पूंजी का धर्म
एक आम गृहस्थ या गृहिणी से आप सब्जी की दुकान पर अचानक पूछकर देखिए कि पूंजी क्या होता है, तो वह कहेगा या कहेगी कि पूंजी का मतलब है पैसा। पूंजी की सेवा में लगी सरकार आम मध्यवर्गीय नागरिकों की इसी आम समझ...
एक आम गृहस्थ या गृहिणी से आप सब्जी की दुकान पर अचानक पूछकर देखिए कि पूंजी क्या होता है, तो वह कहेगा या कहेगी कि पूंजी का मतलब है पैसा। पूंजी की सेवा में लगी सरकार आम मध्यवर्गीय नागरिकों की इसी आम समझ का फायदा उठाती है। बेशक पूंजी का मतलब पैसा भी होता है, मगर हर प्रकार का पैसा पूंजी नहीं है।
जैसे पुस्तकालयों में किताबें होती हैं, पर हर वह जगह पुस्तकालय नहीं होती, जहां किताबें रखी हों। वे किताब की दुकानें भी हो सकती हैं। हम चीजों को उनके कार्य या फंक्शन से भी जानते हैं। पूंजी का प्राथमिक फंक्शन है मुनाफा कमाना और मुनाफे को बढ़ाते जाना। रोजगार देना मुनाफा कमाने का साधन हो सकता है, वह पूंजी का साध्य नहीं है। जो कंपनी जितने कम मजदूरों को जितनी कम मजदूरी देकर जितना ज्यादा काम करवा लेगी, वह उतना ही अधिक प्रतियोगिता में टिकेगी। वैसे ही, पूंजी का प्राथमिक फंक्शन लोगों की जरूरतें पूरी करना नहीं है।
1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में एक मीडिया हाउस के मालिक ने कहा था कि अगर उसे सिगरेट का रैपर बनाने में अधिक मुनाफा होगा, तो वह अखबार में लगी पूंजी को सिगरेट-रैपर बनाने में लगाना पसंद करेंगे। इस हालत को किसी हद तक लोकतांत्रिक देश अपनी नीतियों से लोक कल्याणकारी दिशा में मोड़ सकता है, बशर्ते उस देश के राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति हो व इसके लिए उस पर लोकतांत्रिक जन दबाव हो। नवउदारवाद उस राज्य को ही 'इज ऑफ डूइंग बिजनेस' के नाम पर अप्रासंगिक बनाते जाने का दर्शन है।
मनोज कुमार की फेसबुक वॉल से