फोटो गैलरी

Hindi Newsसमस्या बड़ी दिखने लगी

समस्या बड़ी दिखने लगी

सुबह की शुरुआत खुशनुमा थी। दोपहर को सब बदल गया। अचानक एक समस्या आ खड़ी हुई। वह बुरी तरह परेशान हो गए। उन्हें लगा कि उससे वह निकल ही नहीं पाएंगे। ‘हम कभी-कभी ‘बायनाकुलर विजन’ के...

समस्या बड़ी दिखने लगी
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 21 Oct 2016 10:44 PM
ऐप पर पढ़ें

सुबह की शुरुआत खुशनुमा थी। दोपहर को सब बदल गया। अचानक एक समस्या आ खड़ी हुई। वह बुरी तरह परेशान हो गए। उन्हें लगा कि उससे वह निकल ही नहीं पाएंगे। ‘हम कभी-कभी ‘बायनाकुलर विजन’ के शिकार हो जाते हैं। उससे अक्सर छोटी चीजें भी बड़ी दिखने लगती हैं।’ यह कहना है डॉ. सूजन क्रॉस व्हिटबोर्न का। वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। एमहर्स्ट की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजिकल ऐंड ब्रेन साइंसेज की प्रोफेसर हैं। उनकी चर्चित किताब है, द सर्च ऑफ फुलफिलमेंट।

यह एक मायने में राई का पहाड़ बनाना है। हम किसी समस्या से रूबरू होते हैं। हम अचानक चलते-चलते कहीं रुक जाते हैं। एकाएक हमें लगने लगता है कि अब आगे कैसे बढ़ेंगे? मंजिल तक कैसे पहुंचेंगे? हमें महसूस होता है कि किसी बड़ी दिक्कत में फंस गए हैं। मजेदार बात है कि अभी हमने समस्या को ठीक से जाना-पहचाना भी नहीं है। और मान लिया कि मामला बड़ा भारी है। अपनी किसी समस्या का बड़ा लगना ही बायनाकुलर विजन या दूरबीनी नजर है। वह बहुत दूर की चीज के लिए ठीक है, पर पास की चीज के लिए नहीं। अपनी समस्या के लिए तो वह बहुत ही नुकसानदेह है। हम अपनी छोटी सी समस्या को भी बड़ा मान लेते हैं।

हमें अपने छोटे-छोटे दुख भी कितने बड़े लगते हैं। अपने और दूसरों के मामले में हम दूरबीन का इस्तेमाल बदल देते हैं। उसे उल्टा-सीधा करके देखने लगते हैं। दरअसल जब कोई समस्या हमारे पास आती है, तो हमें अपनी उस दूरबीन को हटा लेना चाहिए। और बहुत ही सहज ढंग से समस्या को देखने की कोशिश करनी चाहिए। समस्या जितनी हो, उतनी ही नजर आनी चाहिए, ताकि हम उसी अंदाज में उसका समाधान ढूंढ़ सकें। अगर हम समस्या को थोड़ा छोटा कर दें, तो और भी अच्छा। मुद्दे की बात है कि समस्या बड़ी नहीं लगनी चाहिए। राजीव कटारा 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें