सास-बहू के प्राइम टाइम में आतंकवादी
पंजाब में आतंकी हमले की खबर सुबह ही आ गई, तो तमाम टीवी चैनलों पर यह खबर चलती रही। अगर खबर दोपहर ढाई बजे के आसपास आती, तो मुझे शक था कि इस आतंकी वारदात से जुड़ी खबरें लगातार दिखाई जातीं। सिर्फ खबरों...
पंजाब में आतंकी हमले की खबर सुबह ही आ गई, तो तमाम टीवी चैनलों पर यह खबर चलती रही। अगर खबर दोपहर ढाई बजे के आसपास आती, तो मुझे शक था कि इस आतंकी वारदात से जुड़ी खबरें लगातार दिखाई जातीं। सिर्फ खबरों के लिए न्यूज चैनल ऑन करने वालों को पता है कि ढाई बजे के आसपास न्यूज चैनलों पर खबरें नहीं होतीं, वहां तरह-तरह की सासें गदर मचा रही होती हैं। सास-बहू पर बनने वाले धारावाहिकों समेत तमाम सीरियलों की जानकारी देने वाले प्रोग्राम कई तरह के नाम से आते हैं। बड़ी से बड़ी खबर भी धारावाहिकों की सास-बहुओं के हल्ले में दब जाती है। बड़ी से बड़ी वारदात सास-बहुओं के फसाद के आगे दबा दी जाती है। कुछ दिन पहले आयोजित प्रधानमंत्री की रैली की खबरों पर भी सास-बहुएं भारी पड़ी थीं। सास-बहुओं के सीरियलों की खबरों का मुकाबला आतंकियों की खबरें भी कर पातीं या नहीं, मुझे पता नहीं।
बहुत संभव है कि सास आतंकियों पर भी भारी पड़ जाएं। मन होता है कि न्यूज चैनल वालों से पूछूं- भाई, न्यूज चैनल हो, तो खबर दिखाओ, ये सास-बहू वाली खबरें सास-बहू वाले चैनलों पर चलने दो। पर मेरी सुन कौन रहा है? सुनी तो सिर्फ सास-बहुओं की जा रही है कि किस सास ने अपनी बहू को निपटाने का लेटेस्ट प्लान क्या बनाया है। या किस बहू की साड़ी का प्रिंट मौसम के हिसाब से है या नहीं। एक न्यूज चैनल रिपोर्टर ने मुझे बताया कि जल्दी ही यह होने वाला है कि बड़ी से बड़ी पॉलिटिकल, ग्लोबल खबर भी यदि देसी सास-बहू फॉर्मेट में नहीं होगी, तो दो बजे के आसपास नहीं दिखाई जा सकेगी। पाकिस्तान से लश्करे तैयबा या लश्करे तस्कर जब आतंकियों को भारत में भेजते हैं, तो कहते हैं- तुम नसीब वाले हो कि भारत जा रहे हो, मुंबई हमलों के आतंकी याकूब को बचाने में जुटे भारतीयों की लिस्ट देखो। तुम्हें बचाने, बचाए रखने में ऊपर वाले की दिलचस्पी भले ही खत्म हो जाए, पर ओवैसी, शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर नसीरुद्दीन शाह की दिलचस्पी हर हाल में रहेगी। सास-बहू वाले देश में यह क्या कम है?