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बदले माहौल में भारत के लिए मौके

इस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी और चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी की हालत में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी निवेश  और निर्यात बढ़ाने की नई प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। यह परिदृश्य भारत की...

बदले माहौल में भारत के लिए मौके
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 25 Mar 2015 10:18 PM
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इस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी और चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी की हालत में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी निवेश  और निर्यात बढ़ाने की नई प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। यह परिदृश्य भारत की विकास दर बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है। हाल ही में भारत की यात्रा पर आईं आईएमएफ की प्रमुख क्रिस्टीना लेगार्ड ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था में इस समय फैली नरमी की धुंध के बीच भारत रोशनी की किरण है। उन्होंने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था में कई देश जहां निम्न विकास दर से जूझ रहे हैं, वहीं भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2014-15 में 7.2 फीसदी है व आगामी वित्तीय वर्ष 2015-16 में यह 7.5 फीसदी के स्तर को छू सकती है।

कुछ समय पहले तक जो अमेरिका और चीन विदेशी निवेश आकर्षित करने के मामले में छलांगें लगा रहे थे, उनकी रफ्तार मंद हो गई है। ऐसे में दुनिया के निवेशक भारत समेत नई उभरती अर्थव्यवस्था वाले बाजारों की ओर आकर्षित होते दिखाई दे रहे हैं। नए आंकड़े बता रहे हैं कि देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रवाह जनवरी 2015 में, जनवरी 2014 की तुलना में दोगुना होकर 4.48 अरब डॉलर रहा। यह पिछले 29 माह का सबसे अधिक आंकड़ा है।

हालांकि भारत से उत्पादों के निर्यात की मांग अमेरिका सहित कुछ देशों में धीमी गति से ही सही, लेकिन रफ्तार पकड़ रही है। चूंकि अमेरिका भारत से निर्यातों का एक प्रमुख बाजार है, ऐसे में अमेरिका की अर्थव्यवस्था में सुधार भारत के लिए अच्छा मौका है। 2014 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 2.4 फीसदी की दर से वृद्धि हुई, जबकि 2013 की समान अवधि में यह दर 2.2 फीसदी थी।

पिछले कई सालों तक चीन की विकास दर दहाई से अधिक रही है। लेकिन 2014-15 में यह सात फीसदी के आसपास है। चीन से निर्यात में भी कमी आई है। चीन में बढ़ी हुई श्रम लागत ने भी चीन के निर्यात घटाए हैं। चीन के ऐसे निर्यात प्रतिकूल परिदृश्य से भी भारत को लाभ हुआ है। निश्चित रूप से नए वित्तीय वर्ष 2015-16 में विदेशी निवेश और निर्यात बढ़ने की संभावनाओं के बीच कई महत्वपूर्ण आधार भारत के पास हैं। अप्रत्यक्ष करों से संबंधित जीएसटी एक अप्रैल 2016 से लागू होना प्रस्तावित है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम लगभग 55 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। कच्चे तेल की कीमतों में कमी से मुद्रास्फीति, भुगतान संतुलन और सब्सिडी के मानकों पर भारत की सकारात्मक स्थिति हो गई है। भारत श्रम सुधारों की डगर पर आगे बढ़ा है। भारत ने बीमा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी है। सरकार ने नए बजट 2015-16 के तहत कॉरपोरेट कर को चीन के बाजार की तरह कम कर दिया है। ऐसे में, अब देश के नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे वर्तमान सकारात्मक अवसर को हाथ से न जाने दें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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