नेपाल के सियासी खेल की उलझनें
झलनाथ खनाल को हराने वाले नेकपा-एमाले के अध्यक्ष के पी शर्मा ओली जब जनसभाओं में धुआंधार बोलते, तब लोगों ने उसे एक नाम दिया, 'ओली की गोली।' यानी ओली की बोली, बंदूक की गोली से कम नहीं है। यही ओली अब...
झलनाथ खनाल को हराने वाले नेकपा-एमाले के अध्यक्ष के पी शर्मा ओली जब जनसभाओं में धुआंधार बोलते, तब लोगों ने उसे एक नाम दिया, 'ओली की गोली।' यानी ओली की बोली, बंदूक की गोली से कम नहीं है। यही ओली अब नेपाल के प्रधानमंत्री हैं, जो वक्त के साथ बदल चुके हैं, और मिला-जुलाकर राजनीति करने में विश्वास जता रहे हैं। शपथ का समय ऐसा चुना, जब नेपाल में 'बड़ा दसैं'(बड़ा दशहरा) की शुरुआत हो रही है।
ओली को बुराई पर अच्छाई की जीत के साथ नेपाल की समस्याओं का तत्काल समाधान करना है। नए प्रधानमंत्री नई दिल्ली पधारेंगे या बीजिंग जाएंगे? इसी प्रश्न में नेपाल की भावी विदेश नीति का उत्तर छिपा हुआ है। न्योता दोनों तरफ से है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुभकामनाओं के साथ उन्हें नई दिल्ली आने का आमंत्रण दे चुके हैं। ओली से पहले उनके विदेश मंत्री कमल थापा दिल्ली आएंगे, ताकि पिछले तीन हफ्तों से दोनों देशों के बीच संदेह का जो हिमालय खड़ा हुआ है, उससे पार पाया जाए।
असल में, कथित नाकेबंदी का यह सारा खेल संयुक्त लोकतांत्रिक मधेसी मोर्चा के नेता कर रहे थे, लेकिन बदनामी भारत की हुई है। क्या भारतीय विदेश मंत्रालय को विज्ञापनों के जरिये स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए थी? सत्ता छोड़ने से पहले नेपाल के पूर्व कानून मंत्री नरहरि आचार्य ने मधेसी आंदोलनकारियों की दो प्रमुख मांगें- समानुपातिक समावेशी प्रतिनिधित्व, और जनसंख्या के आधार पर क्षेत्रों के निर्धारण की बात मान ली थीं। अब इस अधूरे कार्य को ओली सरकार कैसे पूरा करती है, इसे देखना होगा।
राजावादी, और हिंदूवादी ब्रांड से राजनीति करने वाले कमल थापा को विदेश मंत्री व उप प्रधानमंत्री बनाने की पीछे एक बड़ी रणनीति है। कमल थापा साल 2006 में राजशाही के दौर में नेपाल के गृह मंत्री और 17 साल पहले पंचायत काल में विदेश मंत्री रह चुके हैं। नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग को लेकर देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाने वाले कमल थापा को मोदी के करीब जाने का अवसर मिला था, शायद इसलिए टेलीग्राफ नेपाल ने तंज किया है, 'राइट मैन, एट राइट प्लेस!' राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी-नेपाल (राप्रपा-एन) के अध्यक्ष कमल थापा के साथ पार्टी संसदीय दल के उप नेता राम कुमार सुब्बा बिना विभाग के मंत्री बनाए गए हैं।
कमल थापा का विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंहल से लेकर भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ तक से संपर्क रहा है। इसी के आधार पर आशा की जा रही है कि भारत से जो भी गलतफहमियां पैदा हुई हैं, उनको वह सुलझा लेंगे। नई दिल्ली को भी उम्मीद है कि कमल थापा 'डैमेज कंट्रोल' शीघ्र कर लेेंगे।
लेकिन 'डैमेज' प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के स्तर पर हो, तो वाकई चिंता की बात है। सुशील कोइराला के प्रधानमंत्री रहते समय पिछले गुरुवार को नेपाल ने 'थर्ड कंट्री' से हवाई मार्ग के जरिये तेल मंगाने के वास्ते 'ग्लोबल टेंडर' निकाला था।
तीसरे देश से तेल मंगाने का अर्थ है कि नेपाल, भारत से उभयपक्षीय व्यापार संधि को तोड़ रहा है। 27 अक्तूबर, 2009 को यह संधि उस समय के उद्योग-वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और उनके नेपाली समकक्ष राजेंद्र महतो ने की थी। सात साल की अवधि वाली इस संधि की मियाद अगले साल अक्तूबर में पूरी होगी।
तीसरे देश से तेल के लिए 'ग्लोबल टेंडर' देने से पहले सुशील कोइराला ने बुधवार को कहा था कि भारत नेपाल के साथ 'अमानवीय व्यवहार' कर रहा है।
काठमांडू के बालुवाटार स्थित प्रधानमंत्री निवास पर कुछ सांसद और युवा नेता इस बात की शिकायत लेकर गए थे कि भारत पेट्रोलियम, खाद्यान्न, ताजे फल-सब्जियों के बदले गले हुए केले, सेब और प्याज भेज रहा है, जो इस्तेमाल के लायक नहीं हैं। बुधवार को ही नेपाल के विदेश मंत्री महेंद्र बहादुर पांडे संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक से लौटे और त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ही एक संवाददाता सम्मेलन करके जानकारी दी कि उन्होंने भारत की शिकायत संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून से की है। नेपाली विदेश मंत्री ने कहा कि नेपाल एक अल्प विकसित राष्ट्र है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसे कुंठित किया जाए। लगे हाथ नई दिल्ली स्थित नेपाली राजदूत दीप कुमार उपाध्याय ने भी यह उलाहना दे डाली कि प्रधानमंत्री मोदी उन्हें मिलने का समय नहीं दे रहे हैं। ऐसी क्या बात थी, जिसे नेपाली राजदूत सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कह सकते थे, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज या विदेश सचिव एस जयशंकर को नहीं?
यों तो सुशील कोइराला को प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं लड़ना था, बल्कि संविधान जारी किए जाने के बाद नेकपा-एमाले अध्यक्ष केपी शर्मा ओली को सत्ता हस्तांतरित किए जाने की बात हुई थी। लेकिन रणनीति ऐसी बनी कि थारू समुदाय के नेता विजय कुमार गच्छेदार और राप्रपा के कमल थापा के कारण सुशील कोइराला को मतदान में मुंह की खानी पड़ी। दोबारा से उप प्रधानमंत्री बने विजय कुमार गच्छेदार के कारण मधेसियों की राजनीतिक एकता में दरार पड़ेगी, यह तो तय है। काठमांडू में बैठे कुछ विश्लेषक यहां तक संदेह कर सकते हैं कि भारत को चूंकि सुशील कोइराला 'बयाना' दे चुके थे, इसलिए उनका यह हाल हुआ। इस खेल में एमाओवादी चेयरमैन प्रचंड की बड़ी भूमिका रही।
अब आठ साल तक पद पर बने रहने वाले देश के प्रथम राष्ट्रपति राम बरण यादव के उत्तराधिकारी पर भी बहस होगी। राष्ट्रपति एमाले का होता है, तो एमाओवादी को सभामुख और उपराष्ट्रपति का पद चाहिए। प्रचंड सभामुख के लिए एमाओवादी महासचिव कृष्ण बहादुर महरा को आगे करना चाहेंगे। प्रचंड 'हाई लेबल बातचीत' के लिए चीन जा रहे हैं। वहां से नेपाल के लिए क्या एजेंडा तय होता है, यह तो प्रचंड के लौटने पर ही पता चलेगा।
इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय पक्ष का 'ओवर कॉन्फिडेंस' और पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोइराला के ढीले व 'कन्फ्यूज्ड' रवैये के कारण भारत के विरुद्ध कूटनीतिक कुठाराघात हुआ है। काठमांडू स्थित चीनी राजदूत वू चुन्ताई ने कूटनीतिक लक्ष्मण रेखा पार करते हुए कहा कि भारत ने नेपाल के विरुद्ध 'आर्थिक नाकेबंदी' कर रखी है।
चीनी राजदूत वू ने यह बयान नेकपा-माओवादी नेता मोहन वैद्य किरण के बुधनगर स्थित कार्यालय में जाकर दिया था। यह तो गनीमत थी कि नेपाल के सिंधुपाल्चोक जिले के बाराबीसे से चीनी सीमा तातोपानी को जोड़ने वाली 26 किलोमीटर लंबी सड़क भूकंप के कारण दुरुस्त नहीं हो पाई है, वरना चीन कुछ बड़ा खेल कर चुका होता।
फिर भी चीन मानेगा नहीं। नेपाल में तीन हफ्ते के हाहाकारी समय से उसने यही सबक लिया है कि उसे नेपाल का द्वार कहे जाने वाले मितेरी राजमार्ग को दुरुस्त रखना चाहिए। चीन तातोपानी के अलावा रसुवा के केरूंग, मुस्तांग सीमा से लगे कोराला, घार्चुला से जुड़े टिंकर बनियांग, उरई बनियांग, भज्यांग से लगे राईढुंगा, हुम्ला से लगी तिब्बती सीमा हिल्सा, चुवा, टांके और लिमि को 'ऑपरेशनल' बनाने के लिए अपने सारे घोड़े खोल देगा। अब नेपाल में एमाले और एमाओवादी की सरकार है, इसलिए चीन इनके माध्यम से अपना एजेंडा सेट करेगा । नेपाल में सतर्क कूटनीति करने का समय आ गया है। नरेंद्र मोदी सरकार को समझना होगा कि 'युद्ध से बुद्ध की राह' वाले जो लोग नेपाल सरकार में आए हैं, वे किस करवट बैठेंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)