर बंगाली उनकी मंशा यही रही है कि अपनी माटी की साहित्य व लोककथा संबंधी विरासत को बड़ा पाठक वर्ग मिले।

बांग्लादेश का पाकिस्तान की तुलना में कम इस्लामीकरण हुआ है। पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना की बहन और उनकी विश्वासपात्र फातिमा जिन्ना हमेशा साड़ी पहनती थीं। तब मध्य वर्ग की काफी महिलाएं साड़ी ही पहनती थीं। मगर समय के साथ वहां साड़ी को बतौर हिंदू परिधान देखा जाने लगा। सिंध के  ग्रामीण  इलाकों को छोड़ दें, तो साड़ी कमोबेश लोगों की नजरों से ओझल होने लगी और बुरका ज्यादा दिखने लगा। जब हम इन दोनों देशों के पुरुषों की तुलना करते हैं, तो यह अंतर और साफ हो जाता है। ढाका की तुलना में लंबी दाढ़ी और मुस्लिम टोपी लाहौर की सड़कों पर ज्यादा आम हैं।

निस्संदेह, इस्लामी कट्टरता बांग्लादेश में भी मौजूद है। खाड़ी देशों में काम करने के लिए गए बांग्लादेशी कट्टरता, निर्ममता और वहाबी संप्रदाय की भावना लेकर वापस लौटे हैं। शहरों में स्वतंत्र सोच रखने वाले या ईश्वर में आस्था न रखने वाले लेखकों की या तो हत्याएं की जा रही हैं अथवा उन्हें तस्लीमा नसरीन की तरह निर्वासित जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा है।

भले ही बांग्लादेश में धर्मांधता अब भी बड़ा खतरा है, मगर यह खतरा पाकिस्तान में अपेक्षाकृत ज्यादा है, जहां की सत्ता और सेना इसका पोषण करती आई हैं। उन्हें लगा कि जिहादियों के माध्यम से वे कश्मीर और अफगानिस्तान में अपने हित कहीं बेहतर तरीके से साध सकती हैं। मगर यह एक त्रासद गलती थी। जिहादियों ने पाकिस्तान में शिया मुसलमानों और नास्तिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। दैनिक जीवन में भी, खासकर शिक्षा में कट्टरवाद का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ा है। लिहाजा, पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र और एक इस्लामी  समाज, दोनों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मैं तीन बार पाकिस्तान गया हूं और मैंने देखा कि अल्पसंख्यक वहां कितने डरे हुए रहते हैं। बांग्लादेश में स्थिति इतनी डरावनी नहीं है। बेशक वहां कुछ हिंदू आशंकित रहते हैं। ढाका में ही मेरी मुलाकात एक ऐसे युवा डॉक्टर से हुई, जिसने बताया कि वह जितनी जल्दी हो सके, विदेश जाना चाहता है। मगर बाकी बेहतर तरीके से मिले-जुले हैं। लाहौर, कराची या इस्लामाबाद में आपको उतने हिंदू लेखक या प्रोफेशनल नहीं दिखेंगे, जितने कि ढाका में मिलते हैं।

ढाका में चार दिनों के गहन विचार-विमर्श के बाद मैंने इस शहर के बाहर जाने का फैसला लिया। एक मित्र ने कार, ड्राइवर और एक ऐसे गाइड की व्यवस्था कर दी, जिसने हाल ही में पुरातत्व-विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की थी। हम कई गांवों से गुजरे। वहां धान के खेत थे, बांस के झाड़ थे और चिडि़या-चुनमुन की सुंदरता थी। हम पद्मा नदी भी गए, जो इतनी चौड़ी है कि शायद ही कोई उसके दूसरे किनारे को देख सकता हो। लौटते समय मेरा गाइड घुमावदार ग्रामीण सड़कों से गुजरते हुए हमें तनगेल जिले में जमींदार के तीन मंजिला घर पर ले गया। घर की चिनाई से बाहर घास झांक रही थी और प्रवेश द्वार पर तराशे गए हाथी का सूंड टूट गया था। उस महल के अंधेरे कमरे अब एक कोऑपरेटिव बैंक में बदल चुके हैं। आंगन में बना दुर्गा मंदिर अब भी है। अगला ठिकाना माणिकगंज जिले की अपेक्षाकृत ज्यादा बड़ी जमींदार बाड़ी (बलिआटी हवेली के रूप में मशहूर) था, जो अब बांग्लादेश पुरातात्विक विभाग के अधिकार क्षेत्र में है। इन विशाल भवनों पर मालिकाना हक रखने वाले और यहां रहने वाले हिंदू जमींदारों के परिवार काफी पहले इनको छोड़कर भारत बस गए हैं। मगर यहां के आसपास के गांवों में उनके गरीब स्वधर्मी लोग (हिंदू) अब भी हैं।

मैंने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों की खूब यात्रा की है। भारत के हिस्से का ग्रामीण बंगाल आधुनिक उद्योगों का दीवाना रहा है। यहां वस्त्र उद्योग और दवाई कंपनियां काफी दिखती हैं। नजदीक के गांवों में श्रमिकों का आना-जाना लगा रहता है। मगर शहर के तौर पर बात करें, तो कोलकाता का औद्योगिक गौरव अब अतीत का हिस्सा है, जबकि ढाका वस्त्र-निर्माण उद्योग और निर्यात का एक अहम वैश्विक केंद्र बन चुका है।
बहरहाल, भारत और पाकिस्तान के मौजूदा प्रारूप के लगभग 25 वर्ष बाद बांग्लादेश अस्तित्व में आया। यह देश अभी अपने पैरों पर खड़ा ही हो रहा है, और बनने की प्रक्रिया में है। इसकी लोकतांत्रिक संस्थाएं अभी पूरी तरह मजबूत नहीं हुई हैं। यहां की अदालतें और प्रेस भी पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं। धार्मिक व भाषायी बहुसंख्यकवाद की भावना यहां की ऐसी दबी हुई चिनगारी है, जो  मुस्लिम और हिंदुओं, बांग्ला और अन्य जनजातीय या आदिवासी  भाषा बोलने वाले लोगों के बीच यदा-कदा तनाव पैदा कर रही है। हालांकि बांग्लादेश में एक नागरिक सरकार सत्ता में है, मगर यहां की राजनीति (और अर्थव्यवस्था) पर भी सेना का काफी प्रभाव है। यहां की कई जगहों पर अति गरीबी दिखती है। इतना ही नहीं, बांग्लादेश उन देशों में भी शामिल है, जिसे दुनिया में जलवायु परिवर्तन से काफी खतरा है।

यानी, इसका वर्तमान मुश्किलों से भरा है और भविष्य अनिश्चिताओं के बादलों से घिरा। मगर फिर भी दो वजहों से मैं बांग्लादेश के लोगों की तारीफ करना चाहूंगा। पहली, इसलिए कि पाकिस्तान का हिस्सा रह चुकने के बाद भी, जब यह उससे अलग हुआ, तो इस्लामिक कट्टरता को कमजोर करने में यह अपेक्षाकृत ज्यादा सफल रहा। और दूसरी, इसलिए कि कभी यह अविभाजित बंगाल का अंग था और आज इसने पश्चिम बंगाल की तुलना में कहीं अधिक व्यावसायिक तरक्की हासिल की है और इसने अधिक सामाजिक गतिशीलता दिखाई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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