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कॉफी ने बचाई कविता

विश्व कविता दिवस आया और निकल गया। किसी ने खबर तक न दी। आश्चर्य कि नित्यप्रति साहित्य-लीला करने वाले,  साहित्य के होलटाइमर, आयोजक, प्रायोजक, संयोजक, न्यासी हमारे भैयाजी को भी इस बार विश्व कविता...

कॉफी ने बचाई कविता
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 28 Mar 2015 08:25 PM
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विश्व कविता दिवस आया और निकल गया। किसी ने खबर तक न दी। आश्चर्य कि नित्यप्रति साहित्य-लीला करने वाले,  साहित्य के होलटाइमर, आयोजक, प्रायोजक, संयोजक, न्यासी हमारे भैयाजी को भी इस बार विश्व कविता दिवस की भनक न लगी। आया और निकल गया। लेकिन विश्व कविता दिवस मना और जमकर मना। उसकी खबर भी आई। और,  तब लगा कि कविता के असल चाहने वाले दिल्ली में नहीं, वियना में हैं और अगर कविता बचनी है, तो दिल्ली वालों से बचकर वियना में ही बचनी है। सोचिए कि इस बार कविता को किसने बचाया? सनद रहे कि इस बार कविता को न किसी कवि ने बचाया, न समीक्षकों ने बचाया, न रिसर्च करने वालों ने बचाया, न किसी प्रकाशक ने बचाया, न अकादमियों ने बचाया, न सरकारों ने बचाया, न उनकी साहित्य परिषदों ने बचाया, न साहित्य सचिवों ने बचाया, न गोष्ठियों ने बचाया, न सेमिनारों ने बचाया, न कॉलेजों ने बचाया, न लाइब्रेरियों ने बचाया, न किसी पांडेजी ने बचाया, न किसी सिंह ने बचाया, न किसी वाजपेयी ने बचाया, न किसी कुंवर ने बचाया, न केदार ने बचाया, न किसी वरिष्ठ ने बचाया, न किसी मूर्धन्य ने बचाया, न किसी प्रख्यात ने बचाया, न किसी अज्ञात ने बचाया, न किसी पार्टी ने बचाया, न किसी गुट ने बचाया, न कश्मीरी गेट ने बचाया, न इंडिया गेट ने बचाया..।

कविता की हर मेडिकल रिपोर्ट डरावनी रही। कविता चलाचली की बेला में रही। पिछले बीस-पच्चीस साल में उसकी बदहाली पर ही कविता होती रही। हर रोज मरसिए लिखे जाते रहे। जैसे कि: कविता का अंत हो चुका है। कविता का अंत होने वाला है। कविता संकट में है। कविता कष्ट में है। कविता बीमार है। कविता कोमा में है। कविता वेंटीलेटर पर है। कविता हाशिये पर है। समाज में कविता के लिए जगह नहीं है। कविता मोर्चरी में पड़ी है। लेकिन रविवार की एक खबर ने बताया कि कविता को अगर किसी ने बचाया, तो कॉफी ने बचाया। कॉफी बेचने वाली वियना की एक नामी ‘कैफे-श्रृंखला’ ने बचाया। वियना के कैफे वाइमर, कैफे हुमेल, कैफे कोर्ब और कैफे म्यूजियम ने बचाया। दुनिया में फैले ऐसे एक हजार से अधिक कॉफी हाउसों ने बचाया। कैफे चेन को यह विश्व कविता दिवस एक निराला अवसर लगा।

उसने सोचा कि इस दिन मरणासन्न कविता को बचाने का जतन करना चाहिए, ताकि कविता बच जाए। उसने ऐलान कर दिया कि जो भी व्यक्ति इस ‘विश्व कविता दिवस’ पर इस चेन के कैफे में आएगा, उसे कविता सुनाने के बदले कैफे के मशहूर ब्रांड गरमागरम या ठंडी कॉफी मुफ्त मिलेगी। लोग मौलिक कविता लिखकर लाएं। उसे पढ़ें और फ्री में कॉफी पिएं। इधर कविता पढ़ी, उधर कॉफी हाजिर। कवि आए। कविता लाए। पढ़े और कॉफी प्राप्त की। इस चक्कर में कई अ-कवि भी कवि बन गए। काव्य पाठ किया। कॉफी पी और काम पर निकले। विश्व कविता दिवस कविता के लिए पूरी तरह शुभ रहा। कॉफी ने कविता करवाई। उनसे भी करवाई, जो कवि नहीं थे। एक कप कॉफी ने सबको कवि हृदय बना दिया। नया काव्य-सूत्र बना: जब तक कॉफी रहेगी,  कविता रहेगी! कविता की कीमत एक कप कॉफी है। कविता से कुछ मिले या न मिले, एक कॉफी जरूर मिल सकती है। कितनी सर्जनात्मक है ‘कॉफी’ की महक।

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